पत्रकार-लेखक-कवि कैलाश सेंगर उम्दा ग़ज़लकार थे. उनकी ग़ज़लों के शेर आम आदमी के दर्द को बयां करते हैं. उनका लेखन समाज की विडंबना, असमानता और अव्यवस्था पर रौशनी डालता था. प्रस्तुत हैं ग़ज़ल संग्रह सूरज तुम्हारा है के कुछ चुनिंदा शेर, जो मनुष्य की विवशता को व्यक्त करते हैं.
ग़ज़लों से ख़ुशबू बिखराना हमको आता है
चट्टानों पर फूल खिलाना हमको आता है
परिंदों को शिकायत है, कभी तो सुन मेरे मालिक
तेरे दानों में भी शायद, लगा है घुन मेरे मालिक
हम ज़िंदगी के चंद सवालों में खो गए
सारे जवाब उनके उजालों में खो गए
चट्टानी रातों को जुगनू से वह संवारा करती है
बरसों से इक सुबह हमारा नाम पुकारा करती है
वह आसमां पे रोज़ एक ख़्वाब लिखता था
उसे पता न था वह इन्क़लाब लिखता था
हंसी से अपने आंसुओं को छुपाकर देखो
नया मुखौटा ये चेहरे पे लगाकर देखो
वह फ़कीरों की दुआओं में असर देता है
आंख से इत्र बांटने का हुनर देता है
इसमें लाशें भी मिला करती हैं, तुम ज़रा देख-भाल तो लेते
इसको मां कह के पूजनेवालों, इस नदी को खंगाल तो लेते
जब भी पानी किसी के सर से गुज़र जाएगा
तब वह सीने में नई आग ही लगाएगा
आंखों में बहुत बाढ़ है, शेष सब कुशल
जीवन नहीं अषाढ़ है, फिर शेष सब कुशल
सड़क ने जब मेरे पैरों की उंगलियां देखीं
कड़कती धूप में सीने पे बिजलियां देखीं
सांस हमारी हमें पराए धन-सी लगती है
साहुकार के घर गिरवी कंगन-सी लगती है
किसी का सर खुला है तो किसी के पांव बाहर हैं
ज़रा ढंग से तू अपनी चादरों को बुन मेरे मालिक
वह जो मज़दूर मरा है, वह निरक्षर था मगर
अपने भीतर वह रोज़, इक किताब लिखता था
Illustration: Pinterest
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