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तितलियां: पूनम अहमद की नई कहानी

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
September 13, 2021
in नई कहानियां, बुक क्लब
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तितलियां: पूनम अहमद की नई कहानी
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कुछ एहसास जो हमेशा हमारे मन में बसते हैं, लेकिन पूरे नहीं होते, उनकी चाहत ताउम्र बनी रहती है. और यदि कहीं उन चाहतों को थोड़ा भी आसरा मिल जाए तो मन कितना ख़ुश हो उठता है. मन को ख़ुश कर देनेवाली ऐसी ही तितलियों से मिलिए इस कहानी में.

आज मेरे बेटे जय का जन्मदिन है, शाम को उसके दोस्त आएंगें, मैंने डिनर में उसकी और उसके फ्रेंड्स की पसंद का खाना बनाया है, मुझे याद है कि ये बच्चे पिछली बार किस किस चीज़ को ख़ुशी और उत्साह से खा रहे थे. बस, ये सारे बच्चे अब तो जन्मदिन पर ही घर में इकट्ठे हो पाते हैं, पूरे साल तो सब अपने ऑफ़िस में व्यस्त रहते हैं. शाम को हमारा घर प्यारी-सी तितलियों जैसी रिया, नेहा और शुभी की प्यारी हंसी और बातों से गुलज़ार हो रहा होगा. पूरे साल इन तीनों को देखने के लिए मन तरसता रह जाता है. कई बार बीच-बीच में जय को कह भी देती हूं कि घर बुला लो अपने दोस्तों को! तो वह हंस देता है, कहता है,”मेरे दोस्तों में आप कुछ ज़्यादा इंटरेस्ट नहीं ले रहीं, मॉम?”

बात यह है कि घर में हैं, मेरे पति अनिल और दो बेटे जय और विजय. अब घर में है ये तीन पुरुष और मुझे चाहिए थी एक बेटी! जो हुई नहीं, हो गए दो बेटे ! घर में मैं उन चीज़ों को मिस करती हूं, जो मेरी फ्रेंड्स एन्जॉय करती हैं जैसे बेटियों के साथ शॉपिंग पर जाना, मेकअप की बातें करना, फ्रेंड्स की बातें करके हंसना, खिलखिलाना, बॉलीवुड की सेलेब्रिटीज़ पर गॉसिप करना, लेटेस्ट फ़ैशन की बातें करना! घर में पिता और बेटे का आपस में अकेले में कई चीजों पर मज़ाक बनाना, पीरियड के दिनों के दुःख-सुख सुनाना, मूड स्विंग्स की बातें करना! अब फ्रेंड्स के घर जाती हूं और उनकी बेटियों के साथ उनकी बॉन्डिंग देखती हूं तो दिल की कसक बढ़ जाती है. अभी पिछले ही हफ़्ते तो सुनंदा के घर जब गई थी. उसकी बेटी की मस्ती देख कर तो मुंह से ही निकल गया, ”यार, तुम लोग कितना एन्जॉय करती हो!”

उसकी बेटी अंजलि ने आंख मारते हुए कहा,”हां, आंटी, जब पापा और भैया घर से बाहर होते हैं, तब ज़्यादा एन्जॉय करते हैं.”
”तभी तो मैं कहती हूं कि काश एक बेटी हो जाती तो मैं भी घर में थोड़ी मस्ती कर लेती. तीन-तीन पुरुष हैं घर में! सोचो! एकदम मरदाना माहौल बना कर रखते हैं. कोई शॉपिंग पर जाना नहीं चाहता, ज़बरदस्ती पकड़ कर ले जाती हूं तो ट्रायल रूम के बाहर ऐसे खड़े होते हैं जैसे कोई सज़ा मिली हो! और जब कुछ पहन कर दिखाती हूं तो नज़रें अपने फ़ोन से उठाकर हर बार एक ही जवाब पकड़ा देते हैं,‘हां, अच्छा है, ले लो!’ कसम से इतना ग़ुस्सा आता है, समझ जाती हूं कि जल्दी से हर चीज़ ओके यही सोच कर करते हैं कि शॉपिंग जल्दी ख़त्म हो और ये लोग घर जाकर मैच या टीवी पर कुछ और देखें!”

सुनंदा और अंजलि इस बात पर ज़ोर से हंसे, सुनंदा ने मुझे छेड़ा,”यार, तू तो बिल्कुल भरी बैठी है.”

मैंने एक ठंडी सांस ली और कहा,”बड़ा मन था कि एक बेटी हो, जय विजय दोनों बहुत अच्छे बेटे हैं, ख़ूब प्यार करते हैं मुझसे! पर यार, तुम दोनों कितनी मस्ती कर लेते हो, ऐसे ही मुझे भी करनी थी.”

मैं अपनी दोस्त के आगे हमेशा की तरह अपनी भड़ास निकाल कर वापस आ गई थी. देर तक मन अंजलि की मस्ती में ही डूबा रहा था.

अभी यह सब सोच ही रही थी कि इतने में जय का फ़ोन आ गया,”मॉम, शाम को रिया, नेहा और शुभी सीधे ऑफ़िस से ही हमारे घर ही आएंगी. इन तीनों को आपके हाथ की पाव भाजी बहुत अच्छी लगती है, बस वही बना लेना आप, बाक़ी चीज़ें मैं ऑर्डर कर दूंगा.’’
”अरे, नहीं बेटा. मैं सब बना रही हूं. कुछ भी ऑर्डर करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.’’
”लव यू मॉम!” चहकते हुए जय ने फ़ोन रख दिया. उससे ज़्यादा तो मेरा तन-मन चहक रहा था. तीनों आ रही हैं, बहुत प्यारी बच्चियां हैं.’’
मैं काम में लग गई थी, पर मन की तो अपनी एक मर्ज़ी होती है, वह तो वही सोचता है जो उसे सोचना होता है. मन तीनों बच्चियों के बारे में सोच रहा था… कैसे प्यारी-सी तैयार रहती हैं. कितना शौक़ है तीनों को खाने-पीने का. फिर कितनी तारीफ़ करती हैं हर चीज़ की.

काम करते-करते मुझे यह बात भी याद आ गई. मैंने जब जब अपनी मां और सासू मां को प्रेग्नेंसी के समय यह कहा कि मुझे बेटी चाहिए तो कैसे घुड़का था दोनों ने. कहा था कि शुभ शुभ बोलो! वो भी तब, जबकि दोनों ही बेटियों की मां थीं. किसी और को क्या कहें, जब एक मां ही दूसरी मां की बात न समझे? एक नारी ही दूसरी नारी की इस इच्छा को अशुभ बोले!

शाम सात बजे तक सबके आने से पहले ही मैं सब कुछ तैयार कर चुकी थी. सबसे पहले तितलियों-सी चहकती तीनों लड़कियां ही आईं. मुझे हेलो, आंटी, कैसी हो? बोलकर फटाफट हाथ धोने भागीं. तीनों बचपन से आती-जाती हैं तो कोई औपचारिकता के चक्कर में नहीं पड़तीं. आम बातचीत जब तक हुई, सब आ गए. रिया ने कहा,”जय, तू फटाफट चेंज कर. आंटी, आप भी रेडी हो जाओ.’’
मैंने झेंपते हुए कहा,”मैं तो रेडी ही हूं.’’
”क्या? ये आप रेडी हैं? ऐसे तो आप रोज़ ही तैयार होती होंगी. आइए, मैं आपको तैयार करती हूं. अच्छा आंटी, आपके पास ब्लैक कुर्ता है?”
”हां, है.’’
”तो फिर वही पहन लीजिए, जय भी ब्लैक शर्ट पहन रहा है, आप भी ब्लैक पहन लीजिए. फ़ोटोज़ थोड़ी कलर कॉर्डिनेटेड लगेंगी इंस्टाग्राम पर पोस्ट करने में!”
इतने में अनिल ने थोड़ा शरमाते हुए बोले,’मैं भी ब्लैक शर्ट पहन लूं क्या फिर?”
हम सब हंस पड़े और तीनों लड़कियां चहक पड़ीं,”हां, अंकल! मज़ा आ जाएगा आज फ़ोटोज़ में.’’
सब मिलकर मुझे तैयार करने लगीं, एक ने कहा,”ओह,आंटी, आपके पास तो ज़्यादा सामान भी नहीं है मेकअप का!”
”हां, मुझे ख़ास जानकारी ही नहीं है आजकल के मेकअप की! लेने जाती भी हूं तो लिपस्टिक और काजल लेकर चली आती हूं.’’
तो दूसरी बोली,”रुकिए आंटी, मेरे बैग में सबकुछ है.’’
फिर तो मेरे मुंह पर क्या-क्या लगाया गया कि मुझे ही नहीं पता. मेरा हेयरस्टाइल बदल दिया गया.
अनिल, जय और विजय तो मुझे देख कर हैरान रह गए. विजय ने मुझे चिढ़ाया,”मां, आप ऐसी भी लग सकती हैं? एकदम किसी मॉडल जैसी!”

मैं मुस्कुरा कर रह गई. मुझे तैयार करने के बाद तीनों ने मुझे हर तरफ़ से देखा और तसल्ली होने के बाद ही ख़ुद मुंह-हाथ धोकर तैयार होने लगीं. मैं सब छोड़कर उनके पास बैठ गई थी. उन्हें सजते-संवरते देखकर जैसे मेरे मन की कोई प्यास-सी बुझ रही थी. ओह… काश! एक तितली-सी कोई बेटी मेरे आंगन में भी अपनी हंसी के रंग बिखेरती. काश! बेटियों से चिढ़नेवाले लोग उनकी रौनक मेरी नज़र से देखें, महसूस करें!
मुझे अचानक याद आ गया कि मेरी बड़ी बहन के दो बेटे ही हैं. इस बात पर उनका सर हमेशा तना ही रहा. गर्व से कहतीं,‘अच्छा हुआ, कोई लड़की नहीं हुई, कौन उनकी चौकसी करता!’

जब मेरे जय विजय हुए तो मुझसे कहा था उन्होंन,‘ये अच्छा ही हुआ! बेटियों का चक्कर ही नहीं अब! जंजाल ख़त्म…’’ मैं उन्हें आज तक यह बता ही नहीं पाई कि उनकी इस बात से मेरे मन में उनके प्रति प्यार और सम्मान सब ख़त्म-सा हो गया.
मेरे इन ख़्यालों को झटका देते हुए शुभी ने पूछा,”आंटी, आप कौन-से पार्लर जा रही हैं आजकल?”
”यहीं सोसाइटी के.’’
”आंटी, आप सामने वाले पार्लर को भी ट्राय कर सकती हैं. मैंने मेम्बरशिप ली है, मेरा नाम बता कर डिस्काउंट ले लेना. और इस बार पील वाला फ़ेशियल करवाना. उससे वाक़ई स्किन लंबे समय तक ग्लो करेगी.’’
अब किससे कहूं कि यही बातें तो मैं मिस करती हूं अपनी लाइफ़ में. फ्रेंड्स हैं मेरी पर कोई बेटी होती घर में तो अलग ही माहौल रहता न! अनिल, जय और विजय को कभी कहती हूं कि पार्लर जाना है तो एक सुर में बोलते हैं,‘अरे, अच्छी तो लग रही हो. तुम्हें क्या ज़रूरत है पार्लर जाने की?’’अब इन तीनों पुरुषों को स्किन केयर के बारे में कौन बार-बार समझाए, जिन्हें घर में रखी सारी क्रीम एक जैसी लगती हैं.

जय, विजय और अनिल भी तैयार होकर आ गए. फिर केक कटा, खाना-पीना हुआ, तीनों लड़कियों ने इतनी फ़ोटोज़ लीं मेरी, जितनी कि पूरे साल में भी नहीं खींची गई होंगी. पता नहीं कैसे-कैसे पोज़ बनवाए. आज जय का दिन था तो उसे तो पोज़ बनवा बनवा कर नचा डाला तीनों ने. अनिल और मेरे बेटे तो ऐसी शक्ल बना कर मेरी फ़ोटो लेते हैं कि आती हुई स्माइल भी रुक जाती है. दोबारा लेने के लिए कहती हूं तो कहते हैं,‘अरे, ठीक ही तो ली है.’ बड़ी मुश्क़िल से दोबारा खींचते हैं, तीसरी बार का तो ख़ैर कोई सवाल ही नहीं उठता. इन लोगों को तो ख़ुद की भी फ़ोटो खिचवाने का कोई शौक़ नहीं है. कई बार तो मेरे पास व्हाट्सएप्प की डीपी बदलने के लिए भी कोई फ़ोटो नहीं मिलती.

ठीक कर रही हैं तीनों, इस टाइम जो सबको नचा डाला है. अनिल भी ख़ुश हैं, अपने कई फ़ोटो खिंचवा चुके हैं. हमारी फ़ोटोज़ हो गईं तो शुभी ने कहा,’’लो, आंटी… चलो अब आप हमारी फ़ोटो लेना.’’

तीनों ने ख़ूब प्यारी-प्यारी शरारतें करते हुए फ़ोटोज़ खिंचवाईं,‘आंटी, एक यहां. आंटी, एक यहां. आंटी, एक ऐसे. आंटी, एक वैसे. मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि क्या बताऊं? ऐसा लग रहा था कि कैसे इन पलों को अपने मन में संजो लूं. ये तीनों तो अभी घर चली ही जाएंगी और मैं कुछ दिन इन्हीं पलों को याद करके ख़ुश होती रहूंगी. फिर ऐसे ही पलों का इंतज़ार शुरू हो जाएगा.
मुझे आज अपनी एक पुरानी दोस्त की बात याद आ रही थी, उसकी दो बेटियां थीं और वह बहुत ख़ुश रहती थी. जब कोई उसे बेटे के न होने पर अफ़सोस दिखाता तो उसका जवाब होता था,‘अरे, जिनकी बेटियां नहीं हैं, वे जान ही नहीं सकते कि उन्हें लाइफ़ में क्या नहीं मिला, किस ख़ुशी को मिस कर दिया उन्होंने!”

मैंने उजागर भी उससे कहा है कई बार और हर बार मन में कहती हूं,‘‘दोस्त! तुम बिल्कुल ठीक कहती हो.’’

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