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ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब कविताएं

एक औरत का पहला राजकीय प्रवास: अनामिका की कविता

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
November 15, 2022
in कविताएं, बुक क्लब
A A
Anamika_poems
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एक औरत के जितना सामंजस्य बिठाकर भला और कौन चल सकता है. अपने पहले राजकीय प्रवास पर गई औरत के इस सामंजस्य की ख़ुदा के दरबार में सुनवाई होती है और जीत उस औरत के हाथ लगती है.

वह होटल के कमरे में दाख़िल हुई!
अपने अकेलेपन से उसने
बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया

कमरे में अंधेरा था।
घुप्प अंधेरा था कुएं का
उसके भीतर भी!

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सारी दीवारें टटोली अंधेरे में,
लेकिन ‘स्विच’ कहीं नहीं था!
पूरा खुला था दरवाज़ा,
बरामदे की रोशनी से ही काम चल रहा था!
सामने से गुज़रा जो ‘बेयरा’ तो
आर्त्तभाव से उसे देखा!
उसने उलझन समझी, और
बाहर खड़े-ही-खड़े
दरवाज़ा बंद कर दिया!

जैसे ही दरवाज़ा बंद हुआ,
बल्बों में रोशनी के खिल गए सहस्रदल कमल!
“भला बंद होने से रोशनी का क्या है रिश्ता?”
उसने सोचा

डनलप पर लेटी,
चटाई चुभी घर की, अंदर कहीं–रीढ़ के भीतर!
तो क्या एक राजकुमारी ही होती है हर औरत?
सात गलीचों के भीतर भी
उसको चुभ जाता है
कोई मटरदाना आदिम स्मृतियों का?

पढ़ने को बहुत-कुछ धरा था,
पर उसने बांची टेलीफ़ोन तालिका
और जानना चाहा
अंतरराष्ट्रीय दूरभाष का ठीक-ठीक ख़र्चा

फिर, अपनी सब डॉलरें ख़र्च करके
उसने किए तीन अलग-अलग कॉल!

सबसे पहले अपने बच्चे से कहा
“हैलो-हैलो, बेटे
पैकिंग के वक़्त… सूटकेस में ही तुम ऊंघ गए थे कैसे…
सबसे ज़्यादा याद आ रही है तुम्हारी
तुम हो मेरे सबसे प्यारे!”

अंतिम दोनों पंक्तियां अलग-अलग उसने कहीं
ऑफ़िस में खिन्न बैठे अंट-शंट सोचते अपने प्रिय से
फिर, चौके में चिंतित, बर्तन खटकाती अपनी मां से

… अब उसकी हुई गिरफ़्तारी
पेशी हुई ख़ुदा के सामने
कि इसी एक ज़ुबां से उसने
तीन-तीन लोगों से कैसे यह कहा
“सबसे ज़्यादा तुम हो प्यारे!”
यह तो सरासर है धोखा
सबसे ज़्यादा माने सबसे ज़्यादा!

लेकिन, ख़ुदा ने कलम रख दी
और कहा
“औरत है, उसने यह ग़लत नहीं कहा!”

Illustration: Pinterest

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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