लेखिका-कवयित्री मनीषा कुलश्रेष्ठ के कविता संग्रह प्रेम की उम्र के चार पड़ाव की यह कविता औरत और मर्द के मूल चरित्र की व्याख्या करते हैं, एक औरत के नज़रिए से.
एक औरत के
यक़ीनों का क्या है?
टूटते रहते हैं हर रोज़
हाथ से गिरे प्यालों की तरह
बटोर कर फैंक देती है वह
उसे शायद नहीं पता
नहीं करती है वह सामना
बाहर की दुनिया का
एक मर्द के लिए
जो कि बहुत आसान नहीं
बहुत बचाता है
बचाना चाहता है
वह औरत के मासूम यक़ीनों को
लेकिन कई बार
मुमक़िन नहीं होता
मर्दों की दुनिया में
मर्द होने की प्रक्रिया में
कई बार लौटा कर
लाया भी है वह
सही सलामत उन कांच से यक़ीनों को
लेकिन
घर की देहरी तक
लौटते उसके पांव
यूं थक कर लड़खड़ाते हैं कि
छन्न-से
टूट कर गिर ही पड़ते हैं
औरत के यक़ीन
कवयित्री: मनीषा कुलश्रेष्ठ
कविता संग्रह: प्रेम की उम्र के चार पड़ाव
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन
Illustration: Pinterest