अटारी पर दीपक रखने जा रही प्रेमिका को हिदायत देती कुंवर बेचैन की कविता ‘चढ़ो अटारी धीरे-धीरे’ उसके सौंदर्य और सादगी का अनुपम वर्णन भी करती है.
चढ़ो अटारी धीरे-धीरे
रखना दीप संभालकर
एक शिकन भी रह ना जाए
उजियारे के गाल पर
पहन घाघरा, चूड़ी, बिछुए
छन-छन घुंघरू पांव के
करके झिलमिल दीप प्रकाशित
अपन तन के गांव के
चढ़ो अटारी धीरे-धीरे
रखना दीप संभालकर
जैसे तुम बिंदी रखती हो
अपने गोरे भाल पर
भर के मांग सिंदूरी अपनी
दृग में काजल आंजकर
अपनी सोने-सी मूरत को
और प्यार से मांजकर
चढ़ो अटारी धीरे-धीरे
रखना दीप संभालकर
ज्यों मेंहदी के फूल काढ़तीं
तुम मन के रूमाल पर
हंसुली, हार और लटकारा
बाजूबंद, हमेल से
कह देना नथुनी-कुंडल से
सदा रहें वे मेल से
चढ़ो अटारी धीरे-धीरे
रखना दीप संभालकर
ज्यों तुम विमल चांदनी मलतीं
तन के लाल गुलाल पर
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