कहते हैं जब किसी चीज़ को स्पष्टता से देखना हो तो थोड़ा दूर जाकर देखना चाहिए. भारतीय राजनीति के घटनाक्रमों का हम भारत में रहकर शायद उतनी निष्पक्षता से आकलन न कर सकें. दूर अफ्रीका के ज़ाम्बिया में बैठकर देश की हलचलों पर पैनी नज़र रखनेवाले बिज़नेसमैन और राजनीतिक समीक्षक जय राय उन तमाम बिंदुओं पर सिलसिलेवार बात कर रहे हैं, जो हम लोगों की नियमित बातचीत में छूट जाती हैं.
जब आप देश के भीतर होते हैं तो आप तमाम भावनाओं से घिरे होते हैं. कभी कोई घटना आपको देश प्रेम से भर देती है और ठीक उसी दिन कुछ ऐसा होता है, जब आप सरकार की आलोचना भी करने लगते हैं. पिछले छह महीने से मैं भारत से बाहर हूं, और किसी भी भावना के बिना अपने भारत को हर दिन देखने की कोशिश करता हूं. प्रथा के अनुसार जब किसी से मिलता हूं तो ज़रूर पूछता है,“हाउ इज़ इंडिया?” मुस्कुराकर कहता हूं,“इंडिया इज़ डूइंग फ़ाइन.” मुझे पता है कि यह सही नहीं है. सच यह है कि आजकल मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी वाले देश भारत में “बापू की राम राज्य वाली संकल्पना ख़तरे में है.”
लोकतांत्रिक मूल्यों की आहुति
आजकल भारत में हमारे देशवासी अलग-अलग गतिविधियों में व्यस्त हैं. वर्ष 2023 की बॉलिवुड की सबसे बेहतरीन फ़िल्म 12वीं फ़ेल लोगों को ज़्यादा समझ में नहीं आई. फ़िल्म से लोगों को कोई मोटिवेशन नहीं मिला. लेकिन युवा वर्ग पूरे साल की सबसे वाहियात फ़िल्म एनिमल देखने के बाद मीम्स बनाने में व्यस्त है. सारे देशभक्त व्हाट्स ऐप यूनिवर्सिटी का फ़ेक सिलेबस पढ़कर व्हाट्स ऐप पर भारत का नया इतिहास लिख रहे हैं. मौजूदा समय में बापू कुछ लोगों की मजबूरी बन गए हैं तो कुछ लोग बापू को बिना पढ़े ही सिर्फ़ कही-सुनी बातों के आधार पर हर बहस में उनका चरित्र हनन करने में व्यस्त हैं. भारतीय प्रथा के अनुसार अगर बापू की पवित्र आत्मा अगर कहीं से इसे देख़ रही होगी तो उन्हें ज़रूर ग्लानि होती होगी कि सारी मेहनत बेकार गई. इसके अलावा तमाम हिन्दी और इंगलिश ख़बरिया न्यूज़ चैनल के ऐंकर और ऐंकराएं भारत की मौजूदा सरकार की प्रवक्ता के तौर पर काम कर रहे हैं. संसद के शीतकालीन सत्र में चार लोगों ने संसद की सुरक्षा की पोल खोल दी.उनके सुरक्षा घेरे से बाहर आकर उपद्रव मचाने के सवाल से 146 लोकसभा और राज्य सभा सांसद निलंबित हो गए और इसके साथ ही तमाम क्षेत्रों के प्रतिनिधि भी बाहर चले गए. ख़बरिया चैनलों ने कभी भी इस ख़बर को महत्व नहीं दिया.
शीतकालीन सत्र की शुरुआत से ही संसद में ‘नेहरू ने यह कहा, ऐसा किया, वैसा किया’ का शोर सत्ता पक्ष ने मचाया. पर ना तो गृहमंत्री और ना ही प्रधानमंत्री ने इस सवाल का जवाब दिया की सुरक्षा घेरा कैसे टूटा? इसके विपरीत जवाब में उन्हें संसद से बाहर जाना पड़ा. दरबारी मीडिया को उपराष्ट्रपति का मीम बनाते हुए नेता दिखाई दिए, उसे अपने कैमरे में रिकॉर्ड करते हुए राहुल गांधी दिखाई दिए, लेकिन वह बाहर क्या कर रहे थे, उसकी ख़बर नहीं मिली. 146 सांसदों का निलंबन आज़ाद भारत के संसदीय इतिहास का सबसे बड़ा निलंबन था इससे पहले इतनी बड़ी संख्या में किसी सरकार ने निलंबन नहीं किया था. मौजूदा सरकार ने अपने दस साल के कार्यकाल में सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.
पिछले दस साल में संसद बकैती का अड्डा बन गया है. नेताओं के निलंबन के बावजूद सरकार ने अपने मनचाहे बिल पास करवा लिए. विपक्ष के सवालों के जवाब में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को हमेशा नेहरू को चर्चा का विषय बनाना और अपने अधकचरा ज्ञान से देश का ध्यान भटकाने का काम किया गया. लोगों ने गृहमंत्री और प्रधानमंत्री को सुनकर अपने जनरल नॉलेज को आगे बढ़ाया. आजकल के मौजूदा परिवेश में माहौल यह है कि आप कहीं भी सुन सकते हैं. हमारी सारी समस्याओं की जड़ पुरानी सरकार है.
राहुल गांधी वर्सेज़ सरकार
पिछले दस साल में सरकार ने पूरे विपक्ष को झकझोर दिया है. ईडी और सीबीआई ने मौजूदा सरकार की हाथों-हाथ मदद किया है. समय- समय पर जो भी नेता सरकार की सुनने से इंकार किया उसे जेल का चक्कर लगाते हुए देखा गया. पूरे दस साल के कार्यकाल के शुरुआत से ऐसा लगा कि सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या राहुल गांधी बने रहे. कार्यकाल के शुरुआत से ही अपने प्रायोजित कार्यक्रम के तहत सरकार द्वारा राहुल गांधी को पप्पू बताया गया. राहुल गांधी के अलावा विपक्ष का कोई भी नेता इतना मुखर नज़र नहीं आया. राहुल गांधी एक अकेले ऐसे नेता रहे, जो समय-समय पर सरकार से टकराते हुए नज़र आए. संसद में अडानी के सवाल के बाद उनकी सदस्यता चली गई, बावजूद इसके जब भी मौक़ा मिला सरकार के सामने सिर्फ़ एक ही आदमी नज़र आया वह थे राहुल गांधी. राहुल गांधी का कभी भी देश से बाहर जाना गोदी मीडिया द्वारा उसी तरह कवर किया जाता है, जैसे कि राहुल गांधी ही देश चला रहे हैं. नेताओं में ईडी और सीबीआई का डर इस कदर समाया है कि जब जहां ज़रूरत पड़ी कमल का फूल खिला दिया गया. महाराष्ट्र ऑपरेशन लोटस इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जो अभी तक क़ानूनी दाव पेंच में फंसा हुआ है. राहुल गांधी की बातों को प्रभावहीन करने में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ा. सरकार को संसद में विपक्ष नहीं चाहिए. सवाल नहीं चाहिए. लोगों के प्रतिनिधि करने वाले सांसद सरकार के सामने एकदम चुप की मुद्रा में नज़र आने चाहिए. पिछले दस साल में विपक्ष लगभग पूरी तरह ख़त्म हो गया है. राहुल गांधी एक अकेले पूरे विपक्ष की भूमिका में नज़र आए जो बताता है कि संसदीय परंपरा की साख दाव पर है.
सरकारी आंकड़ों से परहेज़
मौजूदा सरकार ने कभी भी सरकारी आंकड़ों तक को ज़्यादा तवज्जो नहीं दिया. नोटबंदी के दौरान सीमित समय में पैसों को बैंक में जमा करने और बैंक से निकालने के घोषणा के दौरान लोगों में अफ़रातफ़री मच गई थी. नोटबंदी के दौरान एटीएम की क़तार में और बैंकों के सामने वाली क़तारों में कई लोगों की जान चली गई. जिसे मौजूदा सरकार ने संसद में कभी भी स्वीकार नहीं किया. जानकारी के अधिकार के तहत बहुत सारे लोगों ने समय-समय पर जानना चाहा कि नोटबंदी का आधार क्या थे. किस आंकड़े के तहत इसे अमली जामा पहनाया गया था. सरकार ने कभी भी बताना ज़रूरी नहीं समझा. 2019 के आख़िरी में सीएए और एनआरसी आंदोलन के दौरान सरकार ने लोगों को सुनना कभी पसंद नहीं किया, आंदोलन को समझने की कभी कोशिश नहीं की. कोविड-19 को बिना अनुमान और बिना प्लानिंग के लॉकडाउन ने पूरे देश को घुटनों पर खड़ा कर दिया. शहर से लोगों का पलायन के दौरान सैकड़ों लोगों की जानें चली गईं मौजूदा सरकार फिर से आंकड़े स्वीकारने से मना कर दिया. अपने पूरे कार्यकाल के दौरान कितने लोगों को नौकरी मिली सरकार ने कभी नहीं बताया. जातिगत जनगणना के सवाल पर भी सरकार ने क़दम पीछे खींच लिया. मौजूदा समय में प्रोपैगेंडा के तहत प्रधानमंत्री मोदी की जगह-जगह सेल्फ़ी पॉइंट पर जनता के कितने पैसों की बर्बादी की गई, सरकार ने अभी तक नहीं बताया.
वास्तविक मुद्दों से परे की राजनीति
भारतीय जनता पार्टी ने हमेशा प्रोपैगेंडा की राजनीति की, जब विपक्ष वास्तविक मुद्दों की बात करती है तब भाजपा उसे बरगलाने के लिए किसी और मुद्दे का सहारा ले लेती है. 2014 के चुनाव में भाजपा ने भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाया और 2019 में भाजपा ने अपने चुनावी प्रचार को कश्मीर में हुए पुलवामा हमले को मुद्दा बनाया और प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक मंच से लोगों को वोट डालने की अपील की. अलग-अलग राज्यों में होनेवाले चुनावों में भाजपा ने वास्तविक मुद्दों को छोड़कर धर्म, पूजा, आस्था, फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद और पाकिस्तान से जोड़ दिया. मौजूदा समय में प्रधानमंत्री मोदी को पूरे भारत में प्रदर्शित करने के लिए अलग-अलग जगह पर सेल्फ़ी पॉइंट लगा दिया है.
महंगाई बेरोज़गारी की बात करने के अलावा भाजपा उन सारे मुद्दों की बात करती है, जिससे लोगों में भाजपा के प्रति आकर्षण बना रहे. अब भाजपा 2024 में राम मंदिर के मुद्दे को चुनाव प्रचार का सहारा बना रही है, क्योंकि इस वर्ष का चुनाव अब ज़्यादा दूर नहीं है. इसके अलावा अगर भाजपा को कभी महसूस हो जाए कि राम मंदिर का मुद्दा काम नहीं कर रहा है. ऐसे में मौजूदा सरकार के पास एक तुरुप का पत्ता बचा है की मौजूदा सरकार चुनाव से ठीक पहले पेट्रोल और डीज़ल को जीएसटी स्लैब में ला सकती है.
Photo Courtesy: Millennium Post