आपका बच्चा प्री-टीन या फिर टीनएज में है और आपकी समस्या यह है कि वह ज़्यादा बात नहीं करता, खुलकर अपने बारे में नहीं बताता या फिर आपके सवालों के जवाब भी बचते हुए देता है तो आप अकेले ही ऐसे पैरेंट्स नहीं हैं. कई बच्चे जो अमूमन ज़्यादा बोलते भी हैं, उनमें भी इस उम्र में ये बदलाव दिखाई देते हैं. यहां हम बता रहे हैं कि आप उनसे किस तरह बात करें, ताकि वे आपसे खुलकर बात कह सकें.
हमें पता है कि बतौर पैरेंट्स आप इन दिनों कैसा महसूस कर रहे हैं! आपका वो बच्चा, जो बचपन में सवालों की झड़ी लगाए रहता था और आप जवाब देते-देते थक जाया करते/करती थे, वही बच्चा अब आपसे बहुत कम या बिल्कुल काम की ही बातें करता है. तो हम तो यही कहेंगे कि अपने बच्चे की किशोर अवस्था से ठीक पहले वाली या फिर शायद किशोर अवस्था के इस दौर में आपका स्वागत है!
इस उम्र के बच्चों को हैंडल करने का तरीक़ा थोड़ा अलग होता है, लेकिन अच्छी बात यह है कि कुछ बातों को ध्यान में रखकर आप पूरी तरह जान सकते हैं कि उनके मन में क्या चल रहा हैं. हां, लेकिन इसके लिए आपको बहुत धीरज की ज़रूरत होगी. जितना आप सोच रहे हैं, उससे लगभग 500 गुना ज़्यादा धीरज ही आपके काम आएगा.
ख़यालों में डूबा रहता/रहती है
इस उम्र के बच्चों को ऐसी बहुत सारी समस्याएं घेरे रहती हैं, जो शायद हमें-आपको बतौर पैरेंट्स समस्याएं लगें ही नहीं. अक्सर वे अपने दोस्तों के बीच ख़ुद को कमतर या कमज़ोर नहीं साबित होने देना चाहते. या फिर हो सकता है कि उनके मन में किसी लड़की या लड़के के लिए कोई सॉफ़्ट कॉर्नर पैदा हो रहा हो. वह इसी बारे में सोच रहा/रही हो. अब इस बारे में वह किससे बात करे? यह उसे अजीब लग रहा होगा और इस उम्र के बच्चे बहुत संवेदनशील भी होते हैं. तो आपको उससे बात निकलवाने के लिए तरक़ीब निकालनी होगी.
आप चाहें तो सीधा अप्रोच रख सकते/सकती हैं और यदि यह काम न करे तो खेल-खेल में भी यह किया जा सकता है. आप सीधे ही पूछ सकते/सकती हैं कि तुम अपसेट लग रहे/रही हो. क्या कारण है? क्या मेरी कोई मदद चाहिए? यदि वो फिर भी बचने की कोशिश करें तो बात को वहीं छोड़ दें. यह कहते हुए कि यदि उन्हें आपकी ज़रूरत है तो आप हर वक़्त उनके लिए मौजूद हैं.
कई बार जब सीधे पूछना कारगर नहीं रहता तो खेल-खेल में ऐसा किया जा सकता है, जैसे- आप अपने बचपन का ज़िक्र करते हुए उन्हें बता सकते/सकती हैं कि जब आप उनकी क्लास में थे तो आपको क्या पसंद था, क्या नहीं? इस बारे में उनसे भी पूछें. या फिर ये पूछें कि यदि आपकी कोई तीन विशेज़ पूरी होने वाली हों तो आप क्या मांगोगे? इस तरह के सवाल-जवाब खेल-खेल में ही पैरेंट्स और बच्चों के बीच संवाद स्थापित कर देते हैं.
पहले ही कम बोलता/बोलती थी, अब तो और कम हो गया
जो बच्चे हमेशा से ही कम बोलते हैं, कई बार वो इस उम्र में आकर और कम बोलने लगते हैं. यदि आप चाहते/चाहती हैं कि वे आपसे बातचीत करें तो उनकी हॉबीज़ ढूंढ़िए और ख़ुद भी उनके साथ उन हॉबीज़ को एंजॉय करना शुरू कीजिए. इससे बच्चा आपके साथ ज़्यादा कनेक्टेड फ़ील करेगा और फिर कई सारी बातें भी होंगी. उन बातों के बीच हौले-से एक सवाल आपकी चिंता से जुड़ा भी पूछ लें. यदि बच्चा जवाब दे तो ठीक, नहीं दे तो उसपर दबाव न बनाएं. बात का विषय बदल दें.
याद रखें कि जहां लड़कियां आमने-सामने बैठकर बात करना पसंद करती हैं, जैसे- हो सकता है कि जब आप टीवी देख रही हों तो आपकी बेटी आपके पास आकर आपसे बात करना चाहे. तो आप तुरंत टीवी से ध्यान खींच लीजिए, क्योंकि इस उम्र में ऐसे मौक़े कम ही आते हैं, जब बच्चे ख़ुद बात की पहल करें. वहीं लड़के खेलते-कूदते या फिर आपके आजू-बाजू बैठकर बात करते हैं, जैसे-कार में आते-जाते समय. यदि आपके बच्चे ने कार में कोई टॉपिक उठाया है तो उसकी बात ज़रूर सुनें.
बेटा हो या बेटी दोनों को बात पहले शुरू करने का मौक़ा दें. जब वे ऐसा करें तो आप उन्हें ‘जज’ बिल्कुल न करें, उन्हें बोलने दें और आप सुनते रहें. उनके एहसास को समझें और शांत रहें या फिर शांत बने रहें, न कि उन्हें पुराने अभिभावकों की तरह लेक्चर देना शुरू कर दें, क्योंकि वो दिन अब लद चुके हैं! यदि आपने उन्हें डांटना शुरू किया तो आपकी सारी मेहनत धरी की धरी रह जाएगी.
ज़्यादा पूछो तो झूठ बोल देता/देती है
हो सकता है कि वो झूठ बोल देता/देती हो, पर ये बताइए कि इस दुनिया में कौन ऐसा है, जिसने कभी झूठ न बोला हो? क्या आपने झूठ कभी नहीं बोला? और वह झूठ बोल भी रहा/रही हो तो इसका ये अर्थ नहीं है कि वह अपराधी बनने जा रहा/रही है या फिर उसमें नैतिकता की कमी है. हम सभी तो अक्सर तथ्यों को अपने हिसाब से व्यवस्थित करके अपना पक्ष रखते हैं, है ना?
कहने का मतलब सिर्फ़ यह है कि उसके झूठ बोलने (यदि वह बोलता है तो!) के पीछे के कारण को समझिए. इस उम्र के बच्चे कई बार केवल वही बातें बताते हैं, जिनके बारे में उन्हें लगता है कि काश सच्चाई ऐसी होती या फिर शायद वे सच बताने पर आपकी होने वाली प्रतिक्रिया से डर रहे हों.
हम ये कहना चाहते हैं कि उनसे इसके बारे में ज़रूर बात कीजिए, लेकिन सही समय पर, सही सोच के साथ और बिल्कुल सीधी अप्रोच रखते हुए. इस बारे में जब भी पूछें, सवाल सीधे ही पूछना चाहिए, लेकिन उसका समय स्कूल से आने के तुरंत बाद का न हो या फिर रात को सोने से पहले तो बिल्कुल न हो. बच्चा स्कूल से आने के बाद थका हुआ होता है और सोन जाते समय उसे निश्चिंत होना चाहिए, ताकि वह अच्छी नींद ले सके.
तो फिर आपको यह कब पूछना चाहिए? रात के डिनर से ठीक पहले, जब आप मिलकर टेबल पर खाना परोसने की तैयारी कर रहे हों या उसके साथ पार्क में टहलते जाते समय या फिर शनिवार या रविवार की सुबह (जब आपकी और उसकी भी छुट्टी हो) ब्रेकफ़ास्ट के समय.
सबसे आख़िरी और सबसे ज़्यादा काम की बात ये है कि सीधा सवाल पूछने पर, जब बच्चा आपको सही जवाब दे तो उसे सुनकर अपने धीरज की सीमा को 500 गुना तक बढ़ाए रखें. यह अच्छी तरह समझ लें कि यहां आपने उनका जवाब सुनकर आपा खोया और वहां आपके और बच्चे के बीच की शुरू हो चुकी बातचीत पर लंबे समय का विराम लग गया. और आप घूम फिर कर उससे बुरी स्थिति में पहुंच जाएंगे, जहां से आपने शुरुआत की थी.
बेस्ट विशेज़!
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट