‘बुलाती है मगर जाने का नहीं’ दिवंगत शायर राहत इंदौरी की मशहूर ग़ज़लों में एक है. यह ग़ज़ल दुनियादारी की सीख देती है.
बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं
ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो
चले हो तो ठहर जाने का नहीं
सितारे नोच कर ले जाऊंगा
मैं ख़ाली हाथ घर जाने का नहीं
वबा फैली हुई है हर तरफ़
अभी माहौल मर जाने का नहीं
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नहीं
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