मुकेश नेमा वो नाम है जिनसे सोशल मीडिया पर शायद ही कोई अपरिचित हो. जिनके ‘फूफाजी’ और ‘बड़े साब’ व्हाट्सऐप पर हज़ारों की तादाद बन कर घूमते हैं, व्यंग्य पत्रिकाओं और अख़बारों में छपते हैं और जिनकी लेखनी के मुरीद हर उम्र और स्तर के लोग हैं. वही मुकेश नेमा इस बार (मित्रों के इसरार, तकाजे और ठेलने-धकेलने के बाद बहुत मुश्क़िल से) बाकायदा पुस्तक लेखक के रूप में पुस्तक के साथ अवतरित हुए हैं.
पुस्तक: साहबनामा
लेखक: मुकेश नेमा
प्रकाशक: मैंड्रेक पब्लिकेशन
मूल्य: रु. 225
उपलब्ध: amazon.in
समीक्षक: लक्ष्मी शर्मा, वरिष्ठ साहित्यकार
‘साहबनामा’ यानी साहब की दास्तान यानी साहब की आत्मश्लाघा, आत्ममुग्धता और अहंकार. इसी सब को लेकर लिखी गई है ये साहबनामा. मुकेश नेमा, जो कि स्वयं बड़े साहब हैं, आत्मस्तुति के व्याज सरकारी तंत्र में अफ़सरशाही, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजा वाद पर बेलौस, बेख़ौफ़ कलम चलाते हैं तो अनायास ही पाठक के होंठों पर मुस्कान और दिमाग़ में विसंगतियों के प्रति असंतोष उमड़ जाते हैं. साहब की चाटुकारी प्रियता पर कलम चलाते हुए इन व्यंग्यों को पढ़कर पाठक को अनायास ही हरिशंकर परसाई जी की याद आ जाती है. अपने व्यंग्यों में नेमा जी मीठी छुरी की मार करते हैं, भोंथरी धार से, जो जिबह नहीं हलाल करती है और ख़ुद को भी नहीं बख्शती.
अनावश्यक शब्दों के मोह से अलग बात कहने की कला और पच्चीकारी के मोह से मुक्त शिल्प व्यंग्य की सबसे पहली शर्त है जिसे लेखक बख़ूबी साधते हैं. उनकी सादा किंतु बेमिसाल बतकही शैली की प्रयास रहित भाषा बात को सहज बोधगम्य और मज़ेदार बना कर सम्प्रेषित करती है. पुस्तक में लेखक ने केवल साहब को ही अपनी कलम के निशाने पर नहीं लिया है, उसके साथ ‘पतिनामा’, ‘गीतनामा’, ‘स्वादनामा’ और ‘संसारनामा’ नाम से भी कुछ शानदार छोटे आलेख किताब में संकलित है.
एक लेखक के रूप में मुकेश नेमा की प्रत्युत्पन्नमति कमाल करती हैं, एक समोसे पर, एक लौकी पर वे हज़ारी बाबा की शैली में एक छोटा निबंध लिख देते हैं और एक गीत के माध्यम से भी ख़ूब मज़ेदार कटाक्ष प्रस्तुत कर देते हैं. ‘नादान बालमाsss’ इसका श्रेष्ठ उदाहरण है. समाज में कोई घटना घटे, उनका व्यंग्यकार लेखक सक्रिय हो कर तुरन्त एक मज़ेदार किंतु सरोकार समृद्ध आलेख लिख देता है. और फूफाजी तो उनकी अमर रचना है ही जिसके माध्यम से वे भारतीय परिवारों पर मीठी चुटकियां लेते हैं. उनकी यह विषय-व्यापकता और तात्कालिकता चमत्कृत करती है, भाषा की रवानगी जोड़ती है और अनावश्यक विस्तार से बचने के कारण रचनाओं की ललित रोचकता बनी रहती है
अगर आप बढ़िया स्तरीय व्यंग्य या कथेतर क़िस्सागोई पसन्द करते हैं तो साहबनामा आपके लिए बेहतरीन चयन है.