गुमशुदा: मंगलेश डबराल की कविता
वे लोग जिनके अपने इस भरी दुनिया में खो जाते हैं, आजीवन उस खोए हुए अपने की तलाश में, उसके ...
वे लोग जिनके अपने इस भरी दुनिया में खो जाते हैं, आजीवन उस खोए हुए अपने की तलाश में, उसके ...
कहते हैं बुढ़ापा भी एक तरह का बचपना होता है. पिता के चश्मे को माध्यम बनाकर लिखी गई यह कविता ...
किसी भी नायक को बड़ा बनाने में उसके सह-नायक यानी साइड हीरो की बड़ी भूमिका होती है. अक्सर नायक की ...
अपनी सुविधा अनुसार चीज़ों को भुलाने की हमारी आदत ने हमें सचमुच भुलक्कड़ बना दिया है. हम भूलने के युग ...
क्यों सुबह की नींद एक स्त्री जैसी होती है? बता रही है दिवंगत कवि मंगलेश डबराल की यह ख़ूबसूरती-सी कविता. ...
पहाड़ों की एक मासूम-सी दादी कहती है, टॉर्च में उजाले के साथ आग भी होनी चाहिए…दादी के माध्यम से कवि ...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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