दोपहर के एक बजे हैं, कड़ाके की धूप है. तक़रीबन 5-6 साल का एक बच्चा अपनी निक्कर की जेब पर हाथ रखे घूम रहा है. उसे डर है उसकी उछल-कूद में कहीं जेब में रखा एक का सिक्का बाहर न गिर जाए. सुबह मम्मी से कितनी मनुहार करके ये सिक्का लिया है, उसके बदले में समय पर ब्रश किया और तैयार भी हुआ था. डर उसे सिक्के के गुमने से ज़्यादा इस बात का है क अगर ये सिक्का गया तो आज की चुस्की भी चली जाएगी. इसके दस साल बाद देखेंगे तो भी कहानी ऐसी ही रहेगी, बस जेब में सिक्के बढ़ जाएंगे और चुस्की की जगह कुल्फ़ी ले लेगी, उसके दस साल बाद शायद कुल्फ़ी आइसक्रीम में बदल जाए और सिक्का नोट में. और आगे फिर शायद आइसक्रीम सॉफ़्टी में बदल जाए. पीढ़ी दर पीढ़ी सब बदलता रहेगा. बस, दीवानगी नहीं बदलेगी… यही तो आइसक्रीम का जादू है, जो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सबके सर चढ़कर बोलता है!
घर में ख़ुशी का मौक़ा हो, जन्मदिन हो, सगाई हो शादी हो, भूख लगी हो, ज़्यादा भूख न लगी हो, खाने के बाद मीठा खाने का मन हो, मीठा तो खाना हो पर ज़्यादा मीठा नहीं खाना हो, कोई ग़म हो, परेशानी हो, मूड बहुत ख़राब हो, मूड बहुत अच्छा हो, अच्छे रिज़ल्ट की पार्टी करनी हो, बुरे रिज़ल्ट से उबरना हो… मतलब वजह कोई भी हो लोग आइसक्रीम खा लेते हैं. आइसक्रीम तो भई अब भावनाओं से जुड़ गई है!
इतिहास आइसक्रीम का: आइसक्रीम के तार पकड़कर आप जब चलना शुरू करेंगे तो पाएंगे कि ये तार आपको चीन तक ले जा रहे हैं. कहा जाता था है कि चीन में 618-97 ईस्वी के बीच भी आइसक्रीम जैसा एक व्यंजन खाया जाता था, जिसमें दूध और बर्फ़ मिली होती थी. हालांकि आइसक्रीम के आधुनिक रूप का जन्म इसके बाद के कई वर्षों में धीरे-धीरे हुआ. यूं तो 200 ईसा पूर्व भी आइसक्रीम से मिलते-जुलते एक व्यंजन के प्रमाण मिले हैं, जिसमें चावल के आटे और दूध का प्रयोग होता था.
रोमन राजाओं के बारे में प्रचलित है कि वो अपने ग़ुलामों को ताज़ी बर्फ़ लेने के लिए के पहाड़ों पर भेजा करते थे और फिर इस बर्फ़ में तरह-तरह के फ़्लेवर मिलाकर एक अलग ढंग की आइसक्रीम बनाई जाती थी. ये शायद हमारे बर्फ़ के गोलों-सा कुछ हुआ करता होगा.
मार्कोपोलो जब 12वीं सदी में इटली से चीन गया तो वहां से आइसक्रीम बनाने की विधि अपने साथ ले आया, पर इटली वालों को आइसक्रीम सही ढंग से बनाने में तकरीबन 200 साल लगे.
भारत में आइसक्रीम: भारत में आइसक्रीम काफ़ी बाद में आई. माना जाता है ये भारत में कुल्फ़ी के रूप में आई, जब मुग़ल बादशाह भारत आए तो अपने साथ जो ख़ानसामे लाए थे, वो कुल्फ़ी जमाने की विधि जानते थे. भारत में आने के बाद कुल्फ़ी के साथ न जाने कितने ही प्रयोग हुए और ये सबकी पसंदीदा बनती चली गई.
क़िस्से आइसक्रीम से जुड़े: आइसक्रीम के साथ इतने सारे क़िस्से जुड़े हैं कि सुनाने बैठा जाए तो दिन निकल जाए, पर दो बहुत ही मज़ेदार कहानियां बताती हूं: जब रोमन राजकुमारी की शादी इंग्लैंड के रजा चार्ल्स से हुई तो वो अपने साथ 4-5 ऐसे लोग लाई, जो आइसक्रीम बनाना जानते थे. जब राजा ने एक के हाथ की बनी बेहतरीन आइसक्रीम चखी तो वो उन्हें इतनी पसंद आई की उन्होंने इन लोगों को 500 पौंड हर साल देने का वादा इस शर्त पर किया की वो आइसक्रीम की रेसिपी किसी को नहीं बताएंगे, पर ऐसा हो नहीं पाया कुछ ही सालों में इंग्लैंड के बड़े घरों में आइसक्रीम की रेसिपी पहुंच गई और वहां से धीरे-धीरे आम लोगों तक भी इसकी पहुंच बढ़ी.
दूसरा किस्सा है आइसक्रीम सन्डे का. तो क़िस्सा ये है कि 19 वीं शताब्दी के अंत में अमेरिका के एक टाउन में सन्डे के दिन आइसक्रीम सोडा बेचने पर रोक लगा दी गई थी. ऐसे समय में स्थानीय व्यापारियों ने आइसक्रीम में सोडा की जगह शुगर सिरप डालना शुरू किया और इसका नाम रखा आइसक्रीम सन्डे, जिसमें सन्डे की स्पेलिंग sundae थी यानी सन्डे की स्पेलिंग में y की जगह e रखा गया, ताकि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे. और आज देखिए ice cream sundae पूरे विश्व में लोगों की पसंद बन गया है.
यादों के झरोखे से: मैं जब छोटी थी तो मटका कुल्फ़ी और बर्फ़ की बनी फ़्लेवर वाली चुस्कियों का प्रचलन बच्चों में ज़्यादा था. हालांकि अमूल और वाडीलाल के फ़ैमिली पैक भी आते ही थे, पर वो हर दिन की बात नहीं थी. यूं तो आइसक्रीम कोन भी मिलते थे, पर वो भी कभी-कभार खाए जाते थे. हर दिन तो ऑरेंज चुस्की, मलाई कुल्फ़ी ,पत्थर वाली दूध की कुल्फ़ी जैसी चीज़ें खाई जाती थीं. घरों में दूध जमाकर भी आइसक्रीम ख़ूब बनाई जाती थी. बाद में जब मैक्डोनाल्ड भारत आया तब उसकी सॉफ़्टी ने भी ख़ूब धूम मचाई. ice cream sundae से मेरा पाला काफ़ी समय बाद पड़ा और धीरे-धीरे तो आइसक्रीम के इतने फ़्लेवर आने लगे कि आइसक्रीम घरों में हमेशा पाई जाने लगी- घर की बनी भी और बाज़ार वाली भी .पहले गर्मियों में ही आइसक्रीम खाई जाती थी, फिर इसने धीरे-धीरे पूरे साल पर अपना कब्ज़ा जमा लिया. यहां न जाने कितने तरह की आइसक्रीम मिलती है, पर मुझे आज भी भारतीय फ़्लेवर ही लुभाते हैं. सच ही तो है बचपन में लगा स्वाद भुलाना आसान भी तो नहीं होता!
अच्छा आप भी बताइएगा हमें अपने आइसक्रीम वाले क़िस्से इस आईडी पर: [email protected] या फिर ओए अफलातून के फ़ेसबुक पेज के कमेन्ट में. जल्द ही मिलेंगे अगले क़िस्सों के साथ तब तक के लिए अलविदा…
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट