क्रिस्मस पर एक महिला की सहृदयता और संवेदनशीलता को याद करती हुई कहानी. यह कहानी बता जाती है कि मदद करने के लिए हमारा जज़्बा ज़्यादा महत्वपूर्ण है, यह बात नहीं कि हमारी जेब में कितने पैसे मौजूद हैं.
दिसंबर का महीना आते ही बड़ी याद आती है मुझे मैरी और फिर उसका बड़ा दिन यानी क्रिस्मस. मैरी को हमारी ज़िंदगी से गए पूरे सात साल हो गए पर लगता है मानो कल ही बात हो. आठ साल पहले हम अपने इस नए घर में, जुबली हिल जैसे पॉश इलाक़े में शिफ़्ट हुए थे. पुराने घर पर भी तीन नौकर थे, लेकिन एरीया बदल जाने से वे साथ नहीं आ सकते थे. ये गेटेड कम्यूनिटी थी, इसके ठाट निराले थे. सुबह मेन गेट पर चार और रात छह सीक्योरिटी गार्ड, कॉमन गार्डन के पांच माली, सोलह हाउस कीपिंग स्टाफ़ देख कर दिल घबरा रहा था कि अब यहां कुक न जाने कैसे और कितने में मिलेगी. पेशे से हम पति-पत्नी दोनों डॉक्टर इसलिए बिना हाउस हेल्प के ज़िंदगी की गाड़ी का आगे बढ़ना बड़ा मुश्किल था. बच्चे बिंदास थे, “मॉम नो प्रॉब्लम, वी विल ऑर्डर वॉट एवर वी लाइक. आप भी बता दीजिए, थाली से लेकर चाइनीज़ तक सब कुछ घर बैठे. वाय डोंट यू लॉक योर किचन फ़ॉर सम टाइम?“
मेरे तो पैरों तले ज़मीन खिसक गई. बाप रे! कैसे करूंगी सब? सासू मां भी साथ रहती हैं उन्होंने मेरी ओर आंखें तरेरीं, “तुम्हारी गृहस्थी है, तुम्हारे बच्चे और पति भी तुम्हारा. मेरे से कोई आशा ना रखना. मैं खाती ही क्या हूं- दो रोटी और इत्तु सा चावल.“ साथ ही इत्तु सा दिखाने वाला हाथ का इशारा भी किया .
पति ने भी जैसे उन्हीं का साथ दिया, “क्या हो जाता है इन्दु तुम्हें? तुम भी ना… याद है शादी के बाद तुम कितनी कुकरी की मास्टर बन गई थीं. तुम्हारे उस पुराने अवन के कच्चे पिज़्ज़ा और बेक्ड वेजटेबल याद हैं? किसी तरह निगलता था उन्हें मैं बेचारा…”
मन तो किया इस बेचारे की गर्दन ही दबा दूं. तब तो यह कहते हुए खाते थे कि “वाह क्या बनाया है, तुम्हारे हाथों में जादू है. मैं कितना लकी हूं तुम्हारी जैसी सर्वगुण सम्पन्न बीबी मिली है.“ और आज अपनी अम्मा को देख इतनी हिम्मत?
घर तो साझा होता है. सासू मां सबसे फ़ोन पर कहती हैं, “हमारा घर बहुत बड़का है. चारों तरफ़ सख़्त पहरा है. अच्छी हवा आती है.“
पति अपने दोस्तों में शान बघारते हैं, “वाय डोंट यू कम टू माई प्लेस. विल सिट ऐंड चैट… देअर इज़ अ लॉट ऑफ़ स्पेस.”
बच्चे अपने दोस्तों को बुलाने में पीछे नहीं रहते थे, “दिस वीकेंड कम टू माई प्लेस. इफ़ यू डोंट हैव एनी अदर प्लैन.”
और जब सफ़ाई और किचन की बात होती है तो मैरी गृहस्थी. मैं जानूं.
क्या करूं अब? यह सोचते हुए मैं अपना पसीना ही पोंछ रही थी कि एक गार्ड जिसका नाम क्रिस्टोफ़र था मुझसे मिलने आया. बोला, ‘‘डॉक्टर साहेब आपको कुक चाहिए क्या? एक हाउसकीपिंग स्टाफ़ बता रही थी.“
मैं तो जैसे ख़ुशी से उछल ही पड़ी, “हां, हां, बताओ कौन है? कहां है? मिलने बोलो.“
“मैरी. मेरी बहन है मैडम. एक डॉक्टर के यहां काम करती थी. उनका पूरा घर सम्भालती थी. डॉक्टर साहेब वापस अपने होम टाउन चले गए हैं तो वह काम ढूंढ़ रही है.”
मैंने कहा, “ठीक है ले आओ शाम को उसे.“
शाम को एक कुक आने वाली है इस सोच ने ही मानो पूरे शरीर में ऊर्जा भर दी. मैं जल्दी-जल्दी घर के काम निपटाने लगी. बिटिया बोली, “वाउ मॉम आप तो इतना काम कर रही हो.”
बेटा चिल्लाया, “मॉम मेरे लिए पनीर परांठा.“
पति ने फ़रमाइश की, “मुझे अंडा पराठा.”
सासू मां का फ़रमान आ गया, “सादी दाल और थोड़ा चावल या फिर पतली मूंग दाल की खिचड़ी.”
बिटिया ने जैसे मुझे तसल्ली सी दी, “यू डोंट हैव टू वरी. आई विल मेक मैगी फ़ॉ माई सेल्फ़.”
बाप रे! तब तो सबसे ज़्यादा वरी है. पूरा किचन प्लेटफ़ॉर्म तो आज इथियोपिया या सूडान बन जाएगा. मेरे तो हाथ पैर ही फूल गए.
मन में बस एक ही अरमान था कि कब शाम हो और नई कुक आ जाए. शाम हुई और एक सांवली सी, लम्बी, बड़े सलीके से साड़ी पहनी और चेहरे पर चमक लिए मैडम कुक हाज़िर थीं.
“गुड इवनिग़ मैम, मैं मैरी.”
आवाज़ भी इतनी साफ़ और मधुर. मैं तो बेइंतहा ख़ुश. मैरी ज़रूरत इतनी ज़्यादा थी कि मैंने ये भी नहीं पूछा कि कितने पैसे लेगी सीधे दूसरे दिन से आने का कह दिया.
दूसरा दिन तो महीने का अभूतपूर्व दिन था. सुबह-सुबह ही सबसे पहले, “गुडमॉर्निंग मैम, गुड मॉर्निंग सर, गुड मॉर्निंग मां जी, गुड मॉर्निंग बाबा“ से शुरू हुआ. बच्चे भी बाबा और बेबी बन गए. उस दिन के बाद घर तो मानो ख़ुद का स्विगी और ज़ोमाटो बन गया. बेटा कभी ऑर्डर करता, “मैरी आंटी आज एगरोल तो कभी पिज़्ज़ा तो कभी मंचूरीयन.’’ मैरी ने किचन इस तरह सम्भाल लिया था मानो उसका ख़ुद का घर हो. हम सब मैरी पर फ़िदा थे.
एक दिन मैं हॉस्पिटल से आकर मैं अपनी एक पुरानी नाइटी ढूंढ़ रही थी, जो मुझे बहुत प्यारी थी उसके योक में की गयी कश्मीरी कढ़ाई की वजह से. मेरे चिल्लाने पर बेटी ने कहा, “अरे वो तो मैंने मैरी आंटी को दे दी.”
मैंने पूछा, “क़िससे पूछकर?”
बेटी भी चिल्लाई, “अरे आंटी को अच्छी लगी तो उन्होंने मांगी. वैसे भी पुरानी हो चली थी, दे दी. आप तो ना… ग़ज़ब ही हो.“
ऐसा पहली बार हुआ था कि बिटिया ने मुझसे बिना पूछे मैरी कोई चीज़ किसी को दी हो. मुझे झटका सा लगा. बाद में पति, बेटा और सासू मां भी मेरे छोटेपन की हंसी उड़ाने लगे कि एक पुरानी नाइटी के लिए मैं कितना हल्ला मचा सकती हूं.
दूसरे दिन सुबह मैंने मैरी से पूछा, “मैरी तुमने मैरी नाइटी क्यों मांगी.”
मैरी ने मुस्कुराते हुए कहा, “आप भी ना मैम, कितना हल्ला मचा रही हैं. वो भी एक पुराने कपड़े के लिए, जो पूरा घिस गया था. हमको एम्ब्रॉड्री पसंद आ गया था, इस लिए बेबी से मांग लिए.“
बेटी अपने कमरे से ही चिल्लाई, “क्या मॉम आज फिर वही सुबह-सुबह.”
पति भी आ पहुंचे किचन में, “बाप रे, फिर वही नाइटी! रात से वही सुन रहा हूं.“
मुझसे मेरी बेज़्ज़ती नहीं झेली जा रही थी. मैंन चुपचाप वहां से निकल लेने में ही भलाई समझी. मैरी ने जैसे विजयी मुस्कान बिखेरी. मेरे घर को इतना सुख देने वाली मैरी उस दिन मुझे बहुत भारी लगी. और उस दिन के बाद घर से कभी किचन से कई चीज़ें और बच्चों के पुराने कपड़े, जूते, बेटी के पुराने ईयरिंग्स, ब्रेसलेट मैरी को बिना मेरी जानकारी के भेंट में दिए जाने लगे. मुझे पता तब चलता जब बिटिया आवाज़ लगाती, “मॉम आज आते वक़्त ब्लू और ऑफ़वाइट लेगिंग्स ले आना.“
मैं पूछती, “थी तो ना तुम्हारे पास, चेक करो कबर्ड में.”
बिटिया बताती, “टाइट हो गई थी मॉम, मैरी आंटी को दे दी.”
मैं समझ जाती कि कुछ बोलना बेकार है. मीडियम साइज़ कब ये छोटी मैडम को टाइट हो सकता है. मैं भी जानबूझकर कहती, “इस बार लार्ज ले आती हूं अगर मीडियम भी टाइट हो रही है तो.“
बिटिया गुर्राती, “आर यू मैड? स्मॉल लाओ. मैं और लार्ज?”
इस तरह ज़िंदगी चल रही थी, जिसमें सब बहुत ख़ुश थे और सबके दिलो-दिमाग़ में मैरी आंटी छाई थी. पति देव भी ‘‘मैरी मैरी’’ कहते नहीं थकते थे. आए दिन बच्चों के दोस्त घर पर आते और मैरी आंटी के दीवाने बन जाते. इटैलियन, चायनीज़, मुग़लई जो खाना चाहते मैरी आंटी पारंगत. उनके दोस्त भी अपने पुराने कपड़े और पुराने खिलौने लाकर देते. मैं मन ही मन सोचती ये क्या करती होगी इन सबका? तनख़्वाह भी अच्छी ख़ासी देते हैं फिर सब चुपचाप टिप भी देते थे. मेरे दोस्तों ने समझाया जब ज़िंदगी अच्छी भली चल रही है तो फिर क्यों सिर खपाना. पुरानी चीज़ें और वो भी मांग कर ले जा रही है, घर साफ़ हो रहा है तेरा. और तो और मैरी सहेलियों ने भी अपने पुराने सामनों की मैरी पर वर्षा शुरू कर दी. घर आते ही मैरी हाज़िर. मैरी की कॉफ़ी, कोल्ड कॉफ़ी या जलजीरा सब कुछ ‘‘बियॉन्ड दिस वर्ल्ड’’ था.
एक दिन मैंने पूछ ही लिया, “ये सब किसके लिए ले जाती हो मैरी?”
मैरी का जवाब था, “मेरे घर में दस बच्चे है मैम.“
मैंने पूछा, ‘‘किसके? तुम्हारे भाई की तो शादी भी नहीं हुई है. तुम भी स्पिंस्टर हो, तुम्हारे भाई ने बताया था. अडॉप्ट कर लिए हैं क्या?’’
उसने ठीक से उत्तर नहीं दिया. किसी ने बताया था डॉक्टर साहेब अपना पूरा घर मैरी के सुपुर्द कर गए हैं.
ख़ैर… मैरी चोर नहीं थी, बिना मांगे कुछ लेती नहीं थी. मेरे लिए इतना काफ़ी है यह सोचकर मैं चुप रह गई. पलक झपकते ही छह महीने बीत गए और दिसंबर का महीना आ गया. पहली तारीख़ से ही मैरी ने कहना शुरू कर दिया कि बड़ा दिन आने वाला है. तब बच्चों को पहली बार पता चला कि क्रिस्मस को बड़ा दिन भी कहते है. रोज़ वो अपने घर पर एक केक बनाती और मेरे दोनो बच्चों के लिए उनका हिस्सा लेकर आती. मेरी बेटी इनु और बेटे ईशान ने अपनी गुल्लक तोड़ सारे पैसे, जो क़रीब बीस हज़ार थे मैरी को उसके बच्चों के क्रिस्मस मनाने के लिए दे दिए थे, जिसका पता मुझे बहुत बाद में चला. पति से भी उसने पांच हज़ार ऐंठ लिए और तो और कभी अपना पर्स ना खोलने वाली मांजी से भी हज़ार रुपए उसे उसके बच्चों के लिए मिल गए. रोज़ वो बच्चों को बड़े दिन की कोई ना कोई कहानी सुनाती. बच्चों ने घर पर मेहनत से मैरी आंटी की मदद से एक सुंदर क्रिस्मस ट्री बनाया और एक दिन अपने दोस्तों को बुला प्री क्रिस्मस पार्टी भी दी. मुझे छोड़
घर पर सभी बड़े ख़ुश और मैरी का गुणगान कर रहे थे. रोज़ घर पर नए नए तरीक़े के पकवान बनते और बच्चे स्कूल भी टिफ़िन में ले जाते.
सभी को अब पच्चीस दिसंबर यानी बड़े दिन का इंतज़ार था. इतना इंतज़ार तो दिवाली का भी न था. देखते-देखते बीस दिसंबर आ गया, लेकिन उस दिन मैरी नहीं आई. ख़ूब फ़ोन किया, लेकिन किसी ने फ़ोन ही नहीं उठाया. उसके भाई क्रिस्टोफर, जो गार्ड था, का भी कोई पता नहीं था. बच्चे बड़े उदास कि ज़रूर उनकी आंटी बीमार होगी. एक हफ़्ते तक मैरी की कोई ख़बर नहीं मिली. फिर से किचन इथियोपिया बन गया.
हम भी मजबूर थे पर मैरी का कितना इंतज़ार करते? मैरी का रिप्लेसमेंट थी बिहारी कुक पूजा रानी. वह मैरी जैसी तो नहीं थी, पर एक ठीक-ठाक कुक थी. मैरी बेटी इनु का तो रो रो कर बुरा हाल था. इतनी तैयारी बड़े दिन की की थी, पर बिना मैरी आंटी सब फुस्स. सैंटाक्लॉज़ के कपड़े बैग सारी चॉकलेट और केक बनाने का प्लान सब कुछल धराशायी हो गया. हम सब के लिए मैरी एक पहेली बन गई. कई चीज़ें घर से नदारद थीं, लेकिन कुछ भी पूछने पर बच्चे कहते, “हमने आंटी को दी थी.”
तीस दिसम्बर को स्कूल से आते वक़्त बेटी को घर के गेट पर वो गार्ड दिखा, जिससे मैरी और उसका भाई क्रिस्टोफर काफ़ी बातें करते थे. घर आने के बाद वो और बेटा इशु तुरंत उस गार्ड से अपनी मैरी आंटी की ख़ैर ख़बर लेने गए. उसने बताया कि उसने भी उन्हें काफ़ी दिनो से नहीं देखा, पर वो उनका घर जानता था. इनु और इशु तो अपनी मैरी आंटी से मिलने के लिए पागल हो रहे थे और उसके घर भी जाना चाहते थे. मैं उन्हें अकेले मैरी के घर नहीं भेजना चाहती थी. शाम को पति भी आ गए और उन्होंने भी मैरी के घर जाने की इच्छा जताई. उसे फ़ोन फिर ट्राई किया जो स्विच ऑफ़ ही दिखा रहा था. मुझे जहां सब कुछ मैरी की चालाकी लग रही थी, वहीं बाक़ी सबको लग रहा था कि मैरी मुसीबत में है.
डॉक्टर मैथ्यू का घर ढूंढ़ते हुए हम बच्चों की मैरी आंटी के घर पहुंचे. नए साल के पहले अंधेरा, वो भी बड़ा दिन मनाने वाली मैरी के यहां. दरवाज़ा खटखटाने पर एक लड़की ने दरवाज़ा खोला. उसे देखकर मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं. ये तो वो लड़की थी, जो एक साल पहले तक घर के पास वाले सिगनल पर भीख मांगती थी. उसने जो फ़्रॉक पहन रखी थी वो मेरीरी कश्मीरी कढ़ाई वाली नाइटी से बड़ी सुघड़ता से बनाई गयी थी . हमें देख कर बेचारी डर गई और चिल्लाई, “मम्मी वो लोग शायद फिर से आ गए.“
उसका चिल्लाना सुन टॉर्च हाथ में लिए एक सौम्य से बूढ़ा व्यक्ति और लंगड़ाता हुआ क्रिस्टोफर आया. हमें देख बोला, “अरे डरो मत ये तो इनु दीदी, इशु बाबा और साहेब मैडम है.’’ इनु और इशु नाम सुनते ही अंदर से क़रीब दस बच्चे कोरस में, “इशु बाबा, इनु दीदी’’ चिल्लाते हुए बाहर आ गए. उन सभी ने इशु इनु के पुराने कपड़ों से बनाए बड़े सुंदर कपड़े पहने हुए थे. अंदर से एक कराहने की आवाज़ आई, “कौन है ब्रदर?“
बच्चे चिल्लाए, “इशु बाबा, इनु दीदी और उनके मम्मी-पापा.”
मैरी बिस्तर पर लेटी थी उसके चेहरे पर मार के निशान थे और हाथ-पैरों पर पट्टियां बंधी थीं. बच्चे अपनी मैरी आंटी से लिपट कर रोने लगे. मेरे पति और मैं मैरी को देखकर अवाक् थे. डॉक्टर मैथ्यू ने बताया कि मैरी को तो मदर टेरेसा बनने का पागलपन है. दोनों भाई-बहन स्ट्रीट चिल्ड्रन और स्ट्रीट डॉग को सहारा देने की भरपूर कोशिश करते हैं. जब तक वो यहां थे उनकी भरसक मदद करते थे. वो बोल रहे थे, “बहुत समझाया था इनको पीपल आर नॉट गुड ऐसा कुछ नहीं करने का. आपके बारे में मैरी ने बताया कि आप लोग उसका बहुत मदद करते हैं. दो महीने पहले यह सिनग़ल से भीख मांगने वाले वाले कुछ बच्चों को घर ले आई. एक पूरा गैंग था जो उनसे भीख मंगवाता था. जब उस गैंग को बच्चों के इस ठिकाने का पता चला तो इसी महीने की बीस तारीख़ को घर आकर मैरी और क्रिस्टोफर को ख़ूब मारा. फ़ोन भी तोड़ दिया. वो तो गनीमत थी कि मेरे पड़ोसी आ गए और बच्चों को बचा लिया. मैं भी खबर मिलते ही दूसरे दिन आ गया. तब से हम लोग शाम से ही सारी लाइट बुझाकर घर के अंदर ही छुपकर बैठते हैं, ताकि किसी को पता भी ना चले अंदर कोई रहता है.“
सारे बच्चे लगातार अपने इशु भैय्या और इनु दीदी को प्यार कर रहे थे. मैं अब आत्मग्लानि से आंखें झुकाए लगातार मैरी में मदर टेरेसा देख रही थी. बच्चे तुरंत अपने पापा के साथ घर गए सारे गिफ़्टस चॉकलेट्स और बाज़ार ख़ूब सारे बलून और डेकोरेशन का सामान ले कर आए. उस दिन यानी तीस तारीख़ को ही हम सबने सारे बच्चों के साथ वहीं ख़ूब अच्छा और यादगार क्रिस्मस मनाया.
मैरी की आंखों में हज़ारों सितारे चमक रहे थे. शायद ऐसा बड़ा दिन उसने पहले कभी नहीं मनाया था. उसके बाद मैरी ने मिशनरी की मदद से सभी बच्चों को अच्छा शेल्टर यानी किसी को अच्छे घर में अडॉप्शन तो किसी को अच्छे मिशीनरी स्कूल में दाख़िला दिलवाकर हमारा शहर छोड़ दिया. आज भी दिसम्बर माह मैरी की याद दिलाता है और हम सब की आंखों में जुगनू चमकने लगते हैं.
फ़ोटो साभार: पिन्टरेस्ट