असल गांव और फ़ाइलों के गांव में क्या फ़र्क़ होता है? इसे आप अदम गोंडवी की इस छोटी-सी कविता से समझ सकते हैं. यह कविता हमारे लोकतंत्र को भी आईना दिखाती है.
तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है
लगी है होड़-सी देखो अमीरी औ ग़रीबी में
ये गांधीवाद के ढांचे की बुनियादी ख़राबी है
तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के
यहां जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है
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