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प्रार्थनाओं से बचना: सुदर्शन शर्मा की कविता

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
March 7, 2021
in कविताएं, बुक क्लब
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प्रार्थनाओं से बचना: सुदर्शन शर्मा की कविता
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सदियों से हम मानते आए हैं कि जब हमारे पास कुछ नहीं होता तो केवल प्रार्थनाएं होती हैं. पर कवयित्री सुदर्शन शर्मा की मानें तो प्रार्थनाएं हमें मज़बूत बनाने, हमें मानसिक संबल देने की जगह निर्बल बनाती हैं. इस कविता में सुदर्शन शर्मा उन कारणों पर रौशनी डाल रही हैं, जो प्रार्थनाओं से दूर रहने में हमारी भलाई की ओर इशारा करते हैं. आइए पढ़ते हैं, कितने सशक्त हैं कवयित्री के ये कारण.

दुखों में बचे रहना चाहते हो
तो प्रार्थनाओं से बचना

प्रार्थना रत हथेलियों के बीच से बह जाता है
एक हिस्सा जुझारूपन
एक हिस्सा जिजीविषा

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प्रार्थनाएं प्रमेय है
जो सिद्ध करती हैं
कि तुम्हारे स्व की परिधि के बाहर स्थित है
सत्ता का अंतिम केंद्र

प्रार्थनाएं तुम्हें कातर बनाती हैं
और तुम खो बैठते हो
जन्मसिद्ध युयुत्सा
भूल बैठते हो
गर्भ की अंधकोठी की
मूक प्रतीक्षा
विस्मृत कर जाते हो
गर्भ भेद नीति
चरण प्रति चरण

प्रार्थनाएं रोक लेती हैं
व्यूह द्वार पर तुम्हारा रथ
और तुम चाहने लगते हो
कोई और लड़े तुम्हारी ओर से

याद रखो
तुम्हारे दुख केवल तुम्हारे हैं
आदि से अंत तक

याद रखो
जिजीविषा के समानुपातिक होते हैं दुख

हमेशा याद रखो
प्रार्थनाएं तीसरा चर हैं
यह गड़बड़ा देंगी
दुख और जिजीविषा के समस्त समीकरण

प्रार्थनाएं खींच लेंगी पौरुष का समस्त ओज
एक दिन
मान लोगे तुम स्वयं को नपुंसक
निर्बल तुम
भेंट कर दोगे
अपना मस्तक
एक दिन दुख को

इसीलिए दुखों में
बचे रहना चाहते हो
तो प्रार्थनाओं से बचना


कवयित्री: सुदर्शन शर्मा
कविता संग्रह: तीसरी कविता की अनुमति नहीं
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन
Illustration: Pinterest

Tags: Aaj ki KavitaHindi KavitaHindi PoemKavitaPoem Collection Teesari Kavita ki anumati nahiPrarthnaon se bachana by Sudarshan SharmaSudarshan SharmaSudarshan Sharma Poetryआज की कविताकविताकविता संग्रह तीसरी कविता की अनुमति नहींप्रार्थनाओं से बचनाप्रार्थनाओं से बचना सुदर्शन शर्मासुदर्शन शर्मासुदर्शन शर्मा की कविताहिंदी कविता
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