हमारे देश में जब किसी छोटे बच्चे को पहली बार अन्न खिलाया जाता है यानी अन्नप्राशन किया जाता है तो उसे सबसे पहले खीर चटाई जाती है तो हुआ न ये मिठास का सबसे पहला स्वाद? यदि आप भी भोजन-प्रेमी यानी फ़ूडी हैं तो आइए, आज जानते हैं मिठास के इस सबसे पहले स्वाद यानी खीर का इतिहास और इससे जुड़ी तमाम और दिलचस्प बातें.
आपकी खीर वाली पहली याद क्या है- शरद पूर्णिमा वाली खीर, गुड़ वाली खीर, चावल वाली खीर, किसी तरह का पायसम (होता ये भी खीर ही है!) किसी पूजा वाली खीर या प्रेमिका के हाथों बनी खीर? खीर की याद ज़्यादातर भारतीयों के मन से जुड़ी होती है. वैसे भारत ही क्यों पर्शिया,अमेरिका, यूरोप हर जगह खीर का कोई मिलताजुलता रूप मौजूद है ही.
आज बातें ज़रा लम्बी होगी, क्योंकि बात ये है कि मैं जब छोटी थी तो एक बच्चोंवाली किताब आती थी नंदन, उसमें कई कहानियां छपती थीं. उनमें एक खीरवाली कहानी थी और वो कहानी खीर से जुड़ी ऐसी याद है, जो हर बार खीर बनाते हुए मुझे याद आ ही जाती है. उसमें एक लड़की थी, जिसकी नई-नई शादी हुई थी. लड़की अपने मायके में चार भाइयों की बहन थी और सबकी लाडली भी. जब ससुराल आई तो पति ने एक छोटी-सी कटोरी देकर कहा- इस कटोरी से नापकर बनाया हुआ चावल मेरे लिए बहुत होता है. अब तुम आ गई हो तो रोज़ दो कटोरी बना लेना. अब बेचारी लड़की खाने-पीने की शौक़ीन, उतने चावल से उसका कुछ न हो और रोज़ भूखी सो जाए, पर पति को बुरा न लगे इसलिए ज़्यादा भी न बनाए. फिर उसने एक उपाय किया. घर में दूध बहुत रहता और नारियल भी तो वो रोज़ रात को पति के सोने के बाद मुट्ठी भर चावल लेती उन्हें नारियल के पानी में पका लेती और फिर उसमें दूध मिलाकर खा लेती. इससे खीर मीठी भी हो जाती और उसका पेट भी भर जाता. अब आगे क्या हुआ, क्या अजीब घटना घटी, पति को कैसे पता चला, पति को पता चला तो क्या हुआ,जैसी सब बातें जाने दीजिए… वो फिर कभी बताऊंगी, पर ये कहानी मैंने कितनी ही बार पढ़ी होगी और ये खीर मेरे मन में जमी रह गई… और जब भी कहीं खीर की बात होती है, मेरे मन में अन्दर एक औरत नारियल फोड़कर आधी रात को खीर बना रही होती है.
खीर तेरे कितने रूप: देखिए सच ये है कि बस खीर कह देने भर से आप समझ ही नहीं सकते कि किस खीर की बात हो रही है, क्योंकि हमरे यहां जैसे कोस-कोस पर पानी बदलता है, वैसे ही हर राज्य में खीर के अलग रूप प्रचलित है. कहीं ये फिरनी है, कहीं पायसम है और कहीं बस खीरऔर कभी-कभी तो इनमें दूध के सिवा और कुछ भी मिलताजुलता भी नहीं होता. कहीं इसमें पिसे हुए चावल डाले जाते हैं (फिरनी) तो कहीं शक्कर की जगह गुड़ (पायसम) और कहीं इसमें इतनी अलग चीज़ें डाली जाती हैं कि इसका पूरा रूप ही बदल जाता है. मुख्य रूप से फिरनी, जहां गुजरात और महाराष्ट्र में बनाई जाती है (वैसे ये रूप पर्शिया से भारत आया माना जाता है), वहीं पायसम दक्षिण भारत में बनाया जाता है. हालांकि वहां भी पायसम एक जैसा नहीं होता है. इसके भी कई रूप देखने को मिलते हैं और फिर उत्तर भारत के और मध्य भारत के तो कहने ही क्या? वहां तो खीर के कितने ही प्रकार प्रचलित है और नए-नए प्रयोगों ने इसके प्रकारों में इज़ाफ़ा ही किया है, पर उत्तर भारत में मुख्यत: खीर चावल, शक्कर, दूध, मेवे और केसर मिलाकर बनाई जाती है. हां, साबूदाने की खीर भी खासी प्रचलित है.
वैसे हमारे यहां मध्यप्रदेश और राजस्थान में खीर बने जाती है थोड़ी पतली, जबकि उत्तर प्रदेश और पंजाब में खीर का बहुत गाढ़ा रूप प्रचलित है. खीर के इन रूपों के साथ ही बादाम की खीर, मखाने की खीर, सूजी की खीर, सिवैयां की खीर, ऐप्पल खीर,ऑरेंज खीर, पनीर खीर, गेहूं की खीर (ऐसी ही एक खीर को हमारे यहाँ खिचड़ा कहा जाता है) मटर की खीर, लौकी की खीर, कद्दू की खीर, मूंग दाल की खीर भी अलग-अलग लोगों के बीच प्रचलित है. मूंग दाल की खीर दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में पारम्परिक रूप से पूजा के प्रसाद के रूप में भी बनाई जाती है.
खीर का इतिहास: खीर का इतिहास हर सभ्यता में है. भारत में इसका सबसे पहला उल्लेख चौदहवीं शताब्दी के गुजरात के ग्रन्थ पद्मावत में संस्कृत शब्द क्षिरिका के रूप में मिलता है अर्थात दूध से बना हुआ. उस समय इसे दूध में ज्वार मिलाकर बनाया जाता था. चावल की खीर का प्रचलन बाद में बढ़ा, वैसे देखा जाए तो चवल तो खुद बाहर से आए तो उसके पहले प्रचलित अनाज ही खीर बनाने के काम में लिए जाते रहे होंगे. लगभग 2000 साल पहले के कुछ दक्षिण भारतीय ग्रंथों में भी पायसम का उल्लेख मिलता है.
पर्शिया में बनाई जाने वाली फिरनी, अफ़गानिस्तान का गिल-ए-फ़िरदौस इसके ही मिलतेजुलते रूप हैं. चीन में भी इसका एक रूप प्रचलित है वहीं यूरोप में भी टार्ट नाम का व्यंजन इसका एक रूप मन जा सकता है. हालांकि भारत की खीर खानेवाले इसे इसके बाक़ी सभी रूपों से इसे बेहतर मानते हैं और खीर और भारतीय फिरनी सबसे ज़्यादा प्रचलित रूप भी है.
खीर से जुड़ी पौराणिक कथा: आप लोगों को कितनी ही कहानियां याद होंगी, जिनमें खीर का उल्लेख होगा, पर मुझे एक कहानी हमेशा आकर्षित करती रही और वो है- श्री राम के जन्म की कहानी. राजा दशरथ और उनकी तीनों रानियों के यज्ञ करने की और फिर रानियों के खीर खाने और चारों राजकुमारों के जन्म की कहानी. ऐसी कई कहानियां हमारे आसपास बिखरी हुई हैं, जो खीर से जुड़ी हैं और जनमानस के मन में जगह बनाए हुए हैं.
खीर से जुड़े क़िस्से: खीर तो बचपन से ही हमारे भोजन का अभिन्न व्यंजन रहा. कोई त्यौहार हो तो खीर-पूड़ी बनती, पूजा हो तो प्रसाद में खीर बनती. नवरात्रि में कन्या जिमाई जाती तो खीर बनती, शरद पूर्णिमा की रात तो खीर ज़रूर ही बनती. चाहे फिर कोई भी शुभ प्रसंग हो खीर अपनी जगह बना ही लेती. श्राद्ध-पक्ष के समय लगभग हर दिन घर में खीर बनती है. ऐसा कहा जाता है कि पूर्वजों को खीर ज़रूर खिलानी चाहिए और कहा तो ये भी जाता है कि श्राद्ध-पक्ष के समय खीर खाना सभी के लिए अच्छा होता है, क्योंकि उस समय मौसम ऐसा होता है, जब शरीर को खीर से मिलने वाले पोषक तत्वों की ज़रूरत होती है. आयुर्वेद में भी तो खीर को शरीर के लिए बहुत गुणकारी माना गया है! बाद में अलग अलग तरह की खीर खाई और कितने ही क़िस्से जुड़ते चले गए इससे, पर अब और बातें करूंगी तो आप बोर हो जाएंगे इसलिए इस बार खीर से जुड़े क़िस्से आप लोग बताइएगा इस आई डी पर: [email protected].
और हां, इस बार हम जल्द ही मिलेंगे, क्योंकि हम अपने अज्ञातवास से लौट आए हैं. तो मिलते हैं अगले सप्ताह…
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट