जुलाई 23 से टोक्यो में शुरू हो रहे ओलंपिक्स में जल्द ही हमें कुछ नए नैशनल स्पोर्टिंग आइकॉन्स मिलनेवाले हैं. पर इस दल में कुछ ऐसे खिलाड़ी हैं, जो भले ही पोडियम तक न पहुंच पाएं, पर उनका ओलंपिक में भाग लेना, ख़ुद किसी प्रेरणादायी कहानी से कम नहीं है. उन्हीं में एक हैं तमिलनाडु से आनेवाली रेवती वीरामनी.
टोक्यो ओलंपिक्स अपने शेड्यूल टाइम से क़रीब एक साल की देरी से शुरू होने जा रहा है. विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं में देश के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी ओलंपिक्स में मेडल जीतकर देश को गौरवान्वित महसूस करने का मौक़ा देना चाहेंगे, जो कि निराशा से उबर रहे इस दौर में और भी ज़रूरी हो जाता है. यूं तो भारत का प्रतिनिधित्व करनेवाले हर खिलाड़ी का अपना संघर्ष, अपनी कहानी होती है, पर कुछ कहानियों की शुरुआत इतनी दुखद होती है कि उनका हौसला और भी बड़ा लगने लगता है. हम उनके हार जीत नहीं, बल्कि सर्वश्रेष्ठ स्तर तक पहुंचने की यात्रा को भी एक बड़ी उपलब्धि और सुखद कहानी मान सकते हैं. ऐसी ही कहानी है 23 वर्षीया ऐथलीट रेवती वीरामनी की.
अनाथ बचपन, नानी ने दी ज़िंदगी की दौड़ को रफ़्तार
तमिलनाडु के मदुराई ज़िले के सक्किमंगलम गांव में पैदा हुई रेवती वीरामनी छह वर्ष की उम्र से पहले ही अनाथ हो गई थीं. न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में रेवती ने बताया था,‘‘मुझे तो याद नहीं, पर मेरी नानी ने बताया था कि मैं बहुत छोटी ही थी, जब मेरे पिता की पेट की किसी बीमारी के चलते मौत हो गई थी. उसके छह महीने बाद ही दिमाग़ी बुख़ार ने मेरी मां को भी छीन लिया. उनके जाने के बाद मेरी और मेरी छोटी बहन के पालन-पोषण की ज़िम्मेदारी हमारी नानी पर आ गई.’’
उनकी नानी के अराम्मल ख़ुद आर्थिक दिक़्क़तों का सामना कर रही थीं, पर उन्होंने अपनी दोनों नातिनों की देखभाल के लिए अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ किया. के अराम्मल दूसरों के खेतों में मज़दूरी करती थीं. खेती का सीज़न न होने पर ईंट भट्ठे पर दिहाड़ी करती थीं. उन्हें कुछ शुभचिंतकों और रिश्तेदारों ने सलाह दी कि इन बच्चियों को भी काम पर भेजो, ताकि ज़िंदगी की गाड़ी सुचारू रूप से चल सके, पर के अराम्मल अपनी नातिनों को पढ़ाना चाहती थीं. उनकी इच्छा थी कि तंगहाल ही सही, पर इन लड़कियों को बचपन जीने का मौक़ा मिले. नानी खटती रहीं और बेटियां बढ़ती और दौड़ती रहीं.
नानी द्वारा छोटी उम्र में दिहाड़ी मज़दूरी के कुचक्र में न झोंके जाने का नतीजा है कि आज रेवती भारतीय रेलवे के मदुराई डिवीज़न में टीटीई हैं और उनकी छोटी बहन चेन्नई में पुलिस ऑफ़िसर.
नंगे पैर दौड़कर कमाया नाम
फ़िलहाल ओलंपिक में भारत की 4×400 मीटर मिक्स रिले टीम का हिस्सा रेवती स्कूली दिनों में नंगे पांव दौड़ती रहीं. 17 साल की उम्र में कोच के कनन ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें जूते ही नहीं सही कोचिंग भी मुहैय्या कराई. जल्द ही तमिलनाडु की इस धावक ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना ली. अब रेवती अपने पहले ओलंपिक्स में दौड़ने के लिए तैयार हैं.
के कनन से मिलने की कहानी बताते हुए रेवती कहती हैं,‘‘मैं स्कूली दिनों से ही नंगे पैर दौड़ती रही हूं. कॉलेज के दौरान भी यह सिलसिला चलता रहा. यहां तक कि वर्ष 2016 में कोयंबटूर में ओयोजित नैशनल जूनियर चैम्पियनशिप में भी मैं नंगे पैर दौड़ी थी, जहां मुझे कनन सर ने खोज निकाला. उन्होंने ही मुझे इस खेल से जुड़े ज़रूरी किट मुहैय्या कराए और ट्रेनिंग भी.’’
के कनन चाहते थे कि रेवती खेलों में आगे बढ़ने पर फ़ोकस करे, पर नानी चाहती थीं कि वे पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी तलाशें. के कनन ने रेवती की नानी को इस बात के लिए किसी तरह राज़ी किया कि रेवती दौड़ना न छोड़ें. उन्हीं की मदद से रेवती को मदुराई के लेडी डॉक कॉलेज के हॉस्टल में जगह मिली. वर्ष 2016 से 2019 तक के कनन के मार्गदर्शन में ऐथलेटिक्स के गुर सीखने के बाद रेवती को एनआईएस पटियाला के लिए चुन लिया गया.
और अब ओलंपिक्स में दौड़ेंगी रेवती
के कनन के मार्गदर्शन में 100 मीटर और 200 मीटर में दौड़नेवाली रेवती ने नैशनल कैम्प में कोच गैलिना बुखरीना की देखरेख में 400 मीटर में दौड़ना शुरू किया. ‘‘कनन सर ने भी कहा यह मेरे लिए अच्छा रहेगा और मैं एक दिन ओलंपिक्स में देश का प्रतिनिधित्व करूंगी. मुझे यक़ीन नहीं था कि वह दिन इतनी जल्दी आएगा.’’
ओलंपिक बर्थ मिलने पर रेवती का आश्चर्य जताना सही भी है, क्योंकि 2021 के सीज़न के शुरुआती हिस्से में चोट के चलते वे ट्रैक से दूर रही थीं. पर चोट से उबरने के बाद उन्होंने इंडियन जीपी 4 में 400 मीटर रेस में जीत हासिल करके अपनी फ़ॉर्म का परिचय दिया था. भारत की 4×400 मीटर रिले टीम की अहम सदस्य मानी जानेवाली वीके विस्मया और जिस्ना मैथ्यू के ख़राब फ़ॉर्म के चलते ऐथलीट फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया ने दूसरी खिलाड़ियों को ट्रायल के लिए बुलाया और मिक्ड 4×400 मीटर रिले टीम में रेवती का चयन हो गया.
क्या है मिक्स्ड रिले रेस?
मिक्स्ड रिले रेस टोक्यो ओलंपिक्स से पहली बार ओलंपिक खेलों का हिस्सा बन रही है. रिले रेस में चार धावक बैटन लेकर भागते हैं. मिक्स्ड रिले रेस में दो महिलाएं और दो पुरुष दौड़ेंगे. इस खेल की परिकल्पना सबसे पहले वर्ष 2019 के दोहा ऐथलेटिक्स वर्ल्ड चैम्पियनशिप में आई थी. वहां 16 टीमों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया था. इस खेल का ट्रायल दोहा से पहले 2017 में नसाऊ में आयोजित हुए वर्ल्ड रिलेज़ में हुआ था. हम तो यही उम्मीद करेंगे कि रेवती ने जिस तरह ज़िंदगी की बेरहम दौड़ में जीत हासिल की है, उसी तरह ओलंपिक्स की दौड़ में भी पोडियम पर पहुंचने में सफल रहें.