हम एक प्रतियोगी समय में रह रहे हैं. बचपन से ही अपने बच्चों को सबसे आगे देखने की हमारी इच्छा उनके साथ क्या कुछ कर सकती है? लेखिका भावना प्रकाश की नई कहानी ‘सफल प्रतियोगी’ बड़ी संजीदगी से बता रही है.
वीरेन के माता-पिता विम्मी और हितेन अपने पड़ोसी मित्र रोहन और उसकी पत्नी सीमा के आवेश भरे प्रश्न सुनकर स्तब्ध रह गए. उन्हें ये समझने में कुछ मिनट लग गए कि सीमा और रोहन की बारह वर्ष की बेटी निन्नी चार घंटे से लापता थी. मां-बाप का दिल इन चार घंटों में सदियों की दहशत झेल चुका था. पड़ोस, सहेलियां, छत और गैराज सब उनकी चिंता के खामोश गवाह बन चुके थे. चिंता संध्या की परछाईं की तरह बढ़ती ही जा रही थी कि उसकी सहेली ने बताया वो वीरेन भइया के साथ उनकी नई बाइक पर घूमने गई है. इसीलिए वो यहां आए थे. विम्मी और हितेन अचकचाए से हालात को समझने की कोशिश कर ही रहे थे तभी रोहन का मोबाइल बजा. बदहवास से रोहन ने स्पीकर पर डालकर फ़ोन उठाया तो निन्नी की हिचकियां सुनाई दीं. मां-बाप के दिल की धड़कनें थम सी गईं. उनकी सारी इंद्रियां जैसे कान बनकर मोबाइल पर केंद्रित हो गई थीं. हिचकियों के बीच आधा-अधूरा सा सुनाई दिया,‘वीरेन भइया को…उन लोगों को…छोड़ना नहीं…पुलिस को…मम्मी पुलिस को…मुझे पुलिस को सब सच बताना है… मम्मी आ जाओ. फिर स्वर हिचकियों में खोने लगे तो फ़ोन किसी स्थिर आवाज़ ने ले लिया. ‘आप घबराएं नहीं पर तुरंत लाइफ़-लाइन हॉस्पिटल पहुंचें.’
‘चलिए और अपने कानों से सुनिए कि मेरी बच्ची पुलिस को क्या-क्या बताना चाहती है.’ रोहन के सशंकित स्वर में क्षोभ और आंखों में उत्तेजना का समंदर था.
जब हितेन और विम्मी रोहन की कार में बैठे तो उन्हें लग रहा था जैसे पुलिस जीप में बिठाकर हथकड़ियां लगाकर ले जा रही हो. उनका दिल ये मानने को क़तई तैयार नहीं था कि उनकी परवरिश में ऐसी कमी कमी रह गई कि उनका बेटा…उनके मन में उठे अपमान और विक्षोभ के चक्रवात में अतीत की पुस्तक के पन्ने फड़फड़ाते चले जा रहे थे…
रोहन और सीमा की तरह ही उस लड़की का भाई भी आंखों में तूफ़ान लिए धड़धड़ाता हुआ आया था. वीरेन भी जोश में उसके सामने गया तो उसने बिना कुछ कहे-सुने एक तमाचा जड़ दिया. वीरेन ने भी पलटवार कर दिया. विम्मी और हितेन तो अवाक से देखते रह गए और गुत्थमगुत्था शुरू हो चुकी थी. किसी तरह बीचबचाव किया तब तक शोर सुनकर पूरा मोहल्ला इकट्ठा हो चुका था.
‘अपने आवारा बेटे को सम्हाल लीजिए. आइंदा कभी मेरी बहन की ओर आंख उठाकर भी देखा तो ऐसी एफ़आईआर दर्ज कराऊंगा कि लॉक-अप से बाहर नहीं निकाल पाएंगे आप लोग. हम चुपचाप सहने वालों में से नहीं हैं.’ जाते-जाते वो चिल्ला-चिल्ला कर धमकी देता जा रहा था. वीरेन पीछे से चिल्लाता जा रहा था,‘ऐसे कैसे छोड़ दूंगा? नामर्द समझ कर रखा है क्या जो ऐसे डिच करके निकल जाएगी और मैं निकलने दूंगा.’ पूरा मोहल्ला वीरेन की धमकी सुन रहा था और मां-बाप हतप्रभ से खड़े थे. लड़की पड़ोस की भी थी और वीरेन के कॉलेज में उसकी ही कक्षा की भी. ज़्यादातर पड़ोसियों ने लड़की के रिश्तेदारों या आसपास से सुनकर लाखों कहानियां बना ली थीं जो घर के आसपास उग आई कांटेदार झाड़ियों सी मां-बाप को दिन-रात चुभती थीं.
बचपन से पढ़ाई में औसत था वीरेन लेकिन कैशोर्य के सपने कब अपनी योग्यता को तोलना सीख पाते हैं. जब पहली बार आईआईटी नहीं निकाल पाया तभी समझाया था कि जहां प्रवेश मिल रहा है, ले ले. मगर आज्ञाकारी वीरेन पहली बार ज़िद पर अड़ गया कि आईआईटी के अलावा कहीं प्रवेश नहीं लेना है. पहली बार उसने ऊंचे स्वर में पिता से बात की, उलाहना दिया कि अगर कोचिंग करा देते तो वो निकाल ले जाता.
कोचिंग की फ़ीस के इंतज़ाम के लिए जद्दोजहत करनी पड़ी पर वीरेन का ख़ुश चेहरा देखकर सब भूल गए थे वे. बीएससी ज्वाइन करने से पहले भी बहुत रस्साकशी हुई. वो बीएससी नहीं ज्वाइन करना चाहता था मगर ऐसे कैसे साल बेकार जाने देते? वीरेन उनकी बात टाल नहीं पाया और वे ये सोचकर ख़ुश हो गए कि उनका आज्ञाकारी बेटा बिगड़ा नहीं है. हितेन ये सोचकर गर्व करता कि उसने कितने योजनाबद्ध तरीक़े से ज़िंदगी भर ख़र्च संचालित किया कि बीएससी की फ़ीस और कोचिंग की ईएमआई एक साथ देने से उनका बजट बिगड़ नहीं रहा. विम्मी ये सोचकर कि वो पूरी निष्ठा के साथ बेटे को समय देती है. दूध में भीगे बादाम, हर दो घंटे पर कोई पौष्टिक नाश्ता जो उसकी पसंद का भी हो, कभी सिर में तेल मालिश तो कभी हंसी-मज़ाक. लेकिन वीरेन दो पाटों के बीच किस तरह पिस रहा था, वो ये न समझ सके. क्या वहां ग़लती हो गई?
आईआईटी दूसरे साल भी वो निकाल नहीं पाया और बीएससी में भी अंक साठ प्रतिशत तक गिर गए. वीरेन का चेहरा बुझा रहने लगा. आंखों में एक अजीब-सी वीरानगी दिखती. उस पर ये समाज! कोई रिश्तेदार या परिचित ऐसा नहीं होगा जिसने वीरेन से ये ज्ञान न बांटा हो कि उसने पिछले साल जहां प्रवेश मिल रहा था, वहां न जाकर कितनी बड़ी ग़लती कर दी. बीएससी द्वितीय वर्ष में था तो फिर असफलता की वही त्रासद कहानी दोहराई गई और बीएससी के अंकों में पचास प्रतिशत तक गिरावट आ गई. अब तो अनुभवी समाज के ज्ञान का पिटारा मां-बाप और बेटे तीनों के दिल की कशमकश और बेचारगी को कभी अकुलाहट और कभी उकताहट में बदलने लगा. धीरे-धीरे वे लोगों से मिलने में कतराने लगे. मिलने का मन भीं क्यों करे? ‘वीरेन क्या करेगा? ये उनके जीवन का यक्ष प्रश्न था जिसका उत्तर खोजने में ख़ुद उनकी आत्मा लहूलुहान हुई जाती थी. वही प्रश्न मिलने वाले उनके सामने खड़ा कर देते. वीरेन की आंखों की वीरानगी उद्विग्नता में बदलती जा रही थी और वो खामोश होता जा रहा था. तीसरे साल में ये उद्विग्नता अपने चरम पर पहुंच गई थी जब बीएससी के अंकों की गिरावट चालीस प्रतिशत पर पहुंच गई.
फिर वीरेन ने कुछ न ज्वाइन करके ग्रेजुएशन के बाद दी जाने वाली परीक्षाएं देनी आरम्भ कीं. उन्हीं दिनों वो उन लड़कों की संगत में पड़ गया जिन्हें आवारा समझा जाता था. वीरेन पान की दुकान के पास वाली गुमटी पर उन आवारा लड़कों के साथ बैठा नज़र आने लगा जो आती-जाती लड़कियों पर फबतियां कसते रहते थे. तभी एक दिन उस लड़की के भाई ने वीरेन पर आवारगी की मुहर लगा दी. इस पर माता-पिता को लगा कि उनकी वर्षों की तपस्या विफल हो गई है और वो परवरिश के इम्तेहान में अनुत्तीर्ण हो गए हैं. वो टूट से गए. उनके अंदर सुलगती निराशा का जमा हुआ जहरीला धुंआ फटकार बनकर अक्सर तानों-उलाहनों के रूप में बाहर आया. बहुत सी नसीहतें और फटकार घंटों बरसती कि उन लड़कों की संगत छोड़ दे पर वीरेन की खामोश उपेक्षा न टूटती. उसकी आंखों के सन्नाटे में कोई शोर न उभरा. उसकी आंखों की खामोश इबारत न पढ़ सके क्या ये ग़लती हो गई?
धीरे-धीरे संवादहीनता बढ़ने लगी थी और मां-बाप का बेटे पर नियंत्रण कम होने लगा. ‘आगे क्या करना है?’ का प्रश्न जब उठता एक झगड़े और उसके बाद उपजी संवादहीनता पर समाप्त होता. उन्हें समझ न आता कि ग़लती आख़िर हुई कहां? वे समझ नहीं पा रहे थे कि कैसे समझाए बेटे को कि उनकी चिंता बेरोज़गारी को लेकर नहीं उसके संस्कारों, संगत और व्यवहार को लेकर है, जिसके लिए उन्होंने सारा जीवन सतर्कता बरती थी. घर छोटा था और मां-बाप हमेशा आसपास ही रहते थे. कोई बुरी संगत नहीं, इधर-उधर अकेले जाना नहीं. शुरू से नियम बनाया था उन्होंने कि शॉपिंग मॉल, सिनेमा, रेस्ट्रां आदि वीरेन की पसंद के ही चुने जाते थे और तीनों साथ ही जाते थे ताकि बेटे को स्वस्थ मनोरंजन की कमी न हो. बेटा किसी तरह के व्यसन में पड़ जाए और उन्हें पता न चले ऐसा हो ही नहीं सकता था. अंकों या असफलता के लिए प्रताड़ित करना तो दूर, बहुत कोशिश की थी कि वो अपना ग़म उनके साथ बांट ले लेकिन सब बेकार. उसकी आंखों में एक अजब सा सन्नाटा था जिसे देखकर दहशत सी होती थी. दो साल और बीतते-बीतते एक-एक करके उन सभी परीक्षाओं के नतीजे नकारात्मक आ गए जिनका फॉर्म उसने समझौते की तरह ये सोचकर भरे थे कि इन्हें तो वो निकाल ही लेगा.
उस घटना के बाद सारे पड़ोसी उसे हिकारत भरी नज़रों से देखने और अपने बच्चों को उसके साथ खेलने से मना करने लगे थे. वीरेन को बच्चों से ख़ासकर निन्नी से बहुत लगाव था. जब वो पढ़ते-पढ़ते थक जाता, छत पर जाकर आवाज़ लगता. उसकी एक आवाज़ पर निन्नी और दूसरे बच्चे इकट्ठा हो जाते लेकिन अब लोगों ने अपने बच्चों को वीरेन से मिलने से मना कर दिया. और किसी का तो नहीं पर निन्नी का उसके पुकारने पर छत पर न आना उसे बहुत खल जाता. एक दिन निन्नी छत पर उसे अकेले में दिख गई पर उसे देखकर भागने लगी तो उसका रास्ता रोककर खड़ा हो गया और अधिकार भरे स्वर में बोला,‘क्यों री निन्नी, आजकल दिखाई क्यों नहीं देती है? आ देख, मैंने मोबाइल में नया वीडियो गेम डलवाया है.’
‘मैं आपके साथ नहीं खेलूंगी क्योंकि आप आवारा हो गए हैं. आपके साथ मैं सेफ़ नहीं हूं.’ निन्नी ने इतनी मासूमियत से कहा कि वीरेन को हंसी आ गई. ‘अच्छा! बड़ी सयानी हो गई है तू! मैं आवारा हूं? अभी बताता हूं.’ कहकर उसने बचकर भागती निन्नी को पकड़ लिया और ज़बरदस्ती गोद में उठाकर उछाल दिया पर हमेशा इस हरकत पर खिलखिला पड़ने वाली निन्नी चीखकर रोने लगी और ज़मीन पर खड़ा करते ही भाग गई. पीछे से वीरेन पुकारता ही रह गया कि चोट लग गई क्या?
थोड़ी देर बाद सीमा आवेश में आई और वीरेन को बेतरह डांटने लगी. वीरेन ने कई बार अपना पक्ष रखने की कोशिश की पर सीमा ने उसे डांटकर चुप करा दिया. ‘आइंदा कभी मेरी बेटी को छूने की कोशिश की तो…मैं जानती हूं कि तुम जैसे आवारा से कैसे निपटा जाता है.’ जाते-जाते जब वो ये बोली तो विम्मी से बर्दाश्त नहीं हुआ क्योंकि इत्तेफाक से ये सारा वाक्या विम्मी के सामने का था. वो बोल पड़ी,‘आवारा से आपका क्या मतलब है? मेरे सामने की बात है. बच्चा है वो भी, निन्नी बड़ी हो रही है, इसका अंदाज़ उसे नहीं लग पाया इसीलिए गोद में उठा लिया. बस इतनी सी बात है और आप जाने क्या-क्या बोले जा रही हैं.’
सीमा की तेज़ आवाज़ से सारा पड़ोस खिड़कियों से झांकने ही लगा था. वो जाते-जाते ठोंक गई,‘हां लड़के कुछ भी करें, मां-बाप के लिए एक छोटी ग़लती ही होती है इसीलिए तो महिलाओं के खिलाफ़ अपराध थम नहीं रहे.’
विम्मी तिलमिला उठी. वीरेन पर ग़ुस्साने के लिए पलटी पर उसकी आंखों में सदमेग्रस्त उद्विग्नता देखकर पसीज गई. आख़िर मां का दिल था. ‘बेटा आंटी की बात का बुरा मत मानना, मैं जानती हूं कि तू ग़लत नहीं है.’ कहकर उसने प्यार से बेटे के सिर पर हाथ फेर दिया.
तपते हुए तवे को पानी की एक बूंद ठंडा नहीं कर सकती बल्कि ख़ुद अपना अस्तित्व खो देती है. वीरेन मां का हाथ पकड़ कर चीख पड़ा. ‘मां, आंटी को लगता है मैं निन्नी के साथ? निन्न्न्नी के साथ?… क्या मैं लोगों की नज़रों में इतना गिर गया हूं?’ उसकी आवाज़ थर्रा रही थी और आंखों में आग थी. आज विम्मी को एहसास हुआ कि इस आग को डांट-फटकार के घी की नहीं, ममता की सरिता की ज़रूरत है. उसने बेटे को गले से लगा लिया. ‘नहीं बेटा, आजकल इतनी वारदातें हो रही हैं कि अभिभावक यों भी घबराए रहते हैं. उस पर कुसंगत को अपनाने की ग़लती तो तूने की हैं. बेटा, इसीलिए तो कहा जाता है कि विश्वास कमाने में बरसों लग जाते हैं पर विश्वास टूटने के लिए एक लमहा ही बहुत होता है. ये तो ज़माने की रीत है.’ उसने बेटे को गले से लगाए हुए प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा. मां की ममता की ऊष्णता पाकर वीरेन की खामोशी का बांध टूट गया और आक्रोश का सैलाब उमड़ पड़ा. वो फफक-फफक कर रोने लगा. संवादहीनता की दीवार टूटी तो पहली बार विम्मी ने वीरेन का पक्ष सुना.
जो लड़का किसी प्रतियोगी परीक्षा में नहीं आता क्या वो इनसान नहीं होता? वो किसी लायक नहीं होता? मां रिश्तेदारों और पड़ोसियों के तानों से घायल मन को उन लड़कों से मिले सम्मान ने मरहम दिया. मां मुझे उन लड़कों के अलावा और कोई सम्मान नहीं देता, कोई प्यार नहीं करता. मैं अपना गम किसके साथ बांटू? मैं उन लोगों के साथ बैठता ज़रूर हूं पर मैंने आजतक किसी लड़की को कोई तक़लीफ़ नहीं पहुंचाई बल्कि मैं तो उन्हें ऐसा करने से मना करता हूं और कई बार वो मेरी बात मान भी जाते हैं.’
मुझे रीमा पर भी इसीलिए ग़ुस्सा आई. वो बहुत चालाक निकली. उसने केवल प्रवेश परीक्षा पर कंसेंट्रेट किया और बीएससी की पढ़ाई मेरे नोट्स की और मेरी सहायता से केवल अंतिम एक महीने में करती रही. बीएससी की परीक्षाएं ख़त्म होते ही मैं उसके लिए यूज़लेस हो गया? उसने मुझे सबके सामने बिना मतलब दुत्कार दिया केवल इसलिए कि दोस्ती टूट जाए? ..मैंने उसके साथ कुछ ग़लत नहीं किया. केवल एक बार उसे एहसास दिलाना चाहता था कि उसने ग़लत किया. वो मेरी बात सुनना नहीं चाहती थी और कहे बिना मुझे चैन नहीं आ रहा था इसीलिए उसे कमरे में अकेला देखकर मैंने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया था. इससे वो बेतरह डर गई. मेरे दोस्त समझते हैं कि मैं पुलिस की धमकी और उसके घरवालों से डर गया? नहीं मां, मैंने इसलिए उससे दोबारा कुछ कहने की कोशिश नहीं की क्योंकि मैं उसे ऐसा सबक सिखाना चाहता था कि उसके भीतर का इनसान डरे, लड़की नहीं.’
वो दो घंटे अपना पांच सालों का ग़ुबार निकालता रहा और विम्मी सुनती रही. फिर बड़े प्यार से समझाना शुरू किया,‘बेटा, हम मध्यवर्गीय परिवारों में परीक्षा बच्चे देते हैं और पास-फ़ेल मां-बाप होते हैं. हम तेरी हर असफलता को अपनी असफलता मानकर दुखी होते रहे पर तेरे दिल पर क्या गुज़र रही है, ये न समझ सके. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. यक़ीन मान तेरी मां तुझे सम्मान देती है, प्यार करती है, तुझपर विश्वास करती है. मैं बहुत ख़ुश हूं ये जानकर कि तू उस लड़की के भीतर के इनसान को डराना चाहता था, लड़की को नहीं. रही बात समाज की तो बेटा लोग इनसान को उसकी संगत से ही पहचानते हैं. एक बार तू उन लड़कों की संगत छोड़ दे, देख सब ठीक हो जाएगा.’
रात में वीरेन के सोने के बाद विम्मी ने हितेन को सारी बातें बताईं. हितेन को भी लगा कि अम्मा-बाबूजी ठीक समझाया करते थे कि बेटे के दोस्त बनो. तड़पते दिल से हितेन ने सोते हुए वीरेन के सिर पर हाथ फेरा तो वो उठ बैठा. जो काम सालों की डांट-फटकार और तानें-उलाहने नहीं कर पाये थे वो दो बूंद आंसुओं और एक प्यार भरे स्पर्श ने कर दिया. वो पिता से लिपट कर ख़ूब रोया और ख़ूब बोला. इस बार विषय अतीत का दर्द नहीं भविष्य की चिंता था. पहली बार हितेन ने महसूस किया कि वीरेन के भी दिल पर कितना बोझ है. उन्हें अफ़सोस हुआ कि वो सिर्फ़ अपने दर्द के बारे में सोचते रहे…
वीरेन ने तो कुसंगत छोड़ दी पर कुसंगत उसे इतनी आसानी से छोड़ने को तैयार न हुई. उन लड़कों के फ़ोन काल्स, बुलावे उसे परेशान करते पर वो सख्ती से मना कर देता. वो ख़ुद को मज़बूत महसूस करने लगा था क्योंकि अब उसके मां-बाप उसके साथ थे. वो उनके साथ अपना दर्द बांट सकता था. घर का माहौल ख़ुशनुमा हो गया था और भविष्य की अर्थहीन चिंता सार्थक विचार-विमर्श में बदल गई थी.
कार एक झटके से रुकी तो उनके विचारों की शृंखला टूटी. सब हॉस्पिटल की ओर दौड़े. रिसेप्शन पर ही निन्नी बैठी थी. बदहवास लेकिन सही सलामत.
पास ही पुलिस भी थी. निन्नी माता-पिता को देखते ही दौड़कर उनसे लिपट गई. ‘वीरेन भैया को बचा लो. वो मर गए तो मैं भी मर जाऊंगी.’
‘तू वीरेन के पास पहुंची कैसे’ उसकी मां सीमा ने प्रश्न किया. ‘
तुमने उस दिन भैया को मेरी वजह से ख़ूब डांटा था तो वो ख़ूब रोए थे. जबकि उनकी तो कोई ग़लती ही नहीं थी. इसीलिए मैं उनके पास सॉरी बोलने गई तो उनकी नई बाइक देखी. मैंने उनसे पूछा कि मुझे घुमाएंगे?’
अब निन्नी के माता-पिता अपराधी की तरह खड़े थे और वीरेन के पिता हितेन के आंखों में उलाहना था. सुरक्षा के नियमों को सुबह-शाम घुट्टी की तरह पिलाने के बावजूद निन्नी ने ख़ुद को एक तथाकथित आवारा के हाथ सौंप दिया था. उसके दिल की प्राकृतिक मासूमियत दिमाग़ की कृत्रिम समझदारी पर हावी हो गई थी. अब इसे किसकी ग़लती कहा जाए?
‘क्या हुआ?’ पूछने पर निन्नी फूट पड़ी,‘रास्ते में कुछ लड़कों ने भैया का रास्ता रोक लिया. वो भैया को अपने साथ चलने को कहने लगे. भैया ने कहा कि मैं बहन को घर छोड़ आऊं तो बात करता हूं. तो वो कहने लगे कि हमें तो लड़कियों को छेड़ने से भी मना करते थे और ख़ुद हाथ आए माल को अकेले हजम करना चाहते हो? भैया ग़ुस्सा गए. उन्होंने उसे उंगली दिखाकर कहा,‘मेरी बहन है वो. खबरदार!’ इस पर वो भी ग़ुस्सा गए. हमें उंगली दिखाकर ख़बरदार करता है. ठीक है, तुझे बताते हैं. अब आज तेरी बहन यहां से नहीं जाएगी. तुझे जाना हो तो जा. कहकर उन्होंने मेरे कंधे पर डंडा रख दिया. अब वीरेन भैया डर गए. उन्होंने कहा कि मेरी बहन को जाने दो, हाथ जोड़ता हूं. ‘अब आया लाइन पर’ कहकर वो तगड़ा वाला लड़का हंसा और कहा ठीक है हम जो कहते हैं वो कर तो तेरी बहन को छोड़ देंगे. वो जो जो कहते गए भैया करते गए. बहुत विनती की. बहुत देर भैया का मज़ाक बनाने के बाद बहुत गंदी बात कहकर मेरी ओर हाथ बढ़ाया. तब भैया को ग़ुस्सा आ गई. कहने लगे उसकी ओर आंख उठाकर देखा तो आंखें फोड़ दूंगा. मेरे भैया बहुत बहादुर हैं…’ किसी तरह हिचकियों के बीच इतनी बातें समझ में आईं उसके बाद निन्नी के स्वर पूरी तरह से हिचकियों में खो गए.
घायल वीरेन ने मां को देखा तो उसका हाथ थामकर बोला,‘तुम्हारे बेटे ने किसी लड़की के सम्मान पर आंच न आने दी. तुम्हें समाज की नज़रों में फ़ेल नहीं होने दिया. ख़ुश हो न?’ उसकी बात सुनकर विम्मी रुलाई रोककर मुस्कुराते हुए बोली,‘बरसों की ख़्वाहिश थी कि तुम कोई प्रतियोगी परीक्षा निकाल लो तो जश्न मनाएं,आज तुमने ज़िंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा, इनसानियत की परीक्षा निकाल ली है और हमने परवरिश की. जल्दी से ठीक हो जाओ, सेलिब्रेट करना है.’
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