हम हमेशा से कहते आ रहे हैं कि सेक्स एजुकेशन हमारे एजुकेशन सिस्टम का हिस्सा होना चाहिए. इसी मुद्दे को फ़िल्म OMG 2 में भी उठाया गया है. इस फ़िल्म के हवाले से संगीत सेबैस्टियन समझा रहे हैं कि क्यों इस बारे में हमें सही क़दम उठाने चाहिए. वे यह भी बता रहे हैं कि गुलामी से पहले का भारत “आधुनिक” कहे जाने वाले पश्चिम की तुलना में कितना ज़्यादा प्रगतिशील था.
क्या आप जानते हैं कि बहुत से पुरुष जो बचपन में ग़लत तरीक़े से मैस्टर्बेशन करना सीखते हैं, कई बार वे अपने पार्टनर के साथ जीवनभर सेक्शुअल संबंध बनाने के क़ाबिल भी नहीं रह जाते यानी वे जीवनभर सेक्शुअल रिलेशन बनाने में असफल ही रह जाते है.
हमने अपने पहले बताया था किस तरह प्रोन पोज़िशन में मैस्टर्बेट करने की वजह से पुरुषों के पीनिस के बेस पर बहुत प्रेशर पड़ता है और बाद में सेक्शुअल संबंध बनाने में पुरुष नाकाम भी रह सकते हैं.
फिर भी मैस्टर्बेशन ऐसी चीज़ है, जिसे सिखाने की बात तो दूर, लोग इसके बारे में चर्चा तक नहीं करते हैं. लड़कों को अक्सर यह “घृणित” और “गंदा” काम करने के लिए डांटा जाता है, शर्मिंदा महसूस कराया जाता है और यहां तक कि स्कूलों से भी निकाल दिया जाता है.
मुझे यक़ीन है, कि वे लोग, जो इस आलेख को पढ़ रहे हैं,उनमें से कई लोगों के पास भी अपने स्कूली जीवन की कम से कम एक ऐसी मैस्टर्बेशन कहानी होगी, जिसे वे याद कर सकते हैं.
केवल इंसान ही मैस्टर्बेट करते हैं, ऐसा नहीं है. चिंपांज़ी, जिन्हें हम अपना क़जन कह सकते हैं और जिनके साथ हमारा डीएनए भी 98.8 प्रतिशत तक मैच करता है, क्योंकि छह मिलयन वर्ष पहले, हमारे और उनके पुरखे एक ही थे, तो आपको बता दें कि वो भी मैस्टर्बेशन करते थे.
मैस्टर्बेशन एक मुफ़्त लाइफ़ स्किल ट्रेनिंग है, जो प्रकृति लड़कों को भावी साथी के साथ सेक्स के लिए तैयार करने के लिए स्वयं ही देती है. लेकिन समस्या यह है कि जब आप इसे पाप में बदल देते हैं, तो लड़के शर्म और अपराधबोध से अपने व्यवहार को छिपाना शुरू कर देते हैं और इसे ग़लत तरीक़े से सीखते हैं.
हम भारतीय हमेशा से मैस्टर्बेशन के बारे में जानते थे, यही कारण है कि मैस्टर्बेशन को संस्कृत में ‘हस्त-मैथुन’ यानी हाथ से किया जाने वाला संभोग कहा जाता था, न कि ‘ओनानिज़्म’ यानी अपूर्ण मैथुन- एक ऐसा काम जिसके लिए बाइबल के मुताबिक़ ईश्वर सज़ा देते हैं, जैसा कि अभी हाल ही तक वेस्टर्न देशों में माना जाता था… लेकिन भारत में ऐसा नहीं था. प्राचीन भारत की गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के एक भाग के रूप में किशोर अवस्था के लड़केऔर लड़कियों दोनों को ही इसके बारे में जानकारी दी जाती थी.
फिर इसे इतना गन्दा और पापपूर्ण कैसे माना जाने लगा?
इस बात को जानने में इतिहास हमारी मदद कर सकता है. हम सभी इस बात से परिचित हैं कि ब्रिटिश राज ने दो सौ वर्षों में हमारे देश को बुरी तरह लूटा है. लेकिन वहीं ईसाई मिशनरियों द्वारा भारतीयों की सेक्शुऐलिटी और परंपराओं को शर्मसार करने में निभाई गई भूमिका पर बहुत कम चर्चा की जाती है. यह भी उनका एक एजेंडा ही था, जो कुलीन कही जाने वाले कॉन्वेंट की शिक्षा के नाम पर आज भी जारी है. हम आसानी से यह बात भूल जाते हैं कि चाहे लोग हों या संस्थाएं सभी के अच्छे और बुरे दोनों पक्ष होते हैं – फिर चाहे वह हिटलर हो, गांधी हो या वैटिकन.
ईसाई धर्म एक ऐसा धर्म है, जो लोगों को प्रजनन यानी प्रोक्रिएशन के अलावा अपने ही जीव विज्ञान से नफ़रत करना सिखाता है. (याद है न कि कैसे आपके बायोलॉजी के टीचर ने स्कूल में प्रजनन के उस पाठ को पढ़ाया ही नहीं था, छोड़ ही दिया था?) अधिकांश ईसाई एजुकेशनल इंस्टिट्यूशन्स, और यहां तक कि गैर-ईसाई एजुकेशनल इंस्टिट्यूशन्स भी, इसका बचाव करने के लिए किसी भी हद तक चले जाएंगे.
हमने इसे वर्ष 2009 में देखा था, जब भारत ने, विशेषकर अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के दबाव के कारण, स्कूलों में यौन शिक्षा को अस्वीकार कर दिया था. वर्ष 2009 में यौन शिक्षा विरोधी लोगों के शुभंकर गांधी थे. जिनके बारे में आप पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि वे एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो आज के #मीटू वाले युग में होते तो शायद सेक्शुअल हैरासमेंट के लिए बलात्कारी हार्वे विंस्टीन की तरह, सलाखों के पीछे होते.
ओएमजी 2 एक शानदार फ़िल्म है, जो भारत की बदलती सांस्कृतिक विचारधारा को दर्शाती है. साथ ही, यह लोगों को बताती है कि गुलामी से पहले का भारत “आधुनिक” कहे जानेवाले पश्चिम की तुलना में कहीं ज़्यादा प्रगतिशील था. यह एक ऐसी फ़िल्म भी है, जो भारत के एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स को चेतावनी देती है कि यदि वे इस बदलाव को समझकर, उसके मुताबिक़ बदलाव नहीं लाएंगे, तो वे विलुप्त होने के उसी रास्ते पर चले जाएंगे, जैसे कि डोडो पक्षी विलुप्त हो गया है.
फ़ोटो: फ्रीपिक