यदि आप भी उन पैरेंट्स में से हैं, जिन्हें लगता है कि आपका बच्चा/बच्चे ज़्यादा चिंतित और व्यग्र रहते हैं यानी ज़्यादा ऐंग्ज़ाइटी का अनुभव करते हैं तो बहुत ज़रूरी है कि आप उनके व्यवहार से पहले अपने व्यवहार पर ध्यान दें. यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि एक अध्ययन की नतीजे कहते हैं. आइए, इस बारे में और जानें, ताकि हम-आप अपने बच्चों की पैरेंटिंग सही तरीक़े से कर सकें.
जीवन सतत सीखने वाली प्रक्रिया है. जब हम पैरेंट्स बनते हैं तो हमारे अनुभव भले ही हमारे बच्चों से ज़्यादा हों और हम कितने ही कायदे से उनका पालन-पोषण क्यों न करना चाहें, कहीं न कहीं तो चूक जाते ही हैं. पर इसमें घबराने की कोई बात नहीं, क्योंकि हमने पहले ही कहा है कि जीवन एक सतत सीखने वाली प्रक्रिया है. अपनी पैरेंटिंग स्किल्स को तराशिए और जहां आप ग़लती कर गए हों, उसे भली प्रकार सुधार लीजिए, क्योंकि जब हम इसी तरह हर क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं, तो यहां क्यों नहीं?
ऐंग्ज़ाइटी का स्तर यूं भी होता है कम
यदि आपको लगता है कि आपका बच्चा जल्दी व्यग्र हो जाता है, बेताब रहता है, चिंता ज़्यादा करता है या उसे ज़्यादा ऐंग्ज़ाइटी होती है तो आपको जरनल ऑफ़ द अमेरिकन ऐकैडमी ऑफ़ चाइल्ड ऐंड ऐडॉलसेंट साइकियाट्री में छपी इस स्टडी के बारे में जानना चाहिए, जिसमें बताया गया है कि ज़्यादा चिंता करने वाले बच्चों को दी जाने वाली बिहेवियरल थेरैपी के दौरान यह पाया गया कि बच्चों को थेरैपी देने से उनकी ऐंग्ज़ाइटी के स्तर में कमी के जो नतीजे मिले, ठीक वही नतीजे उनके अभिभावकों की काउंसलिंग करने पर भी बच्चों की ऐंग्ज़ाइटी के स्तर में देखे गए.
किस तरह की गई स्टडी?
इस स्टडी में सात से 14 वर्ष की उम्र के 100 बच्चों को कॉग्निटिव बिहेविअरल थेरैपी दी गई (ताकि वे अपनी चिंताभरी सोच से बाहर आ सकें) या फिर कुछ के माता-पिता को सप्ताह में एक बार इस बात की कोचिंग दी गई कि उन्हें अपने बच्चे की ऐंग्ज़ाइटी से कैसे निपटना है, जैसे- अपने बच्चों को ढांढ़स बंधाता हुआ टेक्स्ट मैसेज भेजना कम करें. और इनके परिणाम का आकलन करने पर पाया गया कि माता-पिता का इलाज करने के भी उतने ही प्रभावशाली परिणाम मिले, जितने कि सीधे बच्चों को थेरैपी देने के.
तो आख़िर क्या मायने हैं, इस स्टडी के?
यदि आप अपने बच्चे/बच्चों को बेहद प्यार करते हैं तो बहुत संभव है कि उनकी हर बात को मान लेते हों और इस तरह आप ख़ुद ही अपने बच्चे की ऐंग्ज़ाइटी के बढ़ने का कारण बन जाते हों. उदाहरण के लिए यदि आपका बच्चा अंधेरे से डरता है तो आप तब तक उसके पास बैठे रहते हैं, जब तक कि वह सो न जाए या फिर यदि वह किसी जानवर, जैसे- कुत्ते, बिल्ली या गाय से डरता है और आप हर उस जगह, जहां ये जानवर मिल सकते हैं, बच्चे के आसपास ही मौजूद रहते/रहती हैं तो उन्हें इस बात का भरोसा होने लगता है कि शायद वे अकेल स्थित को संभाल नहीं सकेंगे और इस वजह से उनकी ऐंग्ज़ाइटी बढ़ जाती है. बजाय इसके आपको चाहिए कि आप उन्हें इस तरह के डर से उबरने के लिए प्रेरित करें, उन्हें अपनी कंफ़र्ट ज़ोन से बाहर निकालें और यदि वे अपने डर पर क़ाबू पाने की कोशिश करें तो उनकी प्रशंसा ज़रूर करें. कुल मिलाकर, इस स्टडी का सार यह है कि अपने बच्चे को स्थितियों से ख़ुद निपटना सीखने का आत्मविश्वास दें, ना कि ऐसे स्नेह का डोज़ जो उन्हें अनजाने में ही ऐंग्ज़ाइटी की ओर धकेल दे.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट