बदल रही दुनिया में रिश्ते बदल रहे हैं. रिश्तों के समीकरण बदल रहे हैं. बच्चों का अच्छा और सच्चा दोस्त होने का एकमात्र कॉपीराइट अब मां के पास नहीं रहा. पिता भी दोस्त बनने लगे हैं. पर आज भी कई ऐसे पिता हैं, जो बच्चों के साथ अपने संबंध में एक सुरक्षित दूरी रखने को ही प्राथमिकता देते हैं. वरिष्ठ पत्रकार सर्जना चतुर्वेदी इस फ़ादर्स डे ऐसे ही पिताओं से संवाद करते हुए बता रही हैं, आख़िर क्यों बच्चों के साथ पिता का संबंध बेहतर होना ज़रूरी है.
एक बच्चे के संपूर्ण विकास में माता और पिता दोनों का बराबर योगदान होता है. जहां एक मां हमें भावनात्मक रूप से मज़बूत बनाती है, वहीं पिता हमारे सामाजिक व्यक्तित्व को निखारते हैं. ऐसे बच्चे जिनका अपने पिता के साथ सम्बन्ध मधुर नहीं होता, उनमें अक्सर असुरक्षा की भावना होती है. सामाजिक तौर पर वे उतने आगे आगे नहीं बढ़ पाते. जब कभी कहीं कोई बड़ा निर्णय लेना होता है तो वे ख़ुद को अनिश्चय की स्थिति में पाते हैं. ऐसे बच्चे कन्फ़्यूज़ और शर्मीले होते हैं. कई बार हम उन्हें अंतरमुखी कहकर सामान्य मान लेते हैं, पर ऐसा भी हो सकता है यह उनके कमज़ोर व्यक्तित्व की निशानी हो. लंबे समय तक ऐसे रहने वाले बच्चों में आगे चलकर ज़िद की भावना आ जाती है. वे दूसरों की ख़ुशी से ख़ुश नहीं होते. चीज़ों को शेयर करने से कतराते हैं. अपनी ख़ुशी, अपने दुख को बांटने से हिचकते हैं. रुपए-पैसे ही नहीं, रिश्तों के मामले में भी ऑब्सेसिव हो जाते हैं.
आपका बच्चा भी कहीं इस कैटेगरी में न आए, इसकी पूरी ज़िम्मेदारी आप की है. आपको उसके सामाजिक व्यक्तित्व को गढ़ने की ज़िम्मेदारी तुरंत प्रभाव से स्वीकार करे हुए, नीचे बताए जा रहे काम ज़रूर करने चाहिए.
व्यस्त दिनचर्या में भी बच्चे के लिए समय ज़रूर निकालें
बिज़ी तो आज कौन नहीं है! पर व्यस्तता के बीच अपने बच्चों से दूरी ठीक नहीं है. आपको कोशिश करनी चाहिए कि दिन में कुछ समय सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने बच्चों के लिए निकालें. कोशिश करें कि जब भी समय मिले बच्चे के साथ अकेले बाहर जाएं. घर में भी बच्चे के साथ बात करें और जब भी बात करें, प्रयास करें कि वहां बहुत ज़्यादा लोग ना हों. आपको इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे को सिर्फ़ अपनी बातें ना सुनाएं, बल्कि बच्चे को ज़्यादा से ज़्यादा बोलने दें और पूरे ध्यान से बच्चे की हर बात सुनें. बातचीत के दौरान कभी भी तेज़ आवाज़ में या ग़ुस्से में बात ना करें.
बच्चों को बात-बात पर जज न करें, उन्हें खिलने और खेलने दें
बच्चे का मस्तिष्क कोमल कली की तरह होता है. हमें इस कली को पर्याप्त मानसिक और बौद्धिक पोषण प्रदान करना चाहिए, ताकि वे एक ख़ूबसूरत फूल की तरह खिलकर अपनी ख़ुशबू फैला सकें. कई बार ऐसा देखा गया है कि पिता बच्चों की बातों को जज करने में बहुत ही जल्दबाज़ी करते हैं. वे बच्चों के हर काम में ग़लती निकालते हैं, उन ग़लतियों को ठीक करने की कोशिश करते हैं, क्योंकि वे अपने बच्चे को परफ़ेक्ट बनाना चाहते हैं. पिता की इस आदत का परिणाम यह होता है कि बच्चा अपनी मासूम बातें पिता से शेयर करने से बचने लगता है. उसके दिमाग़ में यह बात बैठ जाती है कि उसके पिता उसे प्रोत्साहित करने के बजाय उसे ज्ञान देने लगेंगे. इस चक्कर में आप अपने बच्चे के दिमाग़ के डेवलपमेंट को ब्लॉक करते हैं. आपको करना यह चाहिए कि बच्चे के विचारों को पूरी तन्मयता से सुनें, वे भले ही कितने ही बचकाने क्यों न लें! आपको पता ही होगा कि दुनिया को बदल देनेवाले ज़्यादातर विचार शुरू में बचकाने ही लगते हैं. तो आप अपने बच्चे के साथ आराम से बैठकर बातचीत करें. इससे उसमें अपनी बात कहने की हिम्मत आएगी. अपने विचारों को एक्सप्रेस करना सीखेगा. आज आपके सामने तो कल दुनिया के सामने कॉन्फ़िडेंस के साथ अपनी बात रख पाएगा.
उसका संबल, उसका सलाहकार बनें
जब भी कोई इंसान परेशान होता है तो वो चाहता है कि लोग उसकी मदद भले न कर सकें, पर उसकी परेशानी को समझें. जब हम एक परेशान व्यक्ति से सहानुभूति रखते हैं तो वह अपनी समस्या का समाधान ख़ुद ही निकाल लेता है. ऐसा ही कुछ हमारे बच्चे भी हमसे उम्मीद रखते हैं, पर ऐसा देखा जाता है कि बच्चों की परेशानी को हम छोटी बात समझ कर टाल देते हैं. एग्ज़ाम में नंबर कम आने, दोस्तों से झगड़ा होने, कोई काम ठीक से ना कर पाने जैसी बच्चों की परेशानियों को हम ‘ऐसा होता है’ कहकर या मानकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं. पर यह तरीक़ा उनके मानसिक विकास के लिए सही नहीं है. बजाय इसके हमें उनकी इस छोटी-सी लगनेवाली समस्याओं पर पूरा ध्यान देना चाहिए. उनकी समस्याओं को इम्पॉर्टेंस दें, बाक़ी काम वे ख़ुद कर लेंगे.
कुछ नया ट्राय करने से बेवजह बच्चों को ना रोकें
बच्चे हर दिन कुछ ना कुछ नया सीखते हैं. वो हर चीज़ करना चाहते हैं, जो पॉप्युलर कल्चर में ट्रेंड कर रही होती है. पर लगभग हर पैरेंट ‘लोग क्या कहेंगे’ वाली मानसिकता से कहीं न कहीं जकड़ा होता है. यही कारण है कि कई बार बच्चा जब भी कुछ नया करना चाहता है, उसको तुरंत रोका जाता है. बिना उसकी पूरी बात सुने, ना की लकीर खींच देने से भले ही आज आपका बच्चा चुप हो जाए, पर उसके मन में ख़ुद के कमतर होने की भावना घर करने लगती है. साथ ही साथ वह आपसे दूर होने लगता है. आप न चाहते हुए भी उसे विद्रोही बना रहे होते हैं. इस तरह के बच्चे टीनएज में ज़िद्दी बन जाते हैं. पैरेंट्स से उनकी नहीं पटती. तो आख़िर आपको क्या करना चाहिए? बच्चा जब भी कोई नई चीज़ करना चाहे तो पहले आप उसे पूरी तरह से समझें. ना बोलने की जल्दबाज़ी से बचें. अगर ना करना भी है तो उसे लॉजिकल तरीक़े से समझाएं, बजाय फ़रमान जारी करने के. बच्चे को भी उसका पॉइंट आउट रखने का मौक़ा दें. हो सकता है, वह आपको कन्विंस कर ले. यह भी हो सकता है, आप उसे अपनी बात समझाने में क़ामयाब हो जाएं. दोनों ही कंडिशन्स में जीत आपकी पैरेंटिंग की ही है.
पैसा, सेक्स और सोशल मीडिया पर आप दोनों के बीच हो खुली चर्चा
आज के खुले समाज में भी कई चीज़ों पर बात करना वर्जित है, ख़ासकर अपने बड़ों या पिता से. पर बदलते दौर में बच्चों को कुछ बातों की सही और प्रामाणिक जानकारी देना बहुत ज़रूरी है. बच्चों को शुरुआत से ही पैसे को मैनेज करना सिखाएं. उसे बताएं कि पैसे पेड़ पर नहीं लगते, उन्हें कमाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं. उनको पैसे की वैल्यू करना सिखाएं. पर हां, दुनिया में सबकुछ पैसा ही नहीं होता, बच्चों को यह सीख एक पिता ही दे सकता है.
पैसे की तरह ही सेक्स भी वह टॉपिक है, जिसपर बच्चे पिता से बात करने से झिझकते हैं. झिझक की यह दीवार तोड़ने की ज़िम्मेदारी आपकी है. जब बच्चा किशोरावस्था में जाने लगे तो उसके साथ बैठ कर उसे सेक्स के बारे में बताएं. उसको सही ग़लत परिणामों के बारे में बताएं.
और तीसरा और महत्वपूर्ण मुद्दा है सोशल मीडिया के नफ़ा-नुक़सान की सही जानकारी देना. कई बच्चे अनजाने ही साइबर क्राइम कर जाते हैं. उन्हें अपने सोशल मीडिया को हैंडल करने, वहां के सही-ग़लत वाले शिष्टाचार को सिखाना आपका काम है. ख़ासकर बच्चों को किसी विचारधारा के समर्थन या विरोध में नफ़रत फैलानेवाले मैसेजेस फ़ॉर्वर्ड करने से सचेत करना हमारी मुख्य ज़िम्मेदारी होनी चाहिए.
बेहतर भविष्य के लिए वर्तमान में भविष्य की बात ज़रूर करें
एक पिता को चाहिए कि वो बच्चे को भविष्य के लिए तैयार करे. उसको छोटे-छोटे निर्णय लेना सिखाए. सही समय आने पी बच्चा कर लेगा, सीख जाएगा जैसी दकियानूसी सोच से बचें. सही समय कभी नहीं आता. आप आज से ही बच्चे को फ़्यूचर प्लानिंग करना सिखाएं और अपनी फ़्यूचर प्लानिंग में बच्चे को शामिल करें. घर में होने वाली छोटी-छोटी बातचीत में उसकी राय लें और बच्चे को अहसास कराएं की उसकी राय की भी बहुत वैल्यू है.
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राजेश पांडे, साइकोलॉजिस्ट, हैलो साइकोलॉजिस्ट चाइल्ड ऐंड करियर काउंसलिंग सेंटर, लखनऊ (उत्तर प्रदेश), से बातचीत पर आधारित