हर रचनाकार, कवि या कवयित्री अपनी कविताओं में अपने समय की परिस्थितियों को ज़रूर लिखता है. इस कविता में भी आपको आज के समय का प्रतिबिंब ज़रूर दिखाई देगा.
ख़बरदार जो की कोई भी अक़्ल भरी बात
ये बेअक़्लों के राग गर्दभ गाने का दौर है
जो बेख़ौफ़ घूम रहे हैं वो चाटुकार हैं
दिलेरों को कैद किए जाने का दौर है
जाहिल है तख़्तनशीं और संग दिल भी है
यक़ीनन ये आज़ादी छिन जाने का दौर है
बेसिर-पैर की बातों पे बहेंगी रुपयों की नदियां
ये नंगे-भूखों की खाल खिंचवाने का दौर है
उसके पीछे चाहे आवाम मरे उनकी बला से
चिलमन के आगे नक़्श चमकाने का दौर है
चमक ऐसी हो कि आंखें चौंधियाई ही रहें
ये तो चार-सू बेवकूफ़ बनाने का दौर है
ऊपर से चले वार तो गर्दन ही ले उड़े
नीचे तो गर्त में गिर जाने का दौर है
हासिल महज़ शून्य है इस भ्रम जाल का
ये केवल रंगीन ख़्वाब दिखाने का दौर है
नए नए का राग क्यों आलाप रहे हैं
पुराने पे नया मुलम्मा चढ़ाने का दौर है
इक अच्छा सा ढूंढ़िए बादशाह के लिए भी
ख़बर है ये नया नाम रखवाने का दौर है
तुम्हें यक़ीं नहीं तो मैं क्यूं छोड़ूं कोशिशें
ये कुछेक के नींव बन जाने का दौर है
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट