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ओए अफ़लातून
Home ज़ायका

पाव भाजी प्रेमियों के लिए इसके इतिहास की दास्तां

कनुप्रिया गुप्ता by कनुप्रिया गुप्ता
February 19, 2021
in ज़ायका, फ़ूड प्लस
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पाव भाजी प्रेमियों के लिए इसके इतिहास की दास्तां
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भोजन और उससे जुड़े हुए व्यवसाय एकमात्र ऐसे व्यवसाय हैं, जो कभी पूरी तरह बंद नहीं हो सकते- फिर चाहे वो होटल व्यवसाय हो या किराना व्यवसाय (ग्रोसरी स्टोर्स). हां, क्वालिटी या क़ीमत के चलते कुछ लोगों का धंधा बंद हो सकता है पर पूरी तरह व्यवसाय बंद नहीं हो सकता और इसका कारण एकदम साफ़ है-स्वाद और भूख. जब तक ये दोनों हैं, भोजन बनता रहेगा खाया जाता रहेगा और उसमें नए-नए प्रयोग भी होते रहेंगे.

हमारे यहां एक कहावत कही जाती थी “किराना वारो कदी भुक्को नी मरे”, मतलब ये किकिराना व्यवसाय करने वाला आदमी कभी भूखा नहीं मर सकता. इसी तरह आपने एक और कहावत भी ज़रूर सुनी होगी “कहीं की ईट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा”, इस कहावत का मतलब भी आप जानते ही होंगे, पर क्या आप ये जानते हैं कि एक ऐसा भारतीय व्यंजन है, जो इस कहावत पर पूरी तरह फ़िट बैठता है? एक ऐसा व्यंजन जो इधर-उधर से जुगाड़ करके ही बनाया गया है… जी हां, आप सही समझे, वह व्यंजन है लगभग सभी भारतीयों की प्रिय डिश पाव भाजी.

कहानी पाव भाजी की: कहानी लगभग हर व्यंजन के पीछे होती है, पर पाव भाजी की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है और क्योंकि इसका आविष्कार मुंबई में ऐसे वक़्त में हुआ कि तब के लिखित दस्तावेज़ और सुने-सुनाए क़िस्से दोनों अभी मौजूद हैं तो पढ़ने, सुनने वाले और खाने वाले इस कहानी से ख़ुद को जोड़ भी पाते हैं.

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ये कहानी है 160 के दशक की. मुंबई में कपड़ा मिलें हुआ करती थी और महाराष्ट्र से और देश के अलग अलग राज्यों से आए मज़दूर इन मिलों में काम किया करते थे. कहा जाता है इन मज़दूरों का इन मिलों में बड़ा शोषण होता था. उनसे देर रात तक काम करवाया जाता था. अब क्योंकि ये लोग बाहर से आए हुए लोग थे, इनमें से कई अकेले रहते थे तो इन्हें रात को खाने के लिए भटकना पड़ता था. काम ये लोग मेहनत का करते थे तो इन्हें भोजन भी ऐसा चाहिए होता था, जो पौष्टिक भी हो, जिससे पेट भी भरे और जो साथ ही इनकी जेब पर भारी भी न पड़े. देर रात आसपास की होटलों में सिर्फ़ बची-खुची सब्ज़ियां ही रह जाती थीं और रोटी का मिलना लगभग मुश्क़िल-सा होता था. ऐसे वक़्त में इन्हें या तो भूखे सोना पड़ता या आधा-अधूरा सा खाना मिलता. इस समस्या के लिए आसपास की होटल वालों ने एक समाधान निकाला, उन्होंने बची हुई सब्ज़ियों को एकसाथ मिलाया और बटर डालकर अच्छे से मैश करके पाव के साथ परोसना शुरू कर दिया. इस व्यंजन को इन्होंने नाम दिया पाव भाजी. भाजी में तरह-तरह की सब्ज़ियां हुआ करती थीं, जैसे- आलू ,मटर, गोभी, गाजर, टमाटर तो इसका स्वाद मजदूरों को बहुत भाया और क्योंकि यह व्यंजन बची हुई सब्ज़ियों से बनाया जा रहा था तो इसका मूल्य भी कम था. धीरे-धीरे जब ये लोग अपने-अपने घर गए होंगे या घूमने फिरने वाले लोग मुंबई आए होंगे तो ये पाव भाजी देश के दूसरे हिस्सों में भी फैल गई.

पाव भाजी तेरे कितने रूप: आपको लग सकता है कि भाजी के क्या रूप? पर सच ये है कि भाजी जहां-जहां गई उसके स्वाद में उस राज्य का स्वाद जुड़ता गया और उसे बनाए जाने का तरीक़ा भी बदलता गया, गुजरात में इसे आलू मटर उबालकर उसमें शिमला मिर्च और टमाटर का तड़का देकर बनाया जाता हैं (गुजराती घरों में इसमें पत्ता गोभी भी मिल जाएगी आपको ) तो पंजाबी लोग इसमें खड़ा टमाटर नहीं डालते, टमाटर की प्यूरी का उपयोग करते हैं. वहीं महाराष्ट्र में आलू को उबालकर, लेकिन मटर, शिमला मिर्च, प्याज़ और टमाटर को काटकर डाला जाता है और ख़ूब पकाकर मैश किया जाता है.

पाव भाजी का एक जैन वर्शन भी आपको देखने मिलेगा, जिसमें आलू की जगह केला प्रयोग में लिया जाता है और क्यूंकि जैन वर्शन है तो इसमें से प्याज़ और लहसुन भी ग़ायब हो जाते हैं. कुछ लोग आपको इसमें आलू की जगह लौकी का प्रयोग करते भी मिलेंगे, जो इस आलू विरोधी वर्शन कहा जा सकता है.

कैसे बनाई जाती है: हर घर में लोग इसे अलग ढंग से बनाते हैं, पर इसकी सामान्य और जल्दी बनाए जाने वाली रेसिपी में आलू, मटर, गाजर,चुकंदर (अच्छे लाल रंग के लिए ) और टमाटर को जीरे के तड़के के साथ कुकर में दो-तीन सीटी तक उबाल लिया जाता है और फिर एक बड़ी कढ़ाई या तवे पर बटर डालकर प्याज़ और शिमला मिर्च को तेज़ आंच पर भूना जाता है. फिर डाला जाता है- पाव भाजी मसाला, कश्मीरी लाल मिर्च, नमक, धनिया, जीरा पाउडर और अदरक-लहसुन का पेस्ट. जब ये सब अच्छे से पक जाए तो मिलाई जाती है उबली हुई सब्ज़ियां और फिर इन्हें साथ में कुछ देर पकाने के बाद अच्छे से मैश किया जाता है. फिर डाला जाता है ढेर सारा बटर. साथ में सर्व किया जाता है, बारीक़ कटा हुआ प्याज और निम्बू. भाजी और प्याज़-नीम्बू के साथ सर्व किया जाता है बटर में सिका पाव या मसाला पाव (जो कसूरी मेथी धनिया पाव भाजी मसाला और थोड़ी भाजी के साथ तवे पर सेंका जाता है). तो है ना ये स्वाद और पोषण से भरी रेसिपी?

क़िस्सा पाव भाजी का: जब हम छोटे थे मध्यप्रदेश के स्थानीय लोगों के घरों में पाव भाजी का ख़ास चलन नहीं था. लोग कहीं से सुन-सुनाकर आलू, मटर, टमाटर की सब्ज़ी के साथ कुछ एक्सपेरिमेंट करते थे और उसे भाजी मान लेते थे. धीरे-धीरे लोग जब मुंबई घूमने जाने लगे तब भाजी में परिवर्तन आता गया. होटल में भी असली भाजी कही जा सकने वाली भाजी कम ही जगह मिलती थी.
खैर जब हम थोड़े बड़े हुए तो हालत बदल गए थे भाजी अपना रूप बदलने लगी थी, पर सच यही है की असली वाली भाजी मैंने बचपन कहे जाने वाले समय में कम ही खाई कॉलेज में पहुंचने के बाद ठीक-ठाक भाजी से पाला पड़ा.
ख़ैर… एक बार की बात है मेरी शादी के बाद हम किसी रिश्तेदार के घर गए. उन्होंने बाक़ी दूसरे व्यंजनों के साथ पाव भाजी भी बनाई थी और वो थी लौकी से बनी भाजी. उसे मैंने मुझे जितने भगवानों के नाम याद थे सब लेकर किसी तरह ख़त्म किया था. हालांकि, मुझे लौकी बुरी नहीं लगती पर भाजी कहकर लौकी खाना मेरी आत्मा पर अत्याचार जैसा है. वैसे वो भाजी बुरी नहीं थी, पर लौकी तो लौकी है साहब.
आपके भी कुछ क़िस्से होंगे पाव भाजी से जुड़े हुए, वो हमें भी बताइयेगा इस मेल आईडी पर: [email protected]

Tags: History of pav-bhajipav-bhajiweekly columnकनुप्रिया गुप्तापाव भाजी का इतिहासपाव-भाजीसाप्ताहिक कॉलम
कनुप्रिया गुप्ता

कनुप्रिया गुप्ता

ऐड्वर्टाइज़िंग में मास्टर्स और बैंकिंग में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा लेने वाली कनुप्रिया बतौर पीआर मैनेजर, मार्केटिंग और डिजिटल मीडिया (सोशल मीडिया मैनेजमेंट) काम कर चुकी हैं. उन्होंने विज्ञापन एजेंसी में कॉपी राइटिंग भी की है और बैंकिंग सेक्टर में भी काम कर चुकी हैं. उनके कई आर्टिकल्स व कविताएं कई नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं. फ़िलहाल वे एक होमस्कूलर बेटे की मां हैं और पैरेंटिंग पर लिखती हैं. इन दिनों खानपान पर लिखी उनकी फ़ेसबुक पोस्ट्स बहुत पसंद की जा रही हैं. Email: [email protected]

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