यात्राएं करना पसंद करने वाली रीना पंत चीन की यात्रा पर यूं भी जाना चाहती थीं. और जब उनकी बेटी वहां पहुंच गई तो उनकी यह इच्छा और जल्दी व और आसानी से पूरी हो गई. आइए उनसे जानते हैं, उनकी चीन की यात्रा के अनुभव. अपने अनुभव के पहले हिस्से में वे बता रही हैं चीन के शहर हांग्ज़ोउ को देखना कैसा रहा.
मुझे यात्रा करना बहुत पसंद है. शहर, शहरों को जोड़ने वाले हाइवे, हाइवे के किनारे बसे गांव, गांव में रहते लोग, ढाबे, नदी, पेड़, मौसम सभी कुछ पसंद है. छुट्टी होते ही अक्सर हम नज़दीक या दूर निकल ही जाते हैं. इस बार हमने चीन जाने का तय किया. चीन हमेशा मेरे लिए जिज्ञासा बना रहा. बिना कारण जाना संभव नहीं होता, पर पिछले कुछ सालों से बिटिया वहां रह रही थी इसलिए जाना संभव हुआ.
बीस दिन के छोटे से कार्यक्रम में हम तीन शहरों को मुख्य रूप से चुना. पहला शहर था- बीजिंग. वह इसलिए कि यह चीन की राजधानी है. चीन जाकर वॉल ऑफ़ चायना देखे बिना नहीं लौटा जा सकता था और दूसरा मैंने फ़ॉरबिडन सिटी (Forbidden City) उपन्यास पढ़ा था इसलिए मुझे फ़ॉरबिडेन सिटी तो देखनी ही देखनी थी. दूसरा शहर हमने शांघाई चुना, आर्थिक राजधानी होने के साथ कई बार पढ़ा था कि मुंबई को भी शांघाई जैसा बनाया जाना था और तीसरा शहर हांग्ज़ोउ, जो हमारा बेसकैंप था और बिटिया वहीं रहती है.
मुंबई के तीस डिग्री तापमान से हम हॉन्गकॉन्ग होते हुए लगभग दस घंटे का सफ़र कर हांग्ज़ोउ पहुंचे. उस समय हांग्ज़ोउ में तीन बजे थे. भारत और चीन के समय में ढाई घंटे का अंतर है. वहां का तापमान उस दिन नौ डिग्री था. उमस भरी गर्मी से कड़ाके की ठंड तक का सफ़र इस कारण तय कर पाए कि एयरपोर्ट, कैब और घर में हीटर का उचित प्रबंध था.
हांग्ज़ोउ अपने सौन्दर्य के अलावा ‘मास्टर जैक मा’ की ‘अलीबाबा कंपनी’ के कारण जाना जाता है. कहा जाता है मार्को पोलो जब यहां घूमने आया तो उसने यहां की सुंदरता को देख इस स्थान को दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत जगह कहा था. मार्को पोलो का स्टैच्यू ‘वेस्ट लेक’ के पास बनाया गया है. ‘वेस्ट लेक’ चारों ओर पहाड़ों से घिरी एक बड़ी झील है. चारों ओर घूमने का ट्रैक बनाया गया है. भीड़ से भरी इस जगह में जब हम घूम रहे थे तो भी यह जगह शांत और सुकून दे रही थी और हमको नैनीताल की याद आ रही थी (हालांकि यह झील नैनीताल की झील से कई गुना बड़ी है).
मुझे यहां के लोग प्रकृति-प्रेमी लगे. वे लोग प्रकृति का ख़ूब आनंद तो लेते हैं पर शोर और गंदगी से बचते हैं. झील के किनारे -किनारे युन्नान और चीनी लाल पाइन के साथ-साथ ओक, लार्च और चीनी देवदार लकदक थे. लोग अधिकतर पैदल घूमते हैं, पर कुछ लोग पर्यटक गाड़ियों में भी घूमते हैं. जिनके लिए रास्ता ही अलग है.
हांग्ज़ोउ शहर क्वआंतंग नदी के दोनों ओर बसा है. यह वही शहर है, जहां वर्ष 2023 के एशियाई खेल हुए. पूरे शहर में नदी से निकाली नहरों का जाल सा बिछा है. ऊंची और ख़ूबसूरत इमारतों से सजे शहर में रात को रोशनी जगमगाती है तो यूं लगता है मानो पूरा शहर दीवाली मना रहा है.
हांग्ज़ोउ में मौजूद बहुत सी सुंदर जगहों में से एक जगह है- वेटलैंड लेक, जहां हमने नौकायन का आनंद लिया. सूर्यास्त के समय पेड़ों से झांकती किरणों और चीन की सुगंधित चाय पीने का मज़ा ही कुछ और है. हांग्ज़ोउ अपनी बेहतरीन चाय और सिल्क के लिए प्रसिद्ध है. चाय हमने खूब पी, पर वहां की करेंसी को अपने रुपए में बदलने की आदत के कारण सिल्क ख़रीदने की हिम्मत नहीं हुई. वैसे भी घूमना हमारा मुख्य उद्देश्य था, ख़रीदारी नहीं.
यहां मुझे सबसे अच्छी बात ये लगी कि लोग अमूमन छह बजे खाना खा लेते हैं. चौराहों में जगह-जगह बगीचे बने हैं और वहां सात बजे से प्लाज़ा डांस होता है. जिसमें बुज़ुर्ग और युवा नाचते हैं. बुज़ुर्ग बच्चों को लेकर आ जाते हैं. बच्चे खेलते हैं और बुज़ुर्ग नृत्य करते हैं. मैंने भी उनके साथ नाचना सीखा, जिसे नृत्य कम और व्यायाम ज़्यादा कहा जा सकता है. शायद यह जिम की जगह व्यायाम को दिलचस्प बनाने का तरीका हो.
चीन की लड़कियां बेहद ख़ूबसूरत और नाज़ुक होती हैं. वे अपना विशेष ध्यान रखतीं हैं. यही कारण होगा कि वहां स्पा, जिम, पार्लर बहुत हैं. बड़े-बड़े ब्रांडों से बाज़ार भरा पड़ा है. न्यूयॉर्क से हेयरकट में पारंगत केन ने मेरा भी रूप बदल दिया (भले ही कुछ समय के लिए). पूरे समय केन मुझसे भारत के बारे में ही बात करता रहा. उसे चटपटी भारतीय करी खाने की बड़ी इच्छा है. वो भारत आकर ताजमहल देखना चाहता है. उसके सभी मित्र तिब्बत घूम आए हैं, पर वो नहीं जा पाए. जल्दी ही वह हमसे मिलने आएंगे.
भोजन और भाषा हमारे लिए मुश्किल बने. अंग्रेज़ी का प्रचलन भी बहुत कम है. भोजन में नॉनवेज खाना अधिक रहता है. हरी सब्ज़ियों का प्रयोग बहुतायत में होता है. स्टीम्ड फ़ूड ज़्यादा खाया जाता है. लोग बहुत फल खाते हैं. बाज़ार में लोग ईख खरीदते दिखे. सांप, बिच्छू, मेंढक, केंचुए खाते लोग कहीं नहीं मिले, न ही यह सब किसी रेस्तरां के मेन्यू में मिला. बेटी के साथियों को जब भारतीय भोजन खिलाया तो उन्होंने मेरे बनाए खाने को वहां के भारतीय रेस्टोरेंट ‘टाकोज़ और पिटाज़’ से कई गुना बेहतर बताया.
हमारी तरह ही वहां के लोग भी हमारे देश, लोक, खान-पान और पहनावे के बारे में जानना चाहते हैं. मुंबई के उपनगर वसई के रहने वाले माइकल हांग्ज़ोउ में बसे विदेशी भोजन प्रेमियों के बीच ख़ासे लोकप्रिय हैं. ‘मुंबई चा मुलगा माइकल’ ने हमें बेहतरीन वेज चाइनीज़ खाना खिलाया. चीन में इंटरनैशनल स्कूलों में पढ़ाई बहुत महंगी होने के कारण विदेशी लोग अपने बच्चों को अपने देश में पढ़ाते हैं. यही वजह है कि माइकल के बच्चे मीरा रोड के स्कूल में पढ़ते हैं. इस शहर की हफ़ांग स्ट्रीट अपनी चमक-दमक, चांदी के गहनों, चाय, शुगर कोटेड फ्रूट्स के लिए मशहूर है.
फ़ोटो साभार: रीना पंत