दिलीप साहब ख़फ़ा नहीं, बहुत ख़फ़ा हुए, पर आगे चलकर बात आई-गई हो गई
दिलीप कुमार का चुम्बकीय व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि फ़िल्मी दुनिया से जुड़ा हर व्यक्ति उनसे एक बार तो मिलना...
पत्रकारिता के हर क्षेत्र, अख़बार, पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविज़न और फ़िल्मों का सघन अनुभव रखने वाले विनोद तिवारी लंबे समय तक टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप की पत्रिका माधुरी के संपादक रहे. वे सोनी एंटरटेन्मेंट टेलीविज़न के सीनियर मैनेजर के पद से सेवानिवृत हुए और मुंबई यूनिवर्सिटी में 20 वर्षों तक पत्रकारिता पढ़ाते रहे. उनकी लिखी किताबें कई विश्वविद्यालयों के मीडिया के पाठ्यक्रम में शामिल हैं. फ़िलहाल वे श्री राजस्थानी सेवा संघ, मुंबई, की एकेडमी ऑफ़ ऑडियो विशुअल आर्ट्स ऐंड जर्नलिज़्म (आवाज) के निदेशक हैं.
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समय के साथ-साथ किस तरह से फ़िल्म पत्रकारिता में बदलाव आए. किस तरह कलाकारों की अभिनय कला पर, किरदारों में...
मी टू के तहत हों या इससे इतर स्त्री-पुरुष के सेक्स संबंधों के सालों बाद दायर किए गए मामले हों,...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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