अपने करियर में तीन दर्ज़न से ज़्यादा ग्रैंड स्लैम टाइटल जीतने और लम्बे समय तक वर्ल्ड नंबर वन बनी रहने वाली अमेरिकी टेनिस खिलाड़ी बिली जीन किंग को टेनिस के खेल में महिलाओं के लिए इस खेल की प्राइज़ मनी को बराबरी पर लाने के लिए जाना जाता है. उन्हें उनके एक मैच, जिसे बैटल ऑफ़ द सेक्सेज़ कहा जाता है, में जीत दर्ज कर महिलाओं को मान दिलाने के लिए भी पहचाना जाता है. उनकी शख़्सियत के बारे में तफ़सील से बता रहे हैं अशोक पांडे.
मोटे कांच का चश्मा पहनकर कोर्ट में उतरने वाली बिली जीन किंग टेनिस खिलाड़ी से ज़्यादा यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर लगती थीं.
वर्ष 1970 में लॉस एंजेल्स में हो रहे पैसिफ़िक साउथवेस्ट टेनिस टूर्नामेंट में बिली भी हिस्सा ले रही थीं. उन दिनों पुरुषों और महिलाओं को मिलने वाली पुरस्कार राशियों में बड़ा अंतर होता था. इस टूर्नामेंट में भी महिला विजेता को मिलने वाली रकम पुरुष विजेता की रकम की कुल 15% हुआ करती थी. ग़ौरतलब है कि दोनों फ़ाइनलों में बराबर संख्या में टिकट बिका करते थे. बिली ने इस परम्परा को खुले मंच से चुनौती दी और बराबर रकम की मांग की.
टूर्नामेंट का आयोजक जैक क्रैमर ख़ुद एक ज़माने में तीन बार टेनिस के ग्रैंड स्लैम जीत चुका था, लेकिन उसने इस मांग को मानने से मना कर दिया. बिली जीन किंग और उनकी मांग का समर्थन करने वाली कुछ और खिलाड़ियों ने अपना नाम वापस ले लिया. इस ज़रूरी शुरुआत का अंत वर्ष 1973 में हुआ जब बिली की अगुवाई में महिला टेनिस असोसिएशन की स्थापना हुई. आज यह संस्था 85 देशों की करीब दो हज़ार टॉप महिला टेनिस खिलाड़ियों का प्रतिनिधित्व करती है.
बिली से कोई तीस बरस बड़ा भूतपूर्व अमेरिकी टेनिस स्टार बॉबी रिग्स जीवन के दूसरे चरण में घनघोर मर्दवादी और जुआरी बन चुका था. वह महिलाओं के टेनिस को टेनिस ही नहीं मानता था. उसकी प्रसिद्धि अपने उतार पर थी और दुनिया का ध्यान अपनी तरफ़ खींचने के लिए 1973 में उसने बिली जीन किंग को अपने साथ खेलने को ललकारा. बिली ने बॉबी की चुनौती को बाज़ारू स्टंट कहकर अस्वीकार कर दिया.
इसके बाद बॉबी रिग्स ने उस समय तक की महानतम और वर्ल्ड नम्बर वन टेनिस स्टार मार्गरेट कोर्ट को दो-दो हाथ करने की चुनौती दी. उसका कहना था कि वह 55 वर्ष की आयु में भी उसे हरा सकता है. फिर 13 मई, 1973 को मदर्स डे के दिन यह मैच हुआ और मार्गरेट एक घंटे से भी कम समय में बुरी तरह हार गईं. इस पराजय को ‘मदर्स डे मैसेकर’ कहा गया और ‘टाइम’ मैगजीन ने बॉबी रिग्स की इस जीत को अपने मुख्य पृष्ठ पर छापा.
मार्गरेट कोर्ट की हार के बाद बिली जीन किंग के पास कोई चारा न था कि बॉबी को ख़ुद चुनौती देतीं. तब 20 सितम्बर, 1973 को मैच होना तय हुआ. मैच की पिछली शाम जब बिली को पता लगा कि मैच की कमेंट्री वही जैक क्रैमर करने जा रहा है, जिसने तीन बरस पहले लॉस एंजेल्स में उसकी मांग को मानने से इनकार कर दिया था तो उन्होंने आयोजकों से कहा कि जैक कमेंट्री करेगा तो वे नहीं खेलेंगी. आयोजकों को उनकी बात माननी पड़ी.
‘बैटल ऑफ़ द सेक्सेज़’ के नाम से मशहूर हुए इस मैच में बिली ने बड़बोले रिग्स को तीन सीधे सेटों में नेस्तनाबूद कर डाला.
मैच के बाद बिली ने कहा था, “मैंने सोचा था कि अगर मैं हार गई तो महिलाओं की टेनिस पचास साल पीछे चला जाएगा. ऐसा होने से महिला टेनिस टूर्नामेंटों की ख्याति को धक्का लगता और दुनिया भर की महिलाओं के आत्मगौरव को ठेस पहुंचती. पचपन साल के एक आदमी को पराजित करने में मेरे लिए कोई थ्रिल नहीं था. थ्रिल इस बात का था कि ऐसा करने से मैं शायद बहुत सारी नई लड़कियों को टेनिस खेलने के लिए प्रेरित कर पाऊंगी.”
बिली ने अपने करियर में तीन दर्ज़न से ज़्यादा ग्रैंड स्लैम टाइटल जीते और लम्बे समय तक वर्ल्ड नंबर वन बनी रहीं. अपने समूचे टेनिस करियर के दौरान और उसके बाद आज तक वे लगातार महिलाओं के अधिकारों के पक्ष में मुखर बनी रही हैं. महिलाओं को पुरुषों के बराबर प्राइज़ मनी दिए जाने की उनकी मांग को पूरी तरह लागू किए जाने में करीब 35 वर्ष लगे ज़रूर, पर आज किसी भी सेरेना विलियम्स को भी वही रकम मिलती है, जो किसी नोवाक जोकोविच के हिस्से आती है.
जिस महिला टेनिस असोसिएशन की अगुवाई में ये सारी मांगें मानी गईं, उसकी शुरुआत बिली जीन किंग नाम की एक जांबाज़ औरत की ‘ना’ से हुई थी. हालांकि उनकी निजी ज़िंदगी बहुत उतार-चढ़ाव से भरी रही, लेकिन उसका क़िस्सा फिर कभी…
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