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एक पकी हुई शाम: जयंती रंगनाथन की नई कहानी

जयंती रंगनाथन by जयंती रंगनाथन
September 30, 2021
in ज़रूर पढ़ें, नई कहानियां, बुक क्लब
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एक पकी हुई शाम: जयंती रंगनाथन की नई कहानी
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जब शाम पकी हुई हो, सबकुछ गड़बड़झाल हो, आपके मन की एक न सुनी जा रही हो तो क्या किया जा सकता है? कई बार बच्चों की सी शरारतें आपको ऐसी थकी और पकी हुई शाम से बचा ले जाती हैं… यक़ीन नहीं आता? तो यह चटपटी सी कहानी पढ़ लीजिए.

घर से चलते समय मम्मी ने टोक दिया,‘‘तू यह पहन कर जाएगी मौसी के घर? ये क्या लिखा है तेरे टी शर्ट में? आइ एम अ बिच? ये क्या है? कहां से लाई है ये शर्ट?’’

मैंडी ने कुछ नहीं कहा, बस कंधे उचका दिए. मम्मी अबकि फट पड़ीं,‘‘ये ऊलजुलूल कपड़े पहन कर मेरे साथ नहीं चलेगी. यहीं रह घर में.‘’
मैंडी ने धीरे से कहा,‘‘ठीक है, आप जाओ. मैं रह लूंगी घर में. अकेली.’’
मम्मी अब थोड़ा आगे आ गईं. और आगे आ जाने का मतलब होता है थप्पड़ पड़ना. मम्मी की आवाज़ ग़ुस्से से भरी थी,‘‘चल जल्दी से जा कर कपड़े बदल कर आ. सुन, ढंग के कपड़े पहन. क्या सोचेंगे सब तेरे बारे में?’’
मैंडी खीझ गई,‘‘मम्मा, मुझे वहां कौन देख रहा है? क्या ख़राबी है इस टी में? बताओ?’’
‘‘ख़राबी ही ख़राबी है. ज़रूरत से ज़्यादा टाइट है. अपना वज़न तो देख मैंडी. और ये बिच क्या होता है? तू कुतिया है क्या?’’
मैंडी के पास तर्क नहीं थे मां से उलझने को. वह चुपचाप अंदर जा कर अपने कबर्ड में दिखने वाला सबसे डीसेंट शर्ट बदल कर बाहर आ गई. उसे पता था लाल रंग की इस बेल स्लीवस वाली शर्ट में वह ज़रूरत से ज़्यादा मोटी लगती है. अब है तो है, क्या करे?
मम्मी अब भी उसकी चॉइस से ज़्यादा ख़ुश नहीं थी, पर कुछ कहा नहीं. सत्रह साल की मैंडी ने अपनी आंखों पर गॉगल्स चढ़ा लिए और मां की गाड़ी में जा कर आगे की सीट पर बैठ गई. मां ने ड्राइविंग सीट पर कब्ज़ा जमाया और ख़रामा-ख़रामा गाड़ी चलाती हुई सड़क पर ले आई.

पारुल मौसी के घर पर उनकी मैरिज ऐनिवर्सिरी की पार्टी थी. मम्मी की बड़ी बहन. मैंडी को पता था, पार्टी बोरिंग होनेवाली है. मम्मी और मौसी के सब दोस्त मिलकर अंताक्षरी खेलेंगे. बस, गाने के नाम पर बेसुरे से रेट्रो गाने गाने लगेंगे. अगर किसी नए जनरेशन के बच्चे ने आज का गाना गा दिया तो नाक-भौं सिकोड़ेंगे कि ऐसा कोई गाना नहीं है. फिर सब मिल कर चालू हो जाएंगे कि आजकल के गाने कितने वाहियात हैं, पहले गाने कितने मेलोडियस हुआ करते थे. देखो, आज भी नहीं भूले, एक शुरू करता है और सब गाने लगते हैं.

मम्मी को रास्ते से केक उठाना था. मौसी को चॉकलेट केक पसंद था. गाड़ी एवन बेकर के सामने रोक मम्मी ने बेसब्री से कहा,‘‘तू गाड़ी में ही बैठी रह. मैं बस अभी जा कर केक ले आती हूं.’’
गाड़ी रोड पर खड़ी कर मम्मी उतर गई. केक की दुकान में मम्मी के जाते ही गाड़ी के पास ट्रैफ़िक पुलिस वाला आ गया और खिड़की खटखटा कर बोला, ‘‘गाड़ी बीच में क्यों खड़ी है? आगे ले कर जाओ…’’
मैंडी थोड़ा सहम कर बोली,‘‘अंकल, बस दो मिनट. मां दुकान में केक लाने गई हैं. बस…’’
‘‘कोई दो मिनट नहीं. गाड़ी निकालो यहां से. पीछे ट्रैफ़िक जाम हो रहा है.’’
मैंडी भुनभुनाती हुई ड्राइविंग सीट पर पहुंची. मम्मी की तरह उसने सीट बेल्ट बांधा, चाबी गाड़ी में लगी हुई थी,ऑन किया, एक्सलेटर पर पैर दबाया और गाड़ी…
मैंडी ने स्टीयरिंग व्हील से हाथ हटा कर कानों पर रख लिया. तब तक गाड़ी धड़ाम से आगे खड़ी गाड़ी में टकरा चुकी थी. आवाज़ इतनी भयानक थी कि आसपास दुकानों के अंदर से लोग बाहर निकल आए. मम्मी भी आ गईं. मैंडी को स्टीयरिंग व्हील पर देख वे पहले तो चौंकीं, फिर दौड़ती हुई उसके पास आई. मैंडी कांप रही थी. गनीमत थी कि उसने ब्रेक पर पांव रख दिया था और गाड़ी रुक गई थी.

पुलिस वाला कुछ दूरी पर खड़ा था. जिसकी गाड़ी ठुकी थी, वो भी एक दुकान से बाहर निकल कर आ गया.
मम्मी को यक़ीन नहीं हो रहा था कि मैंडी ऐसा कुछ कर सकती है. मैंडी ने किसी तरह उन्हें बताया कि ट्रैफ़िक पुलिस वाले अंकल ने उससे गाड़ी वहां से निकालने को कहा. मैंडी के आसपास जमा भीड़ ने हां में हां मिलाया कि लड़की तो कह रही थी कि मम्मी दो मिनट में आएगी, पर पुलिस वाला माना ही नहीं.
मां की समझ नहीं आया, क्या कहे. मन तो कर रहा था अपनी बेटी के गालों को ठीक से लाल कर दे. दो मिनट में ये कांड? सिर पर खड़ा ठुकी हुई गाड़ी का मालिक गंदी-सी आवाज़ में गालियां दे रहा था. मम्मी ने उसके हाथ में अपना विज़िटिंग कार्ड पकड़ाते हुए कहा,‘‘सर, आपका जो नुक़सान हुआ है, मैं इंश्योरेंस से ठीक करवा दूंगी. आपने सुना ना, ट्रैफ़िक पुलिस…’’
‘‘ऐसा थोड़े ही होता है? लड़की को गाड़ी चलाने क्यों दी, जब उसे आता नहीं है? ऐसे ही ड्राइवर राह चलते लोगों को मार कर भाग जाते हैं…’’
मां ने सब्र से उन्हें समझाया. बंदे को गाड़ी के इश्योरेंस पेपर दिखाए, अपने एजेंट से बात करवाई. तब कहीं जा कर वो शांत हुआ.
इस सबके बीच ट्रैफ़िक पुलिस वाला वहां से जा चुका था. पूरे चालीस मिनट बाद केक ले कर वहां से निकल पाए. इस बीच मौसी और दूसरे रिश्तेदारों के कई फ़ोन आ चुके थे. मम्मी इतनी नाराज़ थीं कि सारे रास्ते एकदम चुप रहीं. मैंडी ने बात करने की कोशिश की तो इतना डांटा कि वह रोने लगी.
मम्मी की गाड़ी का भी सामने का हिस्सा पिचक गया था. मड गार्ड टूट कर लटक रहा था. मम्मी धीरे-धीरे गाड़ी चलाती हुईं मौसी के घर के सामने पार्क करने लगी. मम्मी ने गाड़ी की पिछली सीट से केक उठाया. पता था, आधे मेहमान तो जाने के लिए तैयार बैठे होंगे.

पारुल मौसी मम्मी को देखते ही लपक कर उसके पास आईं,‘‘क्या धीरा… इतना टाइम लगा दिया. ग़लती कर दी, जो केक तुझसे लाने को कह दिया. मेरी दोस्त पिंकी तो चली भी गई…’’
मम्मी धीरे से बोलीं,‘‘बताया था ना दीदी, गाड़ी का ऐक्सीडेंट…’’
मौसी ने कुछ सुना नहीं, बस केक उठा कर तेज़ी से अंदर चली गईं. ऑफ़ व्हाइट स्वारोस्की से सजी शिफ़ॉन की साड़ी में ज़रूरत से ज़्यादा सजी-धजी थीं. बालों का पार्लर जा कर स्टाइल करवा कर आई थीं. चेहरे पर भारी-भरकम मेकअप. गले में डायमंड का नेकलेस और उससे भी भारी डायमंड के झुमके.
ड्रॉइंग रूम गुलाबी और नीले गुब्बारों से सजा था. कमरे में अच्छी-ख़ासी भीड़ थी. मौसी ने केक बीचोंबीच रखी टेबल पर रखते हुए ज़ोर से कहा,‘‘लो जी, फ़ाइनली केक हाज़िर है. आ जाओ जी, सब टेबल के पास.’’

मौसी की मदद करने उनकी बेटी शिप्रा आगे आ गई. केक का बॉक्स खोलते ही हल्के-से चीखती हुई बोली,‘‘माई गॉड, इसमें हैप्पी ऐनिवर्सरी की जगह हैप्पी बर्थडे लिखा हुआ है. नाम भी गलत है. मम्मी का नाम आम्या थोड़े ही है…’’

मैंडी ने झांक कर देखा, केक भी चॉकलेट का ना हो कर वनिला का था. ज़ाहिर है मम्मी गलत डिब्बा उठा लाई थीं. इस चीख-पुकार के बीच शिप्रा ने ऊंची आवाज़ में कहा,‘‘केक बदलना होगा. किसी और का केक मम्मी-डैडी थोड़े ही ना काट सकते हैं?’’
मैंडी ने मम्मी की तरफ़ देखा, उनका चेहरा सफ़ेद पड़ रहा था. अब वो वापस केक शॉप जाएंगी?
पूरे पंद्रह मिनट की बहस के बाद तय हुआ कि केक की आइसिंग हटा कर इसे ही काटेंगे.

मैंडी की दिलचस्पी केक में ज़रा भी नहीं थी. उसका मूड अभी भी ख़राब था. शिप्रा केक के पीसेज़ सबको देने लगी. मैंडी को देने से पहले उसने सामने खड़े एक लड़के को प्लेट पकड़ाते हुए कहा,‘‘मानव, सो सॉरी यार. इस केक की वजह से पार्टी एकदम ख़राब हो गई.’’ पर जैसे ही शिप्रा की नजर मैंडी पर पड़ी, उसने एकदम से टोन बदल कर कहा,‘‘मैंडी, यार तुम पहचान में ही नहीं आ रही. क्या हुआ, डायटिंग बंद कर दी क्या?’’
एक हैंडसम लड़के के सामने मैंडी इस तरह शर्मिंदा नहीं होना चाहती थी. मैंडी क्या होता है? मंदिरा नहीं कह सकती? शिप्रा ने उसकी प्लेट में ज़रूरत से ज़्यादा बड़ा पीस रख दिया. मैंडी अपनी प्लेट उठा कर बाहर की तरफ़ आ गई. उसने कनखियों से देखा, मानव पार्टी में आई दूसरी लड़कियों के साथ हंस रहा था, बोल रहा था. मन हुआ, वो भी जा कर उनमें शामिल हो जाए. मानव उससे भी बात करे. पर वह दूर से उन सबको देखती रही.

केक के बाद गाना-बजाना शुरू हो गया. दो टीमें बन गईं. नई पीढ़ी बनाम पुरानी पीढ़ी. पारुल मौसी ने मैंडी का नाम ले कर जोर से बुलाया,‘‘मैंडी, तू बाहर खड़ी क्या कर रही है? हमारे साथ आ. तुझे तो सारे गाने याद रहते हैं. तू हमारी टीम में आ जा.’’ मैंडी मन मार कर मौसी के पास जा कर बैठ गई. शुरू के कुछ राउंड तो अंकल-आंटियों ने संभाला. जब न से उनके सारे गाने ख़त्म हो गए तो मौसी ने मैंडी की तरफ़ देखते हुए कहा,‘‘चल, तू ही कुछ सुना दे…’’
मैंडी एक पल को अटक गई. ‘न’ से कुछ ऐसा गाना होना चाहिए जो एकदम से मानव को इंप्रैस कर दे. न…न…न
इससे पहले कि मैंडी कुछ धांसू-सा सोच पाती, मौसी ही शुरू हो गईं,‘‘इतना टाइम नहीं मिलता सोचने के लिए, न…’’ और खुद ही गाने लगीं,‘‘नहीं, नहीं कोई तुमसा हसीं, इसका है मतलब देखे हैं तुमने लाखों हंसी, अरे नहीं नहीं नहीं…’’
दूसरी तरफ़ से ‘ह’ से मानव ने गाना शुरू किया,‘‘हां, मैं जिंदा हूं…’’
सफ़ेद बालों वाली आंटी ने मुंह बिचकाया,‘‘ये कौन-सा गाना हुआ? हमने तो कभी नहीं सुना…’’
मानव सकपका कर बोला,‘‘यू ट्यूब पर है. इस साल का हिट गाना है…’’
‘‘हम यू ट्यूब-व्यू ट्यूब नहीं मानते, हां, फ़िल्मी गाना होना चाहिए…’’ आंटी ठसके से बोलीं.
मानव छोटा-सा मुंह ले कर उठ गया. उसके उठते ही चार-पांच लड़के-लड़कियां और उठ गए. शिप्रा ने भी उठते हुए कहा,‘‘अंकल जी, आंटी जी, आप लोग खेलो.’’

मैंडी भी उठ गई. शिप्रा के दोस्त दूसरे कमरे में थे. कोई बिस्तर पर बैठा था, कोई नीचे. मैंडी वहां कुछ देर तक खड़ी रही. किसी ने उसकी तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया. वह चुपचाप वहां से निकल कर बाहर आ गई. दरवाज़े के बाहर रेलिंग पर एक पांच-छह साल का बच्चा खड़ा था. वह बार-बार रेलिंग पर झुकने की कोशिश करता. मैंडी उसके पास जा कर खड़ी हो गई. उसे घूर कर देखा और बोली,‘‘नीचे कूदने का इरादा है क्या?’’
लड़के ने हां में सिर हिलाया.
मैंडी ने उसके सिर पर चपत लगाते हुए कहा,‘‘मम्मी को बता दिया कि तुम कूदने वाले हो?’’
लड़के ने अकड़ कर कहा,‘‘उन्हें क्यों बताऊंगा? उनसे तो ग़िस्सा हूं.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘मुझे ज़बरदस्ती यहां ले आईं. मैं खेल रहा था पार्क में…’‘
मैंडी को लगा उस बच्चे की और उसकी दशा एक जैसी है. वो लड़के के पास जा कर रैलिंग से टिक कर खड़ी हो गई,‘‘तुम्हें पता है, मेरी मम्मी भी मुझे ज़बरदस्ती यहां ले कर आई है.’’
लड़का चौंक कर बोला,’‘तुम भी पार्क में खेल रही थी क्या?’’
मैंडी हंसने लगी,‘‘बुद्धू, मेरी एज में पार्क में नहीं, मोबाइल पर खेलते हैं…’’
लड़के ने सिर हिला कर कहा,‘‘काश मेरे पास भी मोबाइल होता.’’
‘‘मोबाइल का क्या करते तुम?’’
‘‘खेलता, अपने फ्रेंड्स से बात करता, पिक्चर देखता…’’
मैंडी ने ध्यान से बच्चे की तरफ़ देखा और बोली,‘‘चिंता मत करो. दो-तीन साल बाद मिल जाएगा तुम्हें भी मोबाइल.’’
लड़के की आंखें चमकने लगीं,‘‘सच्ची?’’
मैंडी ने हां में सिर हिलाया.
दोनों चुप हो गए. बच्चा अचानक बोला,‘‘तुम अगर मुझे ठंडा पिलाओगी तो मैं तुम्हें कुछ मज़ेदार दिखाऊंगा.’’
‘‘क्या?’‘
‘‘पहले कोल्ड ड्रिंक…’’ लड़के ने अड़ते हुए कहा.
मैंडी अंदर से दो कोल्ड ड्रिंक उठा लाई. लड़के ने फौरन उसके हाथ से बोतल ले ली और गटागट एक सांस में पी गया. इसके बाद रिलैक्स हो कर खड़ा हो गया.
दरवाज़े के बाहर शू रैक में और उसके आसपास चप्पल और जूतों के ढेर लगे थे. मौसी के घर के भीतर चप्पल पहन कर जाने की मनाही थी.
लड़के ने मस्ती में आ कर एक ख़-बसूरत सा सैंडल अपने हाथ में उठाया और नीचे फेंक दिया. तीसरे माले से सैंडल छपाक से नीचे गिर गया. इसके बाद लड़के ने रैलिंग के नीचे अपना सिर छिपा लिया और हंसने लगा. मैंडी की तरफ़ देख कर उसने आंखें नचा कर कहा,‘‘मजा आया ना?’’
मैंडी ने घबरा कर इधर-उधर देखा, किसी की नज़र तो नहीं पड़ी? पर अंदर एक कमरे में गाना चल रहा था, दूसरे में गपबाज़ी. किसी की नज़र उन पर नहीं थी. मैंडी ने अपनी आंख से इशारा किया कि लगे रहो. लड़का धीरे से सरक कर शू रैक के पास आया. कोने में रखे सुनहरे जूतों में से एक उठा लिया, फिर दूसरी जगह जा कर नीचे फेंक दिया. इसके बाद वो मैंडी के पास आ कर बोला,‘‘जब सब यहां से निकलेंगे ना तो मजा आएगा, देख लेना.’’
मैंडी ने अपनी सैंडिल लड़के को दिखा कर कहा,‘‘बस इसे मत फेंकना…’’
लड़के ने हां में सिर हिलाया, फिर फुसफुसा कर बोला,‘‘तुम भी करो ना… मज़ा आएगा…’’
मैंडी सोचने लगी. फिर धीरे से पूछा,‘‘वो एक लंबा-सा लड़का है ना, ग्रीन शर्ट में, मानव? पता है उसका जूता कौन-सा है?’’
लड़के ने कुछ देर सोचने के बाद काले रंग के शूज़ की तरफ़ इशारा किया. मैंडी ने जूतों की तरफ़ देखा. फिर एक जूता उठा कर ज़ोर-से दूर फेंका.
रेलिंग के नीचे बिल्डिंग का स्विमिंग पूल था. इस समय वहां कोई भी नहीं था. आठ-दस जोड़ी जूते-चप्पल नीचे फेंकने के बाद मैंडी और लड़का हंसते हुए खाना खाने अंदर आ गए.
खाना खाने से ज़्यादा मैंडी का ध्यान बाहर की तरफ़ लगा था. जब लोग जाने लगेंगे, तो क्या मज़ा आएगा.
अपनी प्लेट में चार रसगुल्ले और दो बर्गर रखते समय उसने देखा, शिप्रा ध्यान से उसकी प्लेट देख रही है. मैंडी ने कंधे उचका कर कहा,‘‘तुम मेरा साइज़ पूछ रही थी ना दीदी… मैं एक्सएल से डबल एक्सएल हो गई हूं. पर हू केयर्स?’’
दिनभर की टेंशन जैसे फुर्र हो गई थी. छोटी-सी शरारत से ऐसा लग रहा था जैसे उसका आत्मविश्वास लौटने लगा है. उसने एक साथ मुंह में दो रसगुल्ले ठूंसे और यह सोच कर मन ही मन हंसने लगी, बस कुछ देर बाद…

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

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वरिष्ठ पत्रकार जयंती रंगनाथन ने धर्मयुग, सोनी एंटरटेन्मेंट टेलीविज़न, वनिता और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम किया है. पिछले दस वर्षों से वे दैनिक हिंदुस्तान में एग्ज़ेक्यूटिव एडिटर हैं. उनके पांच उपन्यास और तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. देश का पहला फ़ेसबुक उपन्यास भी उनकी संकल्पना थी और यह उनके संपादन में छपा. बच्चों पर लिखी उनकी 100 से अधिक कहानियां रेडियो, टीवी, पत्रिकाओं और ऑडियोबुक के रूप में प्रकाशित-प्रसारित हो चुकी हैं.

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