इंसान पहले चीज़ें जमा करता है, फिर उन चीज़ों की देखभाल करता है और एक दिन पाता है कि उसकी ज़िंदगी में चीज़ों का महत्व ख़ुद उससे भी ज़्यादा हो गया है.
यूं ही नहीं बसा है चीज़ों का ये निज़ाम
मैं ख़ुद उजड़ गया हूं करने में इंतज़ाम
बंदों से कहीं ज़्यादा चीज़ों का रख-रखाव
साहब हों या कि बीवी चीज़ों के सब ग़ुलाम
महफ़िल में मेरे कपड़ों गहनों की हुई बात
सब मुझसे मुख़ातिब थे चीज़ों से हमकलास
मिटने लगी है दिल से पेड़ों की हरी याद
फ्रूटी की डब्बियों को कहने लगा हूं आम
कुछ चीज़ हुआ करता था मैं भी कभी यार
नाचीज़ कर गया है, चीज़ों का तामझाम
कवि: विनय कुमार
कविता संग्रह: मॉल में कबूतर
प्रकाशक: अंतिका प्रकाशन
Illustration: Pinterest
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