संवेदनशीलता का चरम हमसे कविता लिखवाता है. जब हम संवेदनशील होते हैं, तब अपने आसपास की चीज़ों की बातें सुन सकते हैं. ध्यान से सुनिए (पढ़िए) कुंवर बेचैन की कविता ‘चीज़ें बोलती हैं’.
अगर तुम एक पल भी
ध्यान देकर सुन सको तो,
तुम्हें मालूम यह होगा
कि चीज़ें बोलती हैं
तुम्हारे कक्ष की तस्वीर
तुमसे कह रही है
बहुत दिन हो गए तुमने मुझे देखा नहीं है
तुम्हारे द्वार पर यूं ही पड़े
मासूम ख़त पर
तुम्हारे चुंबनों की एक भी रेखा नहीं है
अगर तुम बंद पलकों में
सपन कुछ बुन सको तो
तुम्हें मालूम यह होगा
कि वे दृग खोलती हैं
वो रामायण
कि जिसकी ज़िल्द पर जाले पुरे हैं
तुम्हें ममता-भरे स्वर में अभी भी टेरती है
वो खूंटी पर टंगे
जर्जर पुराने कोट की छवि
तुम्हें अब भी बड़ी मीठी नज़र से हेरती है
अगर तुम भाव की कलियां
हृदय से चुन सको तो
तुम्हें मालूम यह होगा
कि वे मधु घोलती हैं
अगर तुम एक पल भी
ध्यान देकर सुन सको तो,
तुम्हें मालूम यह होगा
कि चीज़ें बोलती हैं
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