रिश्तों की ओवरहॉलिंग का अर्थ है रिश्तों की पड़ताल करना और इसके लिए कई लक्षणों पर ग़ौर करना ज़रूरी है. कहां गड़बड़ हो रही है, क्या है जो परेशान कर रहा है, क्या है जो तनाव पैदा कर रहा है इसे पकड़ना ज़रूरी है. साथ ही इन मुद्दों को लेकर स्पष्टता से बातचीत की भी आवश्यकता होगी. स्वस्थ और ईमानदार संवाद कई परेशानियों को आप ही सुलझा देता है. अतः भारती पंडित का मश्विरा है कि उन मुद्दों पर भी जो आपको अप्रिय लग रहे हो, बातचीत करने से न हिचकिचाएं.
सालोंसाल एक सी राह पर चलते हुए कई बार लोग दिल के रिश्तों को यूं ही किसी रूटीन जिए चले जाते हैं. लेकिन रिश्ते भी खाद-पानी मांगते हैं और यदि वह न मिले तो ऊपर से देखने पर तो सब सहज सामान्य ही लगता है, मगर अन्दर बहुत कुछ घट जाता है, बहुत कुछ बदल जाता है। और एक दिन अचानक यह बदलाव किसी बवंडर की तरह जीवन को अस्त-व्यस्त कर देता है. पर ऐसा नहीं कि यह सब अचानक होता है… इससे पहले सूक्ष्म संकेत मिलते हैं, ठीक वैसे ही जैसे किसी बीमारी से पहले उसके लक्षण दिखाई देते हैं. हां, यदि उन पर ग़ौर करने से चूके तो परिणाम गंभीर होते जाते हैं. रिश्तों की अदायगी में आ रहे इन्हीं सूक्ष्म परिवर्तनों पर ग़ौर करना ज़रूरी है. यदि आपके रिश्तों के बीच यह सब घटित हो रहा है तो समझ लीजिए कि आपके रिश्तों को तुरंत ओवरहॉलिंग की ज़रूरत है. आपकी मदद के लिए बदलाव के कुछ संकेत ये रहे:
पुरानी ग़लतियों को उधेड़ना: जब अतीत में हुई ग़लतियां आपके और आपके साथी की वर्तमान की बातचीत का हिस्सा बनने लगें और ज़रा सा विवाद होते ही उनका उल्लेख बार-बार आने लगे तो समझ लीजिए रिश्तों में कुछ कसक रहा है.
स्पष्ट बात न करते हुए भाव-भंगिमाओं को क्रूर बनाना: जब छोटी-छोटी सी बातों पर नाराज़गी आम हो जाए, मगर उसे शब्दों में व्यक्त करने से दोनों ही बचने लगे या किसी एक के पहल करने पर दूसरा सीधे बचाव की मुद्रा में आ जाए और संवाद करके समस्या हल करने की बजाय कटाक्ष करना, मुंह बनाना, वस्तुओं की फेंका-फेंकी करना आदि से काम लेने लगे तो समझ लीजिए कि रिश्तों को अतिरिक्त संभाल की आवश्यकता है.
भावनाओं से खिलवाड़ करना: कभी-कभी रिश्ते इस मोड़ पर आ खड़े होते हैं, जहां एक साथी दूसरे की भावनाओं से खिलवाड़ करने में भी परहेज़ नहीं करता. बेवजह झूठ बोलना, बातों को छिपाना, दूसरों के सामने अपमानित करना या बेवजह की टीका-टिप्पणी को इस श्रेणी में रखा जा सकता है. इस संकेत को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि इसका अर्थ है रिश्तों की गर्माहट लुप्त हो रही है और उनमें कड़वाहट शामिल हो रही है.
अपने साथी को अपनी भावनाओं के लिए दोष देना: आपका दिन ऑफ़ि में बहुत ख़राब बीता है और अब आप चाहते हैं कि आपका साथी आपका मूड ठीक करने के लिए अपना काम छोड़कर आपके पास आ बैठे, आपकी बात माने या आपकी सेवा-टहल करें. ऐसा कभी-कभी हो तो ठीक भी है, मगर यदि ऐसा लगातार होता रहे तो थमकर सोचना होगा. आप अपने बिगड़े मूड को सुधारने के लिए अपने साथी पर आश्रित रहते हैं, पर संभव है आपके साथी को किसी दिन ऐसा महत्वपूर्ण काम हो जिसे पूरा करना आपके मूड को सुधारने से ज्यादा महत्वपूर्ण हो. ऐसे में आपकी प्रतिक्रिया कैसी होगी? क्या आप अपने साथी की स्थिति को समझते हुए स्वयं अपने चित्त को शांत करने का प्रयास करेंगे या अपनी असंतुलित भावनाओं का ठीकरा भी अपने साथी के सिर फोड़ेंगे? यदि आप दूसरा विकल्प बार-बार चुनते हैं तो रिश्तों के बारे में सोचना होगा.
ईर्ष्या या जलन महसूस करना: जब रिश्तों में विश्वास का स्थान ईर्ष्या या जलन लेने लगे, जब पुरुष साथी अपनी पत्नी के अन्य पुरुष मित्रों से बातचीत करने या घनिष्ठता बढ़ाने को लेकर या महिला साथी अपने पति की महिला मित्रों से निकटता को लेकर लगातार ईर्ष्या महसूस करने लगे, इन रिश्तों की स्निग्धता को लेकर सतत सवाल किए जाने लगें और वॉट्सऐप या फ़ेसबुक पर कॉमेंट्स जैसे छोटे-छोटे मुद्दों पर कलह होने लगे तो समझ लीजिए कि संभलने का समय आ गया है.
समस्या को ढंकने की कोशिश करना, तात्कालिक हल निकालना: यह स्थिति सबसे अधिक गंभीर होती है जब दोनों ही यह जानते हैं कि रिश्तों में कुछ समस्या है, मगर उस समस्या पर बातचीत करके उसका सुव्यवस्थित हल निकालने की बजाय तात्कालिक समाधान निकाले जाने लगते हैं, जैसे- बाहर खाना खाने चले जाना, गहने-कपड़ों या घर के लिए बड़ी वस्तुओं की ख़रीदारी करना, फ़िल्म या नाटक देखने चले जाना आदि. ऐसा करने से उस समय विवाद थम जाता है, मूड ठीक हो जाता है मगर समस्या वहीं की वहीं बनी रहती है और कुछ दिन बाद फिर सिर उठा लेती है. यदि आपके साथ भी ऐसा हो रहा हो तो रिश्तों पर गंभीरता से सोचने का समय आ गया है.
दरअसल, रिश्तों की ओवरहॉलिंग का अर्थ है रिश्तों की पड़ताल करना और इसके लिए ऊपर दिए गए सभी लक्षणों पर ग़ौर करना ज़रूरी है. कहां गड़बड़ हो रही है, क्या है जो परेशान कर रहा है, क्या है जो तनाव पैदा कर रहा है इसे पकड़ना ज़रूरी है. साथ ही इन मुद्दों को लेकर स्पष्टता से बातचीत की भी आवश्यकता होगी. स्वस्थ और ईमानदार संवाद कई परेशानियों को आप ही सुलझा देता है. अतः बातचीत करें, उन मुद्दों पर भी जो आपको अप्रिय लग रहे हो. कोशिश करें कि संवाद के समय सहजता और संतुलन बना रहे, धैर्य रखे और उग्र होने से बचे. अहं को किनारे करें और दूसरे को सम्मान देते हुए अपनी बात रखें. क्या अच्छा नहीं लग रहा है, क्या अपेक्षित है, क्या नहीं किया जाना चाहिए इस बारे में स्पष्ट विचार रखें.
इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आप संवाद करें, बहस नहीं. स्वस्थ और सार्थक संवाद कई मुश्क़िलों को हल कर देता है. आवश्यक लगे तो किसी क़रीबी मित्र की या बहुत आवश्यकता पड़ने पर किसी काउंसलर की मदद भी ली जा सकती है. और यदि इसके बाद भी काम न बने तो थोड़े दिन एक-दूसरे से दूर रहना भी अच्छा विकल्प हो सकता है. इससे दोनों को अपने बारे में और अपने रिश्तों के बारे में ठीक से सोचने का और सही निर्णय लेने का वक़्त मिलेगा.
फ़ोटो: फ्रीपिक