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Home ओए एंटरटेन्मेंट

एक विलन: हर इनसान के मन के भीतर बसने वाले विलन की कहानी

भावना प्रकाश by भावना प्रकाश
March 31, 2022
in ओए एंटरटेन्मेंट, रिव्यूज़
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एक विलन: हर इनसान के मन के भीतर बसने वाले विलन की कहानी
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जब तक हम किसी के हमदर्द नहीं बनते तब तक हम दर्द से और दर्द हम से दूर नहीं हो सकता. जिस तरह अंधकार को प्रकाश ही दूर कर सकता है, उसी तरह नफ़रत को प्यार ही मिटा सकता है. फ़िल्म में ये बात बड़े ही नाटकीय और खूबसूरत ढंग से कही गई है. हालांकि यह फ़िल्म है तो लगभग एक दशक पुरानी, लेकिन इसे ज़रूर देखा जाना चाहिए, यह कहना है भावना प्रकाश का.

जैसे हर मां की एक शाश्वत समस्या है कि पौष्टिक भोजन को स्वादिष्ट कैसे बनाए वैसे ही रचनाकार की ये शाश्वत समस्या है कि समाजोपयोगी विषयों को रुचिकर कैसे बनाए.
लगभग एक दशक पहले आई फ़िल्म ‘एक विलन’ ऐसी ही यादगार फ़िल्म है जिसमें एक ख़ूबसूरत संदेश को बड़े ही रुचिकर और मार्मिक ताने-बाने में गूंथकर प्रस्तुत किया गया है.
फ़िल्म शुरू होती है एक अत्यंत दुख भरे प्रसंग के साथ. एक व्यक्ति की पत्नी की बेरहमी से हत्या कर दी गई है. जिसकी हत्या हुई है वो संवेदनशीलता, प्रेम और करुणा का सागर थी. फ़िल्म पति द्वारा हत्यारे को ढूंढ़ते हुए आगे बढ़ती है और ये उत्सुकता दर्शकों को सीट से बांधे रखती है. उसका पति वो व्यक्ति है, जिसने आठ वर्ष की आयु में अपने अभिभावकों की हत्या देखी और उसका बदला लेने के लिए खतरनाक गुंडा बन गया. पर उसे उसी महिला ने एहसास दिलाया था कि जब तक हम किसी के हमदर्द नहीं बनते तब तक हम दर्द से और दर्द हम से दूर नहीं हो सकता. जिस तरह अंधकार को प्रकाश ही दूर कर सकता है उसी तरह नफ़रत को प्यार ही मिटा सकता है. फ़िल्म में ये बात बड़े ही नाटकीय और ख़ूबसूरत ढंग से कही गई है. जैसे-जैसे फ़िल्म आगे बढ़ती है, और दर्शकों का सामना उस महिला के उदात्त स्वभाव से होता है, मृत महिला और उसके सम्पर्क में आकर सुधर गए उसके पति के प्रति उनकी सहानुभूति बढ़ती जाती है और उस अज्ञात हत्यारे के प्रति नफ़रत भी. फ़िल्म का अंत अपने संदेश की पराकाष्ठा पर होता है जब… बहुत सुंदर और मार्मिक अंत है. अगर आपने फ़िल्म नहीं देखी तो देखकर ही जानिए.

एक दूसरी कहानी भी साथ में गूंथी गई है. एक सीधा-सा दिखने वाला घरेलू आदमी है जो अपनी कर्कश बीवी और दमनकारी बॉस के तिरस्कार से अपमानित प्रताड़ित है, पर अपने दब्बू स्वभाव या कह लीजिए मानवीय कमज़ोरियों के कारण कुछ नहीं कह पाता. पर यही आक्रोश उसके मन में जमा होता जाता है, जो किसी अन्य महिला के द्वारा अनजाने में पहुंचाई गई साधारण-सी मानसिक चोट से उद्दीप्त होकर उसे राक्षस बना देता है. इस कहानी को साथ गूंथने का भी एक ख़ास उद्देश्य है.

ये समाज की एक झिंझोड़ देने वाली मनोवैज्ञानिक सच्चाई है. ऐसे ‘विलन’ हमारी सबसे ख़तरनाक समस्या हैं. दरअसल, हम सभी कुछ न कुछ ऐसा कर रहे हैं. कुछ आंशिक रूप से और कुछ पूर्ण रूप से. हर बुद्धिजीवी अपनों के प्रति प्रेम, उन्हें खो देने के डर तथा शोषकों के भय से उन गुनाहों पर चुप्पी साधे रहता है, जिनका हम पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. वो उनसे कुछ भी कहने का साहस नहीं करता, जिनसे डरता है या संबंध बिगड़ना नहीं चाहता. लेकिन सामाजिक,आर्थिक वैषम्य, भ्रष्टाचार और सिर्फ़ एक साधारण इंसान होने की सज़ा के रूप में मिलने वाला तिरस्कार या उपेक्षा हमारे मन में एक विद्रोह जगाती जाती है. हमें विलन बनाती जाती है. और जब हमारे सामने किसी ऐसे व्यक्ति की ग़लती आती है, जिससे न तो हम डरते हैं न ही प्रेम करते हैं तो हम अपने मन में जमा सारा मैल और ग़ुस्सा, जो हमें अंदर ही अंदर काट रहा होता है, उस पर उतार कर क्षणिक सुकून पा लेते हैं.

उदाहरण के लिए यदि हमारे पड़ोस में किसी प्रकार की घरेलू हिंसा होती है तो शायद ही कोई हो, जो जानते बूझते हुए चुप न रहे. पर कोई अपने घर में रुपए भूल कर कहीं चला जाए और उसके घर चोरी हो जाए तो शायद ही कोई ऐसा हो जो उससे ये न पूछे कि आख़िर तुमसे घर में रुपए छोड़ने की ग़लती हुई कैसे?

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अब हम ऐसी कहानी लिखें कि बॉस ने अधीनस्थ का अकारण अपमान किया, उसने घर आकर पत्नी का, पत्नी ने बच्चे को अकारण पीट दिया और बच्चे ने गली के कुत्ते को. तो कोई पढ़ेगा क्या? या फिर नैतिक शिक्षा की कक्षा में बुद्ध के उपदेश कोई बिना ऊंघे सुनेगा क्या?

लेकिन इस फ़िल्म में इन बातों को एक सुमधुर प्रेम कथा के साथ ऐसे पिरोया गया है कि हम मग्न हो जाते हैं. समाधान वही दिखलाया गया है जो बुद्ध, गांधी या ईसा ने कहा था. जिसे हम लाख किताबी समझ लें, पर जो शाश्वत सत्य है, वो है- अपराधी नहीं, अपराध से घृणा करना. प्रेम से घृणा को जीतकर मिलने वाली मानसिक शांति और आनंद का एहसास कराता है इसका अंत. हालांकि ये कठिन है लेकिन ज़रूरी है. क्षमा और उपेक्षा में बड़ा फ़र्क़ है. भय या प्रेम के कारण चुप रह जाना उपेक्षा है. ये हमारे मन में रोष और तनाव भरता है. समस्या की जड़ तक पहुंच कर उसे समाप्त करने की नीयत से त्वरित प्रतिरोध न करना क्षमा है. ये हमारे मन में समाधान ढूंढ़ने और अपने स्तर पर उस समाधान की दिशा में थोड़ा-बहुत कुछ कर पाने की प्रेरणा जगाता है. क्षमा वही कर पाता है जिसमें घटना के कारण को देख पाने की क्षमता होती है. उसे उन अपराधियों पर ग़ुस्सा नहीं दया आती है, जो परिस्थितिवश अपराधी बने हैं. उसकी लड़ाई किसी इंसान से नहीं मानसिकता से होती है. क्षमाशील भयमुक्त होता है. ऐसे लोगों में से ही कोई जब अपने आत्मबल को उत्कृष्टता के अंतिम सोपान तक विकसित कर लेता है तो युग प्रवर्तक बन जाता है.

लेकिन युग प्रवर्तक बनने की प्रतिभा सबमें नहीं होती. भय-मुक्त सब नहीं हो सकते लेकिन प्रेम-युक्त हो सकते हैं. इसीलिए ये अधिक महत्त्वपूर्ण है कि हम युग-प्रवर्तक भले न बनें पर आंशिक विलन भी न बनें. हम अपने से बलवान उन लोगों का विरोध न भी कर सकें, जो इन विषम परिस्थितियों के लिए उत्तरदाई हैं. लेकिन हम अपने से निर्बल किसी एक इंसान की ऐसी मदद तो कर ही सकते हैं जो उसे अपराधी बनने से रोक ले. या अपने भीतर जम रहे आक्रोश को योग, ध्यान, पूजा, कलात्मकता या किसी भी प्रकार मन से निकाल कर उसकी सफ़ाई करते रहें, ताकि छोटी-मोटी ग़लतियां करने वो वाले बेचारे भले लोग हमारे अवसाद का शिकार न बनें, जिनकी ग़लतियों का समाज पर कोई बुरा असर नहीं पड़ रहा. कभी-कभी तो बेचारे ख़ुद उसका फल भोग रहे होते हैं. ये फ़िल्म हमें सीख देती है कि हम अगर हीरो न बन सकें तो जाने-अनजाने विलन भी न बने.

फ़ोटो: गूगल

Tags: Bhavna PrakashEk Villainreview by Bhawna Prakashthe story of the villain who resides within the mindएक विलनभावना प्रकाशभावना प्रकाश की समीक्षामन के भीतर बसने वाले विलन की कहानी
भावना प्रकाश

भावना प्रकाश

भावना, हिंदी साहित्य में पोस्ट ग्रैजुएट हैं. उन्होंने 10 वर्षों तक अध्यापन का कार्य किया है. उन्हें बचपन से ही लेखन, थिएटर और नृत्य का शौक़ रहा है. उन्होंने कई नृत्यनाटिकाओं, नुक्कड़ नाटकों और नाटकों में न सिर्फ़ ख़ुद भाग लिया है, बल्कि अध्यापन के दौरान बच्चों को भी इनमें शामिल किया, प्रोत्साहित किया. उनकी कहानियां और आलेख नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में न सिर्फ़ प्रकाशित, बल्कि पुरस्कृत भी होते रहे हैं. लेखन और शिक्षा दोनों ही क्षेत्रों में प्राप्त कई पुरस्कारों में उनके दिल क़रीब है शिक्षा के क्षेत्र में नवीन प्रयोगों को लागू करने पर छात्रों में आए उल्लेखनीय सकारात्मक बदलावों के लिए मिला पुरस्कार. फ़िलहाल वे स्वतंत्र लेखन कर रही हैं और उन्होंने बच्चों को हिंदी सिखाने के लिए अपना यूट्यूब चैनल भी बनाया है.

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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