हमारे समय के बेहतरीन व प्रख्यात ग़ज़लकार उमैर नजमी की यह ग़ज़ल आपके दिल के भीतर के तंतुओं को बहुत हौले से झकझोर कर रख देगी. इसमें आपको मोहब्बत की भीनी-भीनी ख़ुशबू मिलेगी तो वहीं यह धीरे से आपके सामने निडर होने का राज़ भी खोल देगी.
बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं
लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं
नहीं लगेगा उसे देख कर मगर ख़ुश है
मैं ख़ुश नहीं हूं मगर देख कर लगेगा नहीं
हमारे दिल को अभी मुस्तक़िल पता न बना
हमें पता है तिरा दिल उधर लगेगा नहीं
जुनूं का हज्म ज़्यादा तुम्हारा ज़र्फ़ है कम
ज़रा सा गमला है इस में शजर लगेगा नहीं
इक ऐसा ज़ख़्म-नुमा दिल क़रीब से गुज़रा
दिल उस को देख के चीख़ा ठहर लगेगा नहीं
जुनूं से कुंद किया है सो उस के हुस्न का कील
मिरे सिवा किसी दीवार पर लगेगा नहीं
बहुत तवज्जोह त’अल्लुक़ बिगाड़ देती है
ज़ियादा डरने लगेंगे तो डर लगेगा नहीं
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट