ऐसे मसले, जिनमें न्याय कर पाना कठिन है, ये जज दूध का दूध और पानी का पानी कर देते थे. राजा तक भी उनकी ख्याति पहुंची. राजा ने उन्हें परखने का सोचा. राजा की परख की कसौटी पर कितने खरे उतरे ये जज? यह छोटी-सी कहानी पढ़िए और जान लीजिए…
बहुत पहले की बात है. अफ्रीका में एक देश है अल्जीरिया. बाउकास वहां के राजा थे. उनके राज्य में एक समझदार जज थे, जो झट से दूध-का-दूध और पानी-का-पानी कर देते. कोई भी मुजरिम उनकी पैनी आंखों से नहीं बच पाता. उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी.
एक दिन राजा ने भेष बदल कर ख़ुद जज की परीक्षा लेने की सोची. वो घोड़े पर सवार होकर जज के शहर की ओर चले. शहर के मुख्य दरवाज़े पर उन्हें एक अपंग भिखारी दिखा. राजा ने उसे कुछ पैसे दिए.
भिखारी ने राजा से विनती की,’‘मैं चल नहीं सकता, कृपा मुझे अगले चौक तक छोड़ दें.’‘
राजा ने भिखारी को घोड़े पर बैठाया. शहर के चौक पर पहुंचने के बाद राजा ने भिखारी से उतरने को कहा.
‘‘तुम उतरो! यह घोड़ा तो मेरा है!’‘ भिखारी ने दावा किया. देखते-देखते वहां पर लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई.
‘‘घोड़ा किसका है इसका निर्णय जज साहब ही करेंगे,’‘ लोगों ने कहा.
राजा और भिखारी जज के पास गए. कचहरी में काफ़ी भीड़ जमा थी. जज, लोगों को बारी-बारी से बुला रहे थे.
सबसे पहले जज ने एक लेखक और किसान को बुलाया. उनके साथ एक महिला भी थी.
लेखक और किसान दोनों उस महिला के अपनी पत्नी होने का दावा कर रहे थे.
जज ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनकर कहा, ‘‘महिला को आज यहीं छोड़ दो और कल आओ.’‘
उसके बाद जज के सामने एक कसाई और तेली की पेशी हुई. कसाई के कपड़ों पर खून के छींटे पड़े थे और तेली के हाथ तेल से सने थे. कसाई के हाथ में पैसों की एक थैली थी. दोनों पक्ष उस थैली को अपना बता रहे थे.
जज ने कुछ देर सोच कर कहा, ‘‘पैसों की थैली यहीं छोड़ दो और कल आओ.’‘
अंत में जज ने राजा और भिखारी की दलीलें सुनीं. दोनों पक्ष घोड़े पर अपना-अपना दावा पेश कर रहे थे. जज ने कुछ देर सोच कर कहा, ‘‘घोड़े को यहीं छोड़ दो और कल आओ.’‘
जज के निर्णय को सुनने के लिए अगले दिन कचहरी में लोगों का बड़ा हुजूम जमा हुआ.
सबसे पहले लेखक और किसान की बारी आई.
‘‘यह महिला आपकी पत्नी हैं. आप उन्हें ले जा सकते हैं,’‘ जज ने लेखक से कहा. साथ में उन्होंने किसान को पचास कोड़े लगाने का हुक्म भी दिया.
उसके बाद कसाई और तेली की बारी आई.
जज ने कसाई को बुलाकर कहा, ‘‘लो, यह पैसों की थैली तुम्हारी है.’‘ साथ में उन्होंने तेली को पचास कोड़ों की सजा सुनाई.
अंत में जज ने राजा और किसान को बुलाया.
‘‘क्या तुम बीस घोड़ों में से अपने घोड़े को पहचान पाओगे,’‘ उन्होंने राजा और भिखारी दोनों से पूछा. दोनों ने ‘‘हां’‘ में उत्तर दिया. एक-एक करके जज दोनों को अस्तबल में लेकर गए. दोनों ने घोड़े को सही-सही पहचाना.
कुछ देर गहरे सोच-विचार के बाद जज ने राजा का बुलाकर कहा, ‘‘यह घोड़ा आपका है आप इसे ले जा सकते हैं.’‘ साथ में उन्होंने भिखारी को पचास कोड़ों की सजा भी सुनाई.
घर जाते वक़्त राजा भी जज के पीछे-पीछे चलने लगे. राजा को देखकर जज ने पूछा, ‘‘क्या आप मेरे निर्णय से असंतुष्ट हैं?’‘
‘‘जनाब मैं बिल्कुल संतुष्ट हूं, पर यह जानना चाहता हूं कि आप इन निर्णयों पर कैसे पहुंचे?’‘
‘‘काफ़ी आसान था,’‘ जज साहब ने मुस्कुराते हुए बोले. ‘‘सुबह-सुबह मैंने महिला से दवात में स्याही भरने को कहा. महिला ने इस काम को बड़े करीने से अंजाम दिया. इससे मुझे लगा कि वो लेखक की पत्नी ही होंगी. जहां तक पैसों की थैली की बात है मैंने सोते वक्त सिक्कों को एक पानी के बर्तन में डाल दिया. सुबह देखा तो पानी में कोई तेल नहीं दिखा. अगर तेली के पैसे होते तो पानी पर ज़रूर कुछ तेल तैरता. इससे लगा कि पैसे कसाई के होंगे.’‘
‘‘घोड़े का मामला ज़रूर कुछ पेचीदा था. मैं आप दोनों को अस्तबल में घोड़े की पहचान करने नहीं ले गया था. दरअसल, मैं देखना चाहता था कि घोड़ा आपको पहचानता है या नहीं. जब आप घोड़े के पास गए तो घोड़े ने अपना सिर हिलाया और गर्दन आपकी ओर घुमाई. पर भिखारी को देखकर घोड़े ने अपनी एक टांग ऊपर उठाई. इससे मुझे स्पष्ट हुआ कि आप ही घोड़े के सही मालिक होंगे.’‘
फिर राजा ने जज से कहा, ‘‘मैं राजा बाउकौस हूं. मैंने आपके इंसाफ़ की बहुत तारीफ़ सुनी थी. मैं उसी की पुष्टि के लिए आया था. आप वाक़ई एक क़ाबिल न्यायाधीश हैं. आप मुझसे जो पुरस्कार मांगेंगे वो आपको मिलेगा.’‘
‘‘मुझे कोई ईनाम नहीं चाहिए,’‘ जज ने नम्रतापूर्वक कहा, ‘‘राजा की प्रशंसा ही मेरे लिए सबसे बड़ा तोहफ़ा है.’’
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट