बदली हुई हवा से कुछ असहज कर देनेवाले सवाल पूछती है कैफ़ी आज़मी की कविता ‘ऐ सबा लौट के किस शहर से तू आती है?’.
ऐ सबा! लौट के किस शहर से तू आती है?
तेरी हर लहर से बारूद की बू आती है!
ख़ून कहां बहता है इन्सान का पानी की तरह
जिस से तू रोज़ यहां करके वजू आती है?
धाज्जियां तूने नकाबों की गिनी तो होंगी
यूं ही लौट आती है या कर के रफ़ू आती है?
अपने सीने में चुरा लाई है किसे की आहें
मल के रुखसार पे किस किस का लहू आती है!
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