यदि आप जंगलों की अनूठी शांति, प्रकृति की विविधता, पेड़ों, नदियों, पंछियों, वन्यजीवों से प्रेम करते हैं और अपनी छुट्टियां ऐसी जगह पर बिताना पसंद करते हैं तो आपको पेंच टाइगर रिज़र्व ज़रूर जाना चाहिए. ये भी बता दूं कि मध्य प्रदेश का पेंच टाइगर रिज़र्व ही ब्रिटिश लेखक रुडयार्ड किपलिंग की किताब द जंगल बुक लिखने की प्रेरणा रहा है. वही जंगल बुक, जिसका क़िरदार ‘मोगली’ हर बच्चे का पसंदीदा होता है.
इससे पहले कि आपको पेंच की सैर कराऊं और जंगल के राजा से मिलने के कायदे समझाऊं, ये बताना ज़रूरी है कि हमारा पेंच जाने का कार्यक्रम कैसे बना. दीपावली की छुट्टियां थीं और हम सब अपने रूटीन जीवन से बहुत ऊब रहे थे. बेटे के पास ज़्यादा छुट्टियां नहीं थी, लेकिन मेरे पति ने उसे मना ही लिया कि हम तीनों की एक आउटिंग तो बनती ही है. तो कुल जमा सात दिन में ये प्लानिंग की गई कि जाना तो पेंच टाइगर रिज़र्व ही है. फ़्लाइट के टिकट्स बुक कराए गए. एक नामचीन वेबसाइट के ज़रिए होटल बुक कराया गया. और अपनी इस ट्रिप को लेकर हम मन में पुलकित होने लगे.
कहते हैं ना, जल्दी का काम शैतान का (और ये वाली तो पूरी प्लानिंग ही जल्दबाज़ी में की गई थी!) तो हमारे निकलने से ठीक एक दिन पहले हमें फ़ोन आया कि जिस होटल में हमने बुकिंग कराई है, वह रिनोवेशन के चलते बंद है अत: हमारा बंदोबस्त कोहका वाइल्डरनेस कैम्प में कर दिया गया है. ये पहला झटका था और हम थोड़े सशंकित हो गए. ख़ैर अभी तो और भी सर्प्राइज़ हमारे इंतज़ार में थे.
रिज़ॉर्ट पहुंचने पर हमने पाया कि हमारे रुकने की व्यवस्था एक ऐसी जगह की गई है, जिसके मालिक, सौम्य मुस्कान लिए ख़ुद हमारे स्वागत के लिए वहां मौजूद थे. वे ख़ुद मुंबई से हैं और इन जंगलों की सुंदरता ने उन्हें इस क़दर प्रभावित किया कि अपना सीए का प्रोफ़ेशनल काम छोड़ कर उन्होंने यहां ये रिज़ॉर्ट बनाया और यहां आने वाले लोगों को इस जगंल की ख़ूबियां बताना, यहां आसपास के गांवों में रहने वाले लोगों से मिलवाना, इन लोगों की ज़िंदगियों में अपने स्तर पर बदलाव लाने के प्रयास करना, उन्हें दिली ख़ुशी देता है. उनसे और भी बातें हुईं, जिनका ज़िक्र बाद में. फ़िलहाल ये जानिए कि पेंच पहुंचा कैसे जा सकता है…
कैसे पहुंचें?
पेंच टाइगर रिज़र्व जाने के लिए निकटतम हवाई अड्डे हैं: नागपुर (महाराष्ट्र) और जबलपुर (मध्य प्रदेश). हमने नागपुर से जाना चुना था. नागपुर-खवासा-टुरिया ये दूरी 85 किलो मीटर की है, जबकि जबलपुर-सिवनी-खवासा-टुरिया की दूरी 215 किलो मीटर की है. यदि ट्रेन से जाना चाहते हैं मध्य रेलवे से जबलपुर या नागपुर पहुंचा जा सकता है. फिर दक्षिण पूर्व रेलवे के सिवनी रेलवे स्टेशन से सड़क मार्ग से पेंच पहुंचा जा सकता है.
पेंच टाइगर रिज़र्व क्षेत्र में पार्क के अंदर जाने के लिए चार गेट मौजूद हैं. कर्माझिरी और टुरिया गेट सिवनी वन विभाग के अंतर्गत आते हैं तो गुमतरा और जुमतरा गेट छिंदवाड़ा वन विभाग के अंतर्गत आते हैं. यहां से पार्क के अंदर जाने के लिए वन विभाग की जिप्सियां उपलब्ध हैं, जिनके लिए आपको पहले से बुकिंग करानी होती है.
कब जाएं?
पेंच नैशनल पार्क हर वर्ष 1 अक्टूबर से 30 जून तक ही खुला रहता है. बारिश के मौसम में यह बंद रहता है. यदि आप यहां की सैर करना चाहते हैं, वन्यप्राणियों और ख़ासतौर पर जंगल के राजा को उसके स्वाभाविक निवास स्थान यानी नैचुरल हैबिटैट में देखना चाहते हैं तो अक्टूबर से फ़रवरी यानी ठंड के महीने सही रहेंगे. यह पार्क सुबह छह बजे खुल जाता है और सुबह के समय जानवरों के दिखाई देने की संभावना भी अधिक होती है. अत: सुबह सुबह के समय पार्क में सफ़ारी के लिए जाना अच्छा विकल्प होगा.
कहां रुकें?
जहां हम रुके थे, वहां रुकिएगा तो आपकी बेहतरीन मेहमांनवाज़ी होगी और बेहद स्वादिष्ट भोजन भी मिलेगा. ऑर्गैनिक सब्ज़ियां, आसपास के खेतों में उगाए गए चावल खा कर आपका मन तृप्त हो जाएगा. पर यहां आपको कई और होटल्स मिल जाएंगे, जिन्हें आप अपने बजट और सुविधा के अनुसार चुन सकते हैं. मध्य प्रदेश टूरिज़म के होटल का चुनाव भी किया जा सकता है. यहां कई होटल्स और रिज़ॉर्ट्स आपको रुकने और नैशनल पार्क घुमाने के पैकेज भी देते हैं, जिनके बारे में आप इंटरनेट पर सर्च कर सकते हैं. यहां के स्थानीय लोगों ने कई छोटे-छोटे गेस्ट हाउसेज़ भी बनाए हैं, लेकिन उनके बारे में आपको स्थानीय स्तर पर जानकारी जुटानी होगी.
पेंच की भौगोलिक, वनस्पति और वन्यप्राणियों से जुड़ी जानकारी
मध्य प्रदेश के सिवनी और छिंदवाड़ा ज़िलों के बीच फैले पेंच टाइगर रिज़र्व का कुल क्षेत्रफल 1179.63 वर्ग किलोमीटर है. जिसके राष्ट्रीय उद्यान यानी कोर क्षेत्र को, जिसे इंदिरा प्रियदर्शनी पेंच राष्ट्रीय उद्यान, पेंच मोगली अभ्यारण्य कहा जाता है और बफ़र ज़ोन को पेंच टाइगर रिज़र्व कहा जाता है. छिंदवाड़ा और सिवनी ज़िलों को बांटने वाली पेंच नदी के नाम पर इसका नामकरण किया गया है.
यहां सागौन, धावड़ा, सलई, अचार, मोयन, साजा, तेंदू, अर्जुन, जामुन, गूलर, बांस, आंवला, शहतूत आदि के वृक्ष मौजूद हैं और प्रचुर मात्रा में घास भी पाई जाती है. यहां के मांसाहारी वन्यप्राणियों की बात करें तो शेर, तेन्दुआ, जंगली बिल्ली, जंगली कुत्ते, सियार, लोमड़ी, लकड़बग्धा, भेड़िया आदि पाए जाते हैं. और शाकाहारी प्रजातियों में गौर, नीलगाय, सांभर, चीतल, चौसिंगा, चिंकारा और जंगली सुअर शामिल हैं. यहां अलग-अलग मौसमों में लगभग 325 प्रजातियों के पक्षी भी देखे जा सकते हैं. इनके बारे में विस्तृत जानकारी आपको मध्य प्रदेश टूरिज़म के पोर्टल पर मिल जाएगी.
और क्या है जंगल के राजा से मिलने का कायदा?
तो मैंने बात वहां छोड़ी थी कि रिज़ॉर्ट के मालिक संजय नागर ने हमारी ख़ुद अगवानी की और उनसे बातों ही बातों में हमें पता चला कि पेंच आने से पहले ही जंगल सफ़ारी की बुकिंग कराना बेहतर होता है, क्योंकि सीज़न में यहां बुकिंग्स फ़ुल रहती हैं और अब इस बात की बहुत कम संभावना थी कि हमें टाइगर रिज़र्व के भीतर जाने मिले. यह बात सुनकर हम बहुत दुखी हो गए. लेकिन भीतर से हमेशा से ख़ुद को ‘जंगल की बेटी’ (चूंकि मेरे पिता जंगल विभाग में अधिकारी थे!) मानने वाली और ऊपर से पत्रकार, मैं इतनी जल्दी हार तो नहीं मान सकती थी. फिर पता चला कि जंगल विभाग के पास भी सैलानियों के लिए कुछ कोटा होता है. यह मालूम होने पर हमने तुरंत ही फ़ील्ड डायरेक्टर को एक आवेदन लिखा और उत्तर की प्रतीक्षा करने लगे. जब हम लंच कर रहे थे, तभी मेरे मोबाइल पर फ़ोन आया कि आपके लिए शाम चार बजे की बुकिंग आरक्षित कर दी गई है. हम वन विभाग के अधिकारियों को मन ही मन धन्यवाद ज्ञापित करते हुए जंगल सफ़ारी के लिए निकल पड़े.
तो यहां आप हमारी इस गलती से आप सबक लें और यह बात अच्छी तरह जान लें कि कम से कम मध्य प्रदेश के अभ्यारण्यों में जंगल के राजा से मिलने का सबसे ज़रूरी कायदा ये है कि आपकी बुकिंग पहले से हो. इसके लिए आप यहां क्लिक करके बुकिंग करवाएं और इसके बाद ही नैशनल पार्क का रुख़ करें, क्योंकि जंगल के राजा से मिले बिना तो आप लौटना नहीं चाहेंगे, है ना?
और हां, जंगल के राजा से मिलने के बाक़ी के सभी कायदे वहां के कर्मचारी, जिप्सियों के ड्राइवर और आपके साथ जाने वाले गाइड्स बता देंगे, जिनका पालन करना आपके लिए अनिवार्य होगा ही!
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट