• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब क्लासिक कहानियां

मुर्दों का गांव: हिंदी की ज़ॉम्बी कथा (लेखक: धर्मवीर भारती)

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
November 8, 2021
in क्लासिक कहानियां, बुक क्लब
A A
मुर्दों का गांव: हिंदी की ज़ॉम्बी कथा (लेखक: धर्मवीर भारती)
Share on FacebookShare on Twitter

अकाल के बाद एक गांव की डरावनी हक़ीक़त बताती धर्मवीर भारती की यथार्थवादी रचना ‘मुर्दों का गांव’. यह कुछ-कुछ ज़ॉम्बीज़ की कहानी जैसी लगती है.

उस गांव के बारे में अजीब अफ़वाहें फैली थीं. लोग कहते थे कि वहां दिन में भी मौत का एक काला साया रोशनी पर पड़ा रहता है. शाम होते ही क़ब्रें जम्हाइयां लेने लगती हैं और भूखे कंकाल अंधेरे का लबादा ओढ़कर सड़कों, पगडंडियों और खेतों की मेंड़ों पर खाने की तलाश में घूमा करते हैं. उनके ढीले पंजरों की खड़खड़ाहट सुनकर लाशों के चारों ओर चिल्लानेवाले घिनौने सियार सहमकर चुप हो जाते हैं और गोश्तखोर गिद्धों के बच्चे डैनों में सिर ढांपकर सूखे ठूंठों की कोटरों में छिप जाते हैं.
इसी वजह से जब अखिल ने कहा कि चलो, उस गांव के आंकड़े भी तैयार कर लें, तो मैं एक बार कांप गया. बहुत मुश्क़िल से पास के गांव का एक लड़का साथ जाने को तैयार हुआ. सामने दो मील की दूरी पर पेड़ों के झुरमुटों में उस गांव की झलक दिखाई दी. मील भर पहले ही से खेतों में लाशें मिलने लगीं. गांव के नजदीक पहुंचते-पहुंचते तो यह हाल हो गया कि मालूम पड़ता था, भूख ने इन गांव के चारों ओर मौत के बीज बोए थे और आज सड़ी लाशों की फसल लहलहा रही है. कुत्ते, गिद्ध, सियार और कौए उस फसल का पूरा फायदा उठा रहे थे.
इतने में हवा का एक तेज झोंका आया और बदबू से हम लोगों का सिर घूम गया. मगर फिर जैसे उस दुर्गंध से लदकर हवा के भारी और अधमरे झोंके सूखे बांसों के झुरमुटों में अटककर रुक गए. सामने मुरदों के गांव का पहला झोंपड़ा दीख पड़ा. तीन ओर की दीवारें गिर गई थीं और एक ओर की दीवार के सहारे आधा छप्पर लटक रहा था. दीवार की आड़ में एक कंकाल पड़ा था. साथ वाला लड़का रुका,“यह! यह निताई धीवर है.”
“कहां?” अखिल ने पूछा.
“वह, वह निताई धीवर सो रहा है!” लड़के ने कंकाल की ओर संकेत किया,“वह धीवर था और गांव का सबसे पट्ठा जवान. अकाल पड़ा. भूख से उसकी मां मर गई. उसके पास खाने को न था, फिर लकड़ी लाकर चिता सजाना तो असंभव था. उसने अपनी नाव बाहर खींची, मां के शरीर को नाव में रखा, ऊपर से सूखी घास रखी और आग लगा दी. रहा-सहा सहारा भी चला गया और एक दिन वह भी यहीं भूखा सो गया. यहीं, इसी जगह उसकी मां ने भी दम तोड़ा था.” वह लड़का बोला.
हवा का झोंका फिर चला और खोखले बांसों से गुज़रती हुई हवा सन्नाटे में फिसल पड़ी. लड़का चीख पड़ा,“वह सांस ले रही है, सुना नहीं आपने?”
“कौन?”
“वह, वह जुलाहिन सांस ले रही है.”
“क्या वाहियात बकता है!” अखिल ने झुंझलाकर डांटा,“कौन जुलाहिन?”
“आपको नहीं मालूम? वह सामने झोंपड़ी है न, उसी में जुलाहे रहते थे. उसमें से तीन भूख से मर गए. रह गए सिर्फ़ जुलाहा, जुलाहिन और उनका करघा; मगर भूख से उनकी नसें इतनी सुस्त थीं कि करघा भी बेकार था. उन्होंने पास के जंगल से जड़ें खोदकर खानी शुरू कीं. उनके दांत नुकीले हो गए, जैसे सियारों की खीसें. जुलाहा बीमार पड़ गया. जुलाहिन जड़ें खोदने जाती थी. एक दिन जड़ें खोदते वक़्त खुरपी उसके कमज़ोर हाथों से फिसल गई और बाएं हाथ की तर्जनी और अंगूठा कटकर गिर गया. जब वह घर पहुंची तो भूखा व बीमार जुलाहा झल्ला उठा और चिल्लाकर बोला,‘निकल जा मेरे घर से. अब तू बेकार है. न करघा चला सकती है, न जड़ें खोद सकती है.’ तब से जुलाहिन का पता नहीं है. मगर कुछ लोगों का कहना है कि वह भूत बनकर गांव की क़ब्रों के पास घूमा करती है. वह अभी भी सांस ले रही थी, सुना नहीं आपने?”
अखिल ने मेरी ओर देखा और मैंने अखिल की ओर. हम दोनों आगे बढ़े और जुलाहों के झोंपड़े में घुसे. लड़का ठिठका, मगर हिम्मत दिलाने पर वह भी आगे बढ़ा. हम लोग अंदर गए. लड़के ने अंदर से किवाड़ बंद कर लिए और हम लोगों से सटकर खड़ा हो गया. वह डर से कांप रहा था. सामने आंगन में तीन क़ब्रें आसपास खुदी हुई थीं. बीच की क़ब्र में एक बड़ा सा छेद था. उसमें से एक बिज्यू निकला और हम लोगों को डरावनी निगाहों से पल भर देखकर सिर झटका और फिर क़ब्र में घुस गया. आंगन में किसी मुरदे के सड़ने की तेज़ बदबू फैल रही थी. अखिल ने अपना कैमरा संभाला और फ़ोटो लेने की तैयारी की. इतने में पीछे के किवाड़ खड़क उठे. मेरे रोंगटे खड़े हो गए. अखिल बोला,“कोई सियार होगा.”
किवाड़ को किसी ने जैसे बार-बार धक्का देना शुरू किया. मैंने सोचा, शायद ज़िंदा आदमी की गंध पाकर गांव भर के मुरदे हम पर हमला करने आए हैं. मेरे ख़ून का कतरा-कतरा डर से जम गया. लड़का बुरी तरह से चीख पड़ा. अखिल धीमे-धीमे गया, धीरे से किवाड़ खोल दिया. उसके बाद बुरी तरह से चीखकर भागा और मेरे पास आकर खड़ा हो गया. मैं बदहवास हो रहा था और आपको यक़ीन न होगा, मैंने दरवाज़े पर क्या देखा.
मैंने जिसे देखा वह आदमी नहीं कहा जा सकता था. वह जानवर भी नहीं था, भूत भी नहीं. एक औरतनुमा शक्ल, जिसकी खाल जगह-जगह पर लटक आई थी, सिर के बाल झड़ गए थे, निचला होंठ झूल गया था और दांत कुत्तों की तरह नुकीले थे. मालूम होता था, जैसे आदमी के ढांचे पर छिपकली का चमड़ा मढ़ दिया गया हो. उसके दाएं हाथ में एक खुरपी थी और बाएं हाथ की दो अधकटी और तीन साबुत उंगलियों में कुछ जड़ें. वह पल भर दरवाज़े के पास खड़ी रही, फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ी.
मैं चीखना चाहता था, मगर गला जवाब दे चुका था. वह हमारे बिल्कुल पास आकर खड़ी हो गई, जड़ें जमीन पर रख दीं और अपने तीन उंगलियोंवाले हाथ को मुंह के पास ले जाकर कुछ खाने का इशारा किया. हम लोगों की जान में जान आई. वह भूखी है, वह आदमी ही होगी; क्योंकि भूख आदमियत की पहचान है. अखिल ने अपने झोले में से केला निकाला और उसकी ओर फेंक दिया. उसने केला उठाया और मुंह के पास ले गई. मगर फिर रुक गई, उठी और झोंपड़ी के दूसरी ओर चल दी.
हम लोगों को कुतूहल हुआ. हम लोग भी पीछे-पीछे चले. वह औरत सहन के एक कोने में गई. वहीं एक मुरदा था, जिसकी सड़ांध आंगन में फैल गई थी. देहाती लड़के ने उसे देखा और पहली बार उसके मुंह से आवाज़ निकली,“जुलाहा! यह तो जुलाहे की लाश है. यह जुलाहिन उसे भी भूत बनाने आई है.”
जुलाहिन लाश के पास गई. लाश सड़ रही थी और उसमें चींटियां लग रही थीं. उसने केला और जड़ें लाश के मुंह पर रख दीं और हंसी. हंसी की आवाज़ मुंह से नहीं निकली, मगर खीसों को देखकर अनुमान किया जा सकता है कि वह हंसी होगी. दूसरे ही क्षण वह बैठ गई और मुरदे की छाती पर सिर रख सुबकने लगी.
“यह जुलाहिन है? मगर यह तो कम-से-कम सत्तर बरस की होगी.”
“सत्तर बरस. No, it is dropsy, देखते नहीं, ज़हरीली जड़ें खाने से इसकी नसों में पानी भर गया है, मांस झूल गया है.” अखिल बोला,“इस मुरदे को हटाओ, वरना यह भी मर जाएगी.”
उसके बाद हम लोग झोंपड़े के भीतर आए. पास में एक गड्ढा था. सोचा, इसी में लाश डाल दी जाए. भीतर आए, लाश के पास से जुलाहिन को हटाया और उसकी लाश भी एक ओर लुढ़क गई. मैं घबरा गया, बेहोश-सा होने लगा. अखिल ने मुझे संभाला. हम लोग थोड़ी देर चुप रहे. फिर मैं बोला-भारी गले से,“अखिल, उंगलियां कट जाने पर यह निकाल दी गई. फिर किस बंधन के सहारे, आखिर किस आधार के सहारे यह मरने से पहले जुलाहे के पास आई थी जड़ें लेकर? क्यों?”
अखिल चुप रहा-मुरदों के गांव की दोनों आख़िरी लाशें सामने पड़ी थीं.
“अच्छा उठो!” अखिल बोला.
हम लोगों ने लाशें उठाईं और गड्ढे में डाल दीं. एक ओर जुलाहा, दूसरी ओर जुलाहिन. बांस के सूखे पत्तों से उन्हें ढांक दिया. मैंने अपनी उंगली से धूल में गड्ढे के पास लिखा,“ताजमहल, 1943” और हम चल पड़े.

Illustration: Pinterest

इन्हें भीपढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#9 सेल्फ़ी (लेखिका: डॉ अनिता राठौर मंजरी)

फ़िक्शन अफ़लातून#9 सेल्फ़ी (लेखिका: डॉ अनिता राठौर मंजरी)

March 16, 2023
Dr-Sangeeta-Jha_Poem

बोलती हुई औरतें: डॉ संगीता झा की कविता

March 14, 2023
Fiction-Aflatoon_Dilip-Kumar

फ़िक्शन अफ़लातून#8 डेड एंड (लेखक: दिलीप कुमार)

March 14, 2023
Fiction-Aflatoon_Meenakshi-Vijayvargeeya

फ़िक्शन अफ़लातून#7 देश सेवा (लेखिका: मीनाक्षी विजयवर्गीय)

March 11, 2023
Tags: Dharmveer BhartiDharmveer Bharti ki kahaniDharmveer Bharti ki kahani Murdon ka gaonDharmveer Bharti Ki Panjabi KahaniyanDharmveer Bharti storiesFamous writers storyHindi KahaniHindi StoryHindi writersKahaniMurdon ka gaonPanjabi WritersUrdu Writersउर्दू के लेखक धर्मवीर भारती की कहानी मुर्दों का गांवकहानीधर्मवीर भारतीधर्मवीर भारती की कहानियांधर्मवीर भारती की कहानीमशहूर लेखकों की कहानीमुर्दों का गांवहिंदी कहानीहिंदी के लेखकहिंदी स्टोरी
टीम अफ़लातून

टीम अफ़लातून

हिंदी में स्तरीय और सामयिक आलेखों को हम आपके लिए संजो रहे हैं, ताकि आप अपनी भाषा में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी नई बातों को नए नज़रिए से जान और समझ सकें. इस काम में हमें सहयोग करने के लिए डोनेट करें.

Related Posts

hindi-alphabet-tree
कविताएं

भाषा मां: योगेश पालिवाल की कविता

March 9, 2023
Fiction-Aflatoon_Neeraj-Kumar-Mishra
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#6 इक प्यार का नग़्मा है (लेखक नीरज कुमार मिश्रा)

March 9, 2023
Fiction-Aflatoon_Dr-Shipra-Mishra
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#5 बाबुल की देहरी (लेखिका: डॉ शिप्रा मिश्रा)

March 6, 2023
Facebook Twitter Instagram Youtube
ओए अफ़लातून

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • टीम अफ़लातून

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist