पेरिमेनोपॉज़ उस समय को कहा जाता है, जब किसी महिला में मेनोपॉज़ से जुड़ा बदलाव शुरू होता है. अमूमन यह महिलाओं में उम्र के चौथे दशक में शुरू होता है, लेकिन बदलती लाइफ़स्टाइल या अन्य कारणों के चलते यह जल्दी भी शुरू हो सकता है. इस दौरान महिलाओं को कई तरह की समस्याएं महसूस होती है. यहां हम इसी बारे में बात कर रहे हैं कि पेरिमेनोपॉज़ के दौरान महिलाओं को क्या समस्याएं होती हैं और इनसे पार पाने के लिए क्या किया जा सकता है.
मेनोपॉज़ का अर्थ है महिलाओं पीरियड्स का बंद होना. पर पीरियड्स का आना अचानक ही बंद नहीं हो जाता. पेरिमेनोपॉज़ उस समय को कहा जाता है, जब मेनोपॉज़ के लिए महिलाओं का शरीर ख़ुद को तैयार कर रहा होता है. यह वह समय है, जब ओवरीज़ धीरे-धीरे एस्ट्रोजेन का उत्पादन कम कर रही होती हैं. हालांकि यह प्रक्रिया महिलाओं में तब शुरू होती है, जब उनकी उम्र 40 या उससे अधिक होने लगे, लेकिन कई महिलाओं में यह उम्र के तीसरे दशक में भी शुरू हो जाता है.
मेनोपॉज़ से पहले- महिलाओं का शरीर जब ख़ुद को पीरियड्स को बंद करने के लिए तैयार करता है, वह समय पेरिमेनोपॉज़ कहलाता है. पेरिमेनोपॉज़ तब ख़त्म होता है, जब मेनोपॉज़ हो जाए यानी पीरियड्स का आना बंद हो जाए. इसका सीधा मतलब ये है कि ओवरीज़ एग्ज़ बनाना बंद कर दें. पेरिमेनोपॉज़ के आख़िरी एक या दो सालों में महिलाओं के भीतर एस्टोजेन नामक हॉर्मोन में तेज़ी से कमी होने लगती है. इस समय महिलाओं को कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं, जिन्हें मेनोपॉज़ का लक्षण कहा जाता है.
कितना लंब होता है पेरिमेनोपॉज़ का समय- औसतन पेरिमेनोपॉज़ चार वर्ष तक चलता है, लेकिन हर महिला के लिए यह समय अलग भी हो सकता है. कुछ महिलाओं में यह केवल कुछ महीनों तक ही चलता है, जबकि कुछ में इसकी अवधि 10 वर्ष तक लंबी भी हो सकती है. पेरिमेनोपॉज़ल का अंत तब माना जाता है, जब 12 महीनों यानी सालभर की अवधि तक महिला को एक बार भी पीरियड न आए.
क्या हैं पेरिमेनोपॉज़ के संकेत- पेरिमेनोपॉज़ के कई संकेत हैं, जैसे- मूड स्विंग्स, हॉट फ़्लश, ब्रेस्ट का कोमल होना, प्रीमेन्स्ट्रुअल सिंड्रोम का बढ़ना, थकान, अनियमित पीरियड्स, नींद में कमी, वजाइनल ड्राइनेस, खांसते, छींकते या हंसते समय पेशाब निकल जाना, बार-बार पेशाब आना, पीरियड्स का लंबे समय तक चलना, ज़्यादा रक्तस्राव होना या थक्के आना, दो पीरियड्स के बीच स्पॉटिंग होना, इंटरकोर्स के बाद स्पॉटिंग होना, दो पीरियड्स के बीच में अंतर कम हो जाना वगैरह पेरिमेनोपॉज़ के संकेत हैं.
पेरिमेनोपॉज़ के दौरान किन बातों का ध्यान रखें- सबसे पहले तो यह बात ध्यान में रखें कि यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और हर महिला इस दौर से गुज़रती है. अत: पेरिमेनोपॉज़ के दौरान जो समस्याएं आपको हो रही हैं, आपकी उम्र की हर महिला लगभग उन्हीं समस्याओं से गुज़र रही है. यदि वे इन समस्याओं से जीवटता से जूझ रही हैं तो आप भी ऐसा कर सकती हैं. यह सोच अपने आप में आपको संबल देगी. इसके अलावा इन बातों का ध्यान रखें:
- पेरिमेनोपॉज़ के समय महिलाओं को अच्छी तरह नींद नहीं आती, जो उनके चिड़चिड़ेपन या थकान का कारण बनती है. जब लंबे समय तक ऐसा चलता है तो उन्हें लगता है, जैसे दिमाग़ में धुंध (ब्रेन फ़ॉग) छा गई हो. वे सामान्य बातों को भूलने लगती हैं. ऐसा शरीर में कम होते एस्ट्रोजेन के स्तर की वजह से होता है. आपको यह याद रखने की ज़रूरत है कि यह एक अस्थायी समस्या है, जो मेनोपॉज़ यानी पीरियड्स के बंद हो जाने पर ख़ुद ब ख़ुद ठीक हो जाती है.
- पेरिमेनोपॉज़ वाले समय में आपको अपनी डायट पर ध्यान देना चाहिए और ताज़े फल व सब्ज़ियां अपनी डायट में शामिल करें, जंक फ़ूड खाने से बचें. कैल्शियम से भरपूर डायट लें. संतुलित आहार लें, ताकि आप अपने वज़न को नियंत्रित रख सकें.
- इस दौरान शारीरिक गतिविधियों पर ध्यान दें और तनाव व ब्रेन फ़ॉग से निपटने के लिए योग और प्राणायाम को दिनचर्या में शामिल करें. इससे आपको नींद भी अच्छी आएगी.
- यदि आप धूम्रपान और ऐल्कहॉल का सेवन करती हों तो इसे बंद कर दें.
- यदि आपको ज़्यादा समस्या हो रही हो तो आप डॉक्टर की सलाह लें. इस बदलाव के समय में अपनी शारीरिक और मानसिक सेहत का ख़्याल रखने के लिए वे आपको मल्टिविटामिन व अन्य दवाएं देंगे.
यह ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है- पेरिमेनोपॉज़ के दौरान कई महिलाओं को सेक्शुअल रिलेशन बनाने की इच्छा नहीं होती. इसके लिए भी डॉक्टर से सलाह ले कर दवाइयां ली जा सकती हैं. लेकिन यह याद रखें कि भले ही इस दौरान धीरे-धीरे आपकी फ़र्टिलिटी कम हो रही है, लेकिन तब भी आप प्रेग्नेंट हो सकती हैं. अत: सेक्शुअल संबंध बनाते समय कॉन्ट्रासेप्टिव का इस्तेमाल ज़रूर करें.
फ़ोटो: फ्रीपिक