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गुमनाम है कोई: डॉक्टर सुषमा गुप्ता की नई कहानी

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
September 7, 2021
in ज़रूर पढ़ें, नई कहानियां, बुक क्लब
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गुमनाम है कोई: डॉक्टर सुषमा गुप्ता की नई कहानी
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कभी-कभी जीवन में ख़ुद के साथ या अपने क़रीबी लोगों के साथ घटी कुछ घटनाएं हमें एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं. ये घटनाएं कई लोगों के अवचेतन को इस क़दर झकझोर देती हैं कि उनका जीवन पूरी तरह बदल जाता है. उन्हें अपने अस्तित्व का भी भान नहीं रहता. पर मानव हार मानने वालों में से कहां है? अपनों के अस्तित्व को बचाने के लिए वह हर तरह के प्रयास करता है. डॉक्टर सुषमा गुप्ता की इस कहानी में आपको रिश्तों के अपनत्व की गहरी झलक मिलेगी.

‘‘यस मिस माया… हाऊ कैन आई हेल्प यू?’’

‘‘डॉक्टर, पिछले कुछ दिनों से मुझे बड़े अजीब से सपने आ रहे हैं.’’

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‘‘किसी बात का कोई तनाव, कोई परेशानी?’’

‘‘नहीं डॉक्टर, ऐसा तो कुछ नहीं है.’’

‘‘कब से ये सपने देख रहीं हैं आप?’’

‘‘जी वो… वो क़रीब 6 महीने पहले मैं लखनऊ से यहां मुंबई में शिफ्ट हुई थी. बस, तभी से ऐसे सपने आ रहे हैं.’’

‘‘यहां कहां रह रही हैं आप?’’

‘‘मैं… जी एक फ़्लैट है, यहीं पास ही में…’’

‘‘आप फ़्लैट में अकेली रहती हैं?’’

‘‘नहीं, मेरी एक सहेली भी मेरे साथ है.’’

‘‘क्या उनके साथ भी ऐसा हो रहा है?’’

‘‘नहीं, नहीं डॉक्टर…’’

‘‘ओके… तो आपने अपने सपनों में ऐसा क्या देखा जो वो आपको अजीब लग रहे हैं?’’

‘‘बहुत स्पष्ट तो याद नहीं है. एक लड़की… कभी गाती-सी, कभी रोती-सी… कभी कोई लड़का… उसको प्यार…’’

‘‘हिचकिचाइए मत मिस माया, खुलकर बताइए. जो कुछ भी आप देख, समझ रही हैं उसे पूरा जाने बग़ैर मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता. इसलिए प्लीज़ एकदम शुरू से बताइए.’’

‘‘ऐसा लगता है डॉक्टर कि ये सपने मुझसे कुछ कहना चाहते हैं. कोई कहानी-सी है… कहीं कोई लड़की है, वो गाना गाती रहती है. कभी अकेली, कभी किसी लड़के के साथ और कभी कोरस में. वह लड़का शायद उसका दोस्त है या दोस्त से ज़्यादा, क्योंकि वो दोनों एक ही साथ रहते हैं. कोई और आदमी भी है… गंजा है, आंखों पर चश्मा रहता है और वह बड़ी ही धूर्त हंसी हंसता रहता है. वह लड़की उसके साथ सोती है, फिर रोती है और फिर सोती है.’’

‘‘उस लड़की, लड़के या फिर उस आदमी का कोई नाम…?’’

‘‘नहीं डॉक्टर!’’

‘‘देखिए माया… यूं तो आपके सपने सामान्य ही लग रहे हैं, लेकिन आप मेरे पास आई हैं तो ज़रूर कोई बात होगी. क्योंकि हमारे देश में आमतौर पर साइकियाट्रिस्ट को पागलों का डॉक्टर माना जाता है. इस वजह से कोई अपनी दिमाग़ी परेशानी लेकर हमारे पास आता ही नहीं. हमारे पास आनेभर से किसी को पागल नहीं कहा जा सकता. जैसे और डॉक्टर शारीरिक रोग का इलाज करते हैं, वैसे ही हम मानसिक रोग का, बस… पर दुनिया को कौन समझाए? मुझे आपके कुछ सेशन करने होंगे. आपको अर्धचेतन अवस्था में ले जाकर पूरी परिस्थिति जाननी होगी. यदि आप इसके लिए तैयार हैं तो कल दोपहर 3 बजे क्लीनिक आ सकती हैं.’’

‘‘ओके डॉक्टर…’’

‘‘ठीक है फिर कल मिलते हैं.’’

सेशन का पहला दिन था. डॉक्टर ने हल्की रोशनी के कमरे में आराम कुर्सी पर माया को बिठाया व उसे हिप्नोटाइज़ किया और रिकॉर्डर का बटन ऑन कर दिया.

‘‘बताओ माया तुम क्या देख रही हो?’’

माया हल्की बेहोशी में बोलनेलगी,‘‘कोई 15-16 साल की सुंदर-सी लड़की, गुलाबी रंग का सूट, नीला दुपट्टा. वो हाथ में कागज़ का माइक लेकर गाना गा रही है, बेहद सुरीला…’’

‘‘और क्या दिख रहा है वहां?’’

‘‘एक लड़का भी है. टीशर्ट और नीली जींस में. उसका गाना सुनकर बहुत ख़ुश हो रहा है. कह रहा है- तुझे तो मैं सिंगर बनाऊंगा.’’
लगभग आधे घंटे के सेशन में बहुत कुछ सामने नहीं आना था और नहीं आया. डॉक्टर ने माया को तीन दिन बाद दूसरे सेशन के लिए बुलाया.

दूसरे सेशन के लिए माया समय पर पहुंच गई थी. डॉक्टर ने माया से पूछा,‘‘तो बताइए माया, कुछ नया देखा आपने अपने सपनों में?’’

‘‘नहीं, अभी तो नहीं डॉक्टर.’’

‘‘ठीक है, चलिए आज का सेशन शुरू करते हैं… कहो माया क्या दिख रहा है तुम्हें?’’

‘‘बड़ा-सा स्टेज, वही लड़की गा रही है. लोग ताली बजा रहे हैं. एक सुंदर-सा घर, लड़की उसी लड़के के गले लग कर ख़ुशी से चिल्ला रही है.’’

‘‘उनमें से किसी का नाम, चेहरा… कुछ समझ आ रहा है?’’

‘‘नहीं डॉक्टर, सब कुछ धुंधला-सा है. आवाज़ें भी साफ़ नहीं है, पर ऐसा लग रहा है कि उस लड़के को मैंने कहीं देखा है. कुछ-कुछ आपके जैसी छवि है.’’

तीन दिनों के बाद माया का तीसरा सेशन शुरू हुआ.
‘‘एक फ़्लैट की बालकनी… लड़की के हाथ में चाय की प्याली… उसके होंठ अब भी गुनगुना रहे हैं. एक लड़का पीछे से आकर उसे बाहों में भर लेता है.’’

‘‘क्या यह वही लड़का है?’’

‘‘नहीं. यह अलग है. ये वो लड़का नहीं है, पर लड़की वही है. दोनों पूरे घर में इधर से उधर दौड़ रहे हैं, लड़की आगे… लड़का पीछे… और फिर…’’

‘‘फिर… क्या…?’’

‘‘फिर वो लड़का उसे गोद में उठा कर बेडरूम में ले गया… और फिर…’’

‘‘क्या लड़की उस लड़के के छूने से नाख़ुश है?’’

‘‘नहीं… नहीं, बिल्कुल भी नहीं.’’

और फिर चौथा सेशन…
‘‘आज लड़के ने लड़की का नाम पुकारा…’’

’’क्या कहकर पुकार उसने लड़की को?’’

‘‘माया… हां माया है उसका नाम… वो दोनों मुंबई में हैं शायद. लड़का हीरो बनने और लड़की सिंगर बनने आई है. एक बड़ा-सा ख़्वाब देखा है दोनों ने मिलकर. दोनों काम ढूंढ़ने जा रहे हैं…’’

‘‘हूं… हूं… आगे?’’

‘‘कुछ नहीं… प्रतिभा होते हुए भी दोनों को ही कोई काम नहीं मिला. दोनों हताश हैं, पर दोनों ने आशा नहीं छोड़ी है. वो मेहनत कर रहे हैं… दर-दर भटक रहे हैं, पर कुछ नहीं हुआ…’’

पांचवें सेशन के लिए माया जब डॉक्टर से मिली तो उसने कहा,‘‘डॉक्टर आज सपने में कुछ अलग दिखा मुझे.’’

‘‘क्या अलग देखा आपने?’’

‘‘आज सपनों में सिर्फ़ वो लड़का था, पर किसी और लड़की के साथ… बाहों में बाहें डाले, पर वो ख़ुश बिल्कुल नहीं था.’’

‘‘चलिए सेशन शुरू करते हैं,’’ डॉक्टर ने उसकी बात सुनते हुए कहा.

‘‘वो लड़का और दूसरी लड़की… दोनों एक कमरे में हैं. लड़की ने लड़के को बेड पर गिरा दिया और ख़ुद उसके ऊपर… नहीं… नहीं… ये तुम क्या कर रहे हो ऋषि…?’’ माया ज़ोर-से चिल्लाई. उसकी सांस फूलने लगी.

‘‘रिलैक्स… रिलैक्स माया… काम डाउन…’’ और डाक्टर ने उसे फिर अर्धचेतन कर दिया.

‘‘लड़का बहुत ख़ुश है… उसे काम मिला है… छोटा है, पर मिला तो. माया ख़ुश है उसके लिए.’’

‘‘किसके लिए?’’

‘‘ऋषि, हां… माया ने उसे ऋषि ही बुलाया. सबकुछ फ़ास्ट फ़ॉरवर्ड की तरह चल रहा है. माया हंस रही है… बिल्कुल मेरी तरह. उसे भी काम मिल गया है… दोनों ख़ुश हैं… पर…’’

‘‘पर क्या, क्या… माया?’’

‘‘कुछ हुआ है.’’

‘‘क्या हुआ है?’’

‘‘कुछ तो ग़लत हुआ है… ये दोनों… ये तो ख़ुश होकर भी उदास हैं.’’

माया को अपनी परेशानी को कोई सिरा नहीं मिल पा रहा था, पर वो अपने सपनों की थाह पाना चाहती थी. सो डॉक्टर ने छठा सेशन शुरू किया.
‘‘वो गंजा आदमी फिर से एक धूर्त हंसी हंस रहा है. माया को बुरी नज़र से देख रहा है.’’
दो पल को ख़मोश रही माया. फिर अचानक चीख़ी,‘‘नहीं… नहीं… ये ग़लत है. तुम ऐसा नहीं कर सकतीं माया…’’

‘‘क्या हुआ? क्या किया माया ने?’’

‘‘ख़ुद को उसके हवाले कर दिया, क्योंकि वह उसे अपनी फ़िल्म में उसे गाने का अवसर देगा.’’

‘‘तुम ख़ुद ही कह रही हो ना कि माया ऐसा नहीं कर सकती. ग़ौर से देखो माया… क्या हो रहा है?’’ डॉ ने कहा.

‘‘माया घर पर बैठी रो रही है. ऋषि भी रो रहा है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पता नहीं… वो माया को नहीं बता रहा…’’

‘‘क्या ऋषि को तुम पहचानती हो?’’

‘‘हां, मैं… मैं उसे थोड़ा पहचान तो रही हूं…’’

‘‘ध्यान से सुनो क्या ऋषि और माया एक-दूसरे को बता रहे हैं? वे क्यों दुखी हैं?’’

‘‘नहीं, वो बात नहीं कर रहे. दोनों बस सोफ़े के दो कोनों में बैठकर सुबक रहे हैं. पर एक-दूसरे से छुपा रहे हैं.’’

सातवां सेशन शुरू होने से पहले माया थोड़ी अधीर हो गई.
‘‘डॉक्टर आप मेरे कई सेशन कर चुके हैं, लेकिन फिर भी ये सपने बंद नहीं हो रहे. क्या हुआ है मुझे? कोई बीमारी? कोई मानसिक रोग? क्या ये ठीक हो जाएगा?’’

‘‘नहीं माया, डरने वाली कोई बात नहीं है. और हो सकता है कि तुम जो सोच रही हो, वैसा कुछ नहीं हो…’’

‘‘फिर ये सब क्या है? ये बंद क्यों नहीं होता?’’

‘‘देखो, अपने अनुभव के आधार पर मैं इतना कह सकता हूं कि हो सकता है कि ये तुम्हारे पू्र्वजन्म की कहानी हो या ऐसी कोई घटना, जिसे तुम भूल चुकी हो या फिर तुम्हारे ज़रिए कोई कुछ कहना चाहता हो…’’

‘‘लेकिन ये सब मेरे साथ… मेरे साथ क्यों…?’’

‘‘माया, मेरे कई मरीज़ों के साथ ऐसा हो चुका है और आख़िरी सेशन के बाद वो ठीक भी हुए हैं. तुम भी ठीक हो जाओगी… ट्रस्ट मी… अच्छा बताओ, क्या पिछले दिनों में तुमने कुछ नया देखा?’’

‘‘जी, इन दिनों में मैंने ऋषि को एक लड़के के साथ देखा. पर उन दोनों का साथ होना सामान्य नहीं था. उनके बीच कुछ हो रहा था… शायद शारीरिक संबंध… या फिर… कुछ तो ऐसा, जो सहज नहीं था ऋषि के लिए…’’

‘‘क्या…?’’ माया के साथ इतने सेशन्स के दौरान डॉक्टर पहली बार कुछ चौंक से गए.

सातवां सेशन शुरू हुआ.

‘‘माया रो रही है, उसने ऋषि को सब बता दिया. उस डायरेक्टर ने माया को उसके साथ हमबिस्तर होने को कहा, वो मान गई. वो उसके साथ कमरे तक भी गई, लेकिन उसका दिल नहीं माना और उसे धक्का देकर वो भाग आई…’’

‘‘क्या ऋषि ने माया को कुछ बताया?’’

‘‘हां, ऋषि ने भी माया को बताया कि उसका भी शोषण हुआ है, लेकिन माया की तरह वह विरोध नहीं कर पाया. ऋषि को इस बात की ग्लानि हो रही है… वह उदास है… बहुत उदास…’’

‘‘क्या इस बारे में कुछ और कहा ऋषि ने?’’

‘‘हां… उसने कहा… इस शालीन, सभ्य-सी दिखनेवाली, चकाचौंधभरी मायानगरी ने उसे लूटा है. उसे भी काम के झांसे में दर-दर भटकाया गया,अपमानित किया गया है, शोषित किया गया है. सिर्फ़ जिस्म का ही नहीं मन का भी शोषण हुआ है…’’ यह कहते-कहते बेहोशी में भी माया की आंखें नम हो गईं. डॉक्टर यह देख-सुन ही रहे थे कि अचानक माया चिल्लाने लगी.

‘‘ऋषि… ऋषि, रुको कहां जा रहे हो? ऋषि भाग रहा है, वो सीढ़ियां चढ़ रहा है. माया उसके पीछे-पीछे भाग रही है. रुको ऋषि… रुको… माया की सांस फूलने लगी है. माया की एक आवाज़ पर थम जाने वाला ऋषि आज उसकी पुकार सुनकर भी नहीं रुक रहा है. वह छत की दीवार तक पहुंच गया है. माया भी किसी तरह वहां पहुंच गई और उसे थामना चाहती है. बाहों में भरकर प्यार करना चाहती है… सीने से लगाकर दुलार करना चाहती है… अपनी गोद में उसका सर रखकर उसे सुलाना चाहती है. उसके अंदर के दर्द को सुनकर उसे हल्का करना चाहती है. उसे कहना चाहती है कि ग़लत वो नहीं है, ग़लत ये दुनिया है. लेकिन… लेकिन… वो सुन क्यों नहीं रहा? रुक क्यों नहीं रहा? ऋषि रुको… ऋषि… ऋषिऽऽऽऽ’’

और एक चीख़ के साथ माया की चेतना लौट आई. वो फूट-फूट कर रो पड़ी,‘‘ऋषि ने छत से छलांग लगा दी. उसने आत्महत्या कर ली.’’ रोते-रोते उसकी हिचकी बंध गई.

डॉक्टर की आंखें भी भीग चुकी थीं. डॉक्टर उसके सर को सहलाते हुए बोले,‘‘बस कर गुंजा चुप हो जा… चुप हो जा…’’

माया ने सर उठा कर देखा,‘‘ भैया आप… भैया ऋषि ने आत्महत्या कर ली… क्यों किया उसने ऐसा… क्यों?’’ और वो उनके सीने से लगकर बच्चों की तरह फफककर रो पड़ी…

थोड़ी देर बाद जब वो संभली तो ख़ुद को अपने भैया के साथ क्लीनिक में पाकर आश्चर्यचकित रह गई.

‘‘मैं यहां कैसे आई भैया? कब आई?’’

‘‘गुंजा, जब दो साल पहले ऋषि ने आत्महत्या की तो तू अपना मानसिक संतुलन खो बैठी थी. तूने ख़ुद को, हम सबको भुला दिया. हम तुझे लखनऊ अपने घर ले आए. तेरा इलाज कराया पर तू ठीक नहीं हुई. तब इस काम में मेरा अनुभव ज़्यादा नहीं था. फिर भी मैंने तेरा इलाज करने की ठानी और तुझे वापस मुंबई ले आया. तुझे उसी फ़्लैट, उसी कमरे में रखा, जिसमें कभी तू और ऋषि रहे थे… ताकि तुझे कुछ याद आ सके.

‘‘यहां आकर तुझे तेरे और ऋषि के सपने आने लगे और तेरी रूममेट तुझे मेरे पास ले आई. तेरी वो रूममेट मेरी एक नर्स थी, जो तेरा ख़्याल भी रख रही थी और तुझमें होने वाले हर परिवर्तन की सूचना मुझे दे रही थी.

‘‘ऋषि बहुत अच्छा लड़का था, बहुत प्यार करता था तुझसे. कितने सपने लेकर आए थे तुम दोनों यहां. लेकिन… लेकिन ग़लत तुम दोनों के साथ हुआ, पर तू लड़कर जीत गई और वो हार गया. उसकी यही हालत, उसकी आत्महत्या व तेरे सदमे का कारण बनी. किसी को नहीं पता था कि ऋषि ने आत्महत्या क्यों की? सबने उसे डिप्रेशन का नाम दे दिया. पर आज तुझसे यह सब पता चला तो बेहद ग्लानि हुई कि किस तरह हममें से कुछ लोग दूसरे की मजबूरी का फ़ायदा उठा कर उसकी ज़िंदगी को नर्क बना देते हैं. सबको रंगीन सपने दिखानेवाली इस फ़िल्मी दुनिया का ये रूप भी हो सकता है… शायद कोई सोच भी नहीं सकता.

‘‘ख़ैर, हर जगह अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग होते हैं. हमें भी ऐसा कोई ज़रूर मिलेगा. हम मिलकर तेरे और ऋषि दोनों के सपने पूरे करेंगे. देखना अपने गायन से तू सफलता की ऊंचाईयों को छुएगी. ऋषि जहां भी होगा तुझे देखकर बहुत ख़ुश होगा.’’
अपने भाई के स्नेह और विश्वास के सहारे गुंजा में फिर जीने की उम्मीद जागी थी. वो तैयार थी, दोबारा इस मायानगरी के उतार-चढावों से दो-चार होने के लिए…

फ़ोटो: गूगल

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