जहां कुछ यादें बचपन की ओर लौटा ले जाती हैं, वहीं कुछ बचपन की यादें हमेशा साथ रहती हैं और कुछ यादों को हम भूल जाते हैं, पर बचपन की वे यादें हमें शिद्दत से याद करती हैं. टोपलाल इन सभी यादों का छोटा-छोटा हिस्सा रहा, पर क्या वो किसी के जीवन में, बचपन कोई मीठी-सी याद बन पाया? ज़रूर पढ़ें बचपन की ओर लौटा ले जाती ये कहानी.
गर्मी की छुट्टियां यानि कि ननिहाल. ननिहाल शब्द खुद में ही इतना प्यारा है कि उसके आगे दुनिया की सारी उपमाएं अलंकार फीके लगते हैं.
अच्छा, क्या हो जब ननिहाल में नानी के साथ साथ कोई ऐसा भी हो, जो पूरे साल आपका इंतज़ार करता हो?
हां हां मैं ये अपनी ही बात कर रहा हूं. गर्मी की छुट्टियां शुरू होने के बारे में पहाड़ियों को तब पता चलता है, जब पहाड़ से दूर गए अपने लोग फिर पहाड़ों पर वापस लौटने लगते हैं. ऐसी ही एक जगह है दिल्ली और वहां से हर साल आने वाली नानी की नातिन रूमी.
रूमी के बारे में बात शुरू करते ही मैं थोड़ा और गुलाबी-सा हो जाता हूं, ऐसा मुझे तबसे लगता है जब नानी ने पहली बार मुझे और रूमी को मिलवाया था. रूमी तब बस चार पांच साल की रही होगी, जब पहली बार उसने मुझे देखा था. मैं तो उसे देखते ही इतना मचल गया था कि पहले मैंने रूमी के सर को सहलाया और फिर कसकर गले से लिपट गया . पर ये क्या छोटी रूमी ने मुझे अपने से झटककर अलग कर दिया जैसे मैं कोई गले का फंदा हूं. वो तो नानी मुझसे इतना प्यार करती थीं कि तुरंत रूमी को डांटते हुए मुझे उठाने खड़ी हुई.
मैं भी ढीठ था, वहां से तब तक नही हिला जब तक रूमी ने आकर मुझे ख़ुद से उठाया नहीं. तो पहली मुलाक़ात कुल मिलाकर बहुत ख़ास नहीं रही थी.
पर कुछ कहानियां वक़्त लेती हैं. ऐसे ही मेरी और रूमी की दोस्ती धीरे-धीरे काली भट्ट की दाल की तरह धीमी आंच पर पकने लगी.
‘नानी, आपने टोपलाल को देखा कहीं?’ सारे खिलौनों को एक साइड रखकर उसने मेरे बारे में पूछा था.
मां और नानी गप्प में व्यस्त थीं, कोई जवाब नही दिया.
‘नानी, मुझे टोपलाल कहीं नहीं दिख रहा. मुझे मॉल रोड जाना है टोपलाल के बिना नहीं जाऊंगी,’’ पैर पटकती रूमी बोली, तब जाकर नानी का ध्यान उस पर गया. उसकी ये बात सुनकर मैं बाहर धूप में खड़ा खड़ा खूब मुस्कुराया.
ये रहा तेरा टोपलाल, अब ख़ुश? नानी हाथ से बाहर धूप मैं इशारा करते हुए बोली.
मुझे छोटी रूमी का साथ इतना प्यारा लगता पर ये कभी कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती. मुझे पता था कि वो धीरे-धीरे यह समझेगी. शाम को ठंडी हवा में वो प्यार से मुझे कभी अपने सीने से चिपका लेती मफ़लर की तरह तो कभी मोमो खाने के बाद मुझे पकड़कर अपना चटनी लगा मुंह पोंछ देती.
‘रूमी के लिए सब माफ़,’ कहता मैं अक्सर मुस्कुरा देता.
मैं और नानी हर साल छुट्टियों का इंतज़ार करते, पर फिर ये इंतज़ार लंबा होता गया. बचपन वाली रूमी अब बड़ी हो रही थी. कभी स्कूल का कोई प्रोजेक्ट, कभी कोई एग्ज़ाम, कभी देश विदेश की यात्राओं और नौकरी ने रूमी का अपनी जगह वापस आना धीरे-धीरे बंद ही करा दिया.
मैं अक्सर सोचा करता कि कैसे लोग अपनी जगह को छोड़कर हमेशा के लिए कहीं दूर अपना घर तलाश लेते हैं. अब पहाड़ों पर लोग आते भी हैं तो बस फ़ोटो खींचने या कुछ रिकॉर्डिंग करने, जिसमें वो कुछ लाइक करने की बात करते हैं.
लाइक से याद आया कि रूमी से मिले मुझे बहुत बरस बीत गए. छुट्टियां अब ऐसे ही बीत जाती हैं छोटी रूमी के इंतज़ार में.
पिछले इतवार रूमी की मां का फ़ोन आया था नानी को. रूमी की शादी पक्की कर दी है. मैंने नानी के पास कान लगाकर ये बात सुनी तो जैसे मेरे जीवन की सिलाई उधड़ने सी लगी. नानी क्या वो बचपन वाली रूमी इतनी बड़ी हो चुकी है? और क्या वो अपने फ़ेवरेट टोपलाल को, अपने बचपन को अब बिल्कुल भूल चुकी है? मन हुआ की नानी से पूछ डालूं पर नानी की छींक से भ्रम टूट गया कि ये साथ शायद इतना ही था. नानी, शादी में जाती तो शायद मैं भी अपनी रूमी को दुल्हन बने देख पाता. पर ऐसा भी कहां हुआ? नानी की तबियत जो अब ख़राब रहती थी. बस रातभर खांसती रहती. कभी-कभी तो कफ़ ही मेरे ऊपर गिर जाता. पर मैं बुरा नही मानता. बेचारी अब बहुत बूढ़ी हो रही थी.
रूमी की शादी हुए दो हफ़्ते हो गए आज नानी? मैने नानी से पूछना चाहा तो देखा कि नानी का सिर एक ओर लुढ़का पड़ा था. मैंने कम से कम दस बार नानी नानी कहा मगर नानी ने कुछ उत्तर नही दिया और आज पहली बार मैंने ख़ुद को इतना निर्जीव महसूस किया. सुबह तक काम वाली ने सबको रो-रो कर बता ही दिया कि नानी नहीं रहीं तो पड़ोसियों ने नानी की इकलौती संतान यानी रूमी की मां को टेलीफ़ोन कर दिया और वो लोग रात तक यहां पहुंच भी जाएंगे.
मुझे नानी के जाने का जितना दुख था, उससे तिगुनी उम्मीद थी या कहूं कि ख़ुशी थी रूमी के आने की. सोच रहा था कि नानी को अगर मेरे मन की बात पता चलती तो अभी सुई पकड़कर मेरी सारी बखिया उधेड़ देतीं, पर नानी तो चिर निद्रा में सोई थीं. और मैं रूमी का इंतज़ार करते-करते नानी की टेबल के पास पड़ा था.
शाम साढ़े छह बजे कार का हॉर्न बजा तो देखा एक अप्सरा-सी लड़की नारंगी-पीले रंग की साड़ी में, लाल चूड़े मैं अपनी मां के साथ रोते हुए घर में दाख़िल हुई और सीधा नानी के हाथ पकड़कर चूमने लगी.
इस दुखी द्रवित माहौल में भी मैं उसे बस निहारने लगा कि रूमी मैं यहां हूं. वो इतनी सुंदर लग रही थी कि जैसे पिक्चर में दिखाते हैं न कि जब आप किसी हिरोइन को देखते हैं तो वायलिन बजने लगता है, फूल झरने लगते हैं बस ऐसा ही कुछ.
रूमी रोते-रोते और सफ़र की वजह से भी बहुत थक गई थी, सो उसे पकड़कर पड़ोस वाली आंटी ने टेबल के पास बैठा दिया. बिल्कुल मेरे पास. उसे पानी पिलाया और उसके हाथ में मुझे थमा दिया. रूमी ने मुझे देखते ही अपने आंसू पोंछे और अपने गले से लगा लिया. ये समय कितने ही लंबे अरसे बाद आया था जब हम दोनों इतने पास थे.
अगले दिन सुबह नानी की अंत्येष्टि कर रूमी के घरवाले उसे वापस भेजने को तैयार थे. वो हमेशा के लिए देश छोड़ कर कनाडा सेटल हो रही थी शादी के बाद.
मैं कहना चाहता था कि रूमी मत जाओ इतने सालों बाद मिली हो कुछ दिन और ठहर जाओ. पर रूमी को फ़ोन पर उसके दूल्हे से बात करते सुनता और जितनी बार ‘मिस यू टू’ सुनता. उतनी ही बार मेरा मन उखड़ जाता.
सुबह के आठ बजे हैं. रूमी की गाड़ी आ चुकी है. मम्मी-पापा कुछ दिन यहीं रुकेंगे और मैं कहां, ये तो मुझे भी नही पता.
‘रूमी समान रख लिया न? तुम चलो जाकर पैकिंग भी करनी है तुम्हें.’ रूमी की मां हिदायत से रही थीं.
रूमी जा रही है, सबसे अलविदा लेकर.
मैं यहीं हूं रूमी, एक बार मुझसे तो मिल लो, एक आख़िरी बार.
रूमी वापस पलटी, हां-हां रूमी ने मेरी आवाज़ सुनी.
‘मम्मा, एक बहुत ज़रूरी चीज छूट रही थी. मेरा टोपलाल देखा आपने? नानी की टेबल पर रखा है शायद…‘
आई गॉट यू .
अरे इस बड़ी रूमी में अभी तक वो छोटी, बचपन वाली रूमी ज़िंदा है, उसे मैं अच्छी तरह याद हूं, उसका फ़ेवरेट टोपलाल.
‘कनाडा में भी तो बहुत ठंड होती है ना!’ ये कहते हुए रूमी ने अपने सिर पर मुझे अच्छी तरह से बांध लिया. मैंने उसके माथे को एक नहीं न जाने कितनी बार चूम लिया, क्योंकि ऐसा लगता है कि अब मैं हमेशा उसके साथ रहनेवाला हूं रूमी का टोपलाल बनकर. रूमी का बचपन बनकर.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट