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अब तक 50 से अधिक पॉज़िटिव लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर चुका हूं: ज्ञानदेव प्रभाकर वारे

शिल्पा शर्मा by शिल्पा शर्मा
May 14, 2021
in ओए हीरो, ज़रूर पढ़ें, मुलाक़ात
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अब तक 50 से अधिक पॉज़िटिव लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर चुका हूं: ज्ञानदेव प्रभाकर वारे
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पुलिस हवलदार ज्ञानदेव प्रभाकर वारे मुंबई के नागपाड़ा मोटर परिवहन विभाग में पोस्टेड हैं. उनकी ज़िम्मेदारी इस बात की है कि वे मुंबई में मिली लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार करवाएं. पिछले वर्ष से अब तक उन्होंने कुल 700 लावारिस लाशों की अंतिम क्रिया करवाई, जिसमें से 50 से अधिक लाशें कोरोना पॉज़िटिव लावारिस लोगों की थीं. आइए, आज मिलते हैं इस स्व-स्फूर्त कोरोना योद्धा से.

शहर में यदि कोई लावारिस लाश कहीं पड़ी मिलती है तो उसे उठाकर अस्पताल तक पहुंचाने, उसका पोस्टमार्टम करवाने और उसका अंतिम संस्कार करवाने की ज़िम्मेदारी प्रशासन की हो जाती है. इस काम की ज़िम्मेदारी मुंबई पुलिस की ओर से पुलिस हवलदार ज्ञानदेव प्रभाकर वारे को सौंपी गई है. वे मुंबईभर में मिली लावारिस लाशों के लिए इस प्रक्रिया को पिछले 20 वर्षों से कर रहे हैं. वे हर लाश का उसके धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार करते हैं. जब से कोविड ने पैर पसारे हैं, उन्होंने कोविड से ग्रस्त लोगों की लावारिस लाशों का भी अंतिम संस्कार किया है. अक्सर लाश उठाते वक़्त उन्हें पता भी नहीं होता कि यह लाश कोविड पॉज़िटिव व्यक्ति की है या नहीं. आइए, उन्हीं से जानें कि कैसे करते हैं वे यह काम…

आपने लावारिस लाशों की अंतिम क्रिया का यह काम कब शुरू किया?
मैंने पहले पांच साल पुलिस स्टेशन में काम किया, लेकिन जब वर्ष 2001 में मुझे यह अन्क्लेम्ड बॉडीज़ की अंतिम क्रिया का काम सौंपा गया तो सौंपने वाले ने मुझे कहा कि यह एक नेक काम है. तो मैंने इस काम को स्वीकार कर लिया. शुरू-शुरू में मुझे बहुत तकलीफ़ हुई, क्योंकि मैंने कभी लाशें नहीं देखी थीं. फिर धीरे-धीरे मैंने इस काम को करने की आदत डाल ली. मुझे सरकार की ओर से एक गाड़ी मिली हुई है और दो कर्मचारी भी, जो लाश को उठाने का काम करते हैं. उनका काम लाश को उठाकर गाड़ी में रखना होता है. फिर हम उस लाश को अस्पताल ले जाते हैं पोस्टमार्टम के लिए. वहां से जैसे निर्देश मिलते हैं उनका पालन करते हैं. कुछ पुरानी बॉडीज़ को अंतिम क्रिया के लिए ले जाते हैं, तब भी वे लोग मेरे साथ रहते हैं. मेरा काम है उस लाश से जुड़े दस्तावेज़ लेना, सही व्यक्ति दिया गया है या नहीं इसकी जांच करना और फिर गाड़ी चलाते हुए उस लाश को शवदाग गृह तक ले जाकर अंतिम क्रिया करवाना या क़ब्रिस्तान में उसे दफ़नाना. यह मेरी पुलिस ड्यूटी है और मेरे साथ जो दो लोग रहते हैं, वे भी सरकारी कर्मचारी ही हैं.

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कैसे होता है यह काम?
पूरे मुंबई में जहां कहीं भी लावारिस लाश मिलती है, हम तक फ़ोन आता है और फिर हम उसे उठाने निकल पड़ते हैं. इसी तरह यदि अस्पतालों में भर्ती ऐसे लोगों की मृत्यु होती है, जिनका कोई अता-पता नहीं तब भी उनकी अंतिम क्रिया के लिए हमें ही बुलाया जाता है. अमूमन जो शव हम लेकर जाते हैं, उनमें से कई स्वाभाविक मौत के मामले होते हैं, ऐक्सिडेंट्स के मामले होते हैं या फिर कहीं फ़ुटपाथ पर, रास्ते चलते लोगों की मौत हो गई तो वो मामले भी होते हैं. ऐसा भी नहीं है कि किसी की मृत्यु होते ही हम उसका अंतिम संस्कार करते हैं. लावारिस मिली लाशों के फ़ोटो खींचकर उनके बारे में पता करने की कोशिश की जाती है, शरीर का पोस्टमार्टम किया जाता है, ताकि मृत्यु का कारण पता चले. उसके बाद भी लाशों को कुछ समय तक मुर्दाघरों में रखा जाता है. अभी आपसे बात करने के बाद मैं कुल सात शवों को अंतिम क्रिया के लिए सायन शवदाग गृह ले जाने वाला हूं. ये वो लाशें हैं, जो जनवरी महीने में हमें मिली थीं. इतने समय में भी इनके परिजनों का पता नहीं चल सका तो अब इनकी अंतिम क्रिया प्रशासन की ओर से हम करेंगे. कई बार लोग अस्पताल में ऐड्मिट होते हैं तो अपना नाम, पता झूठा बताते हैं. उनकी मौत के बाद जब पुलिस उस पते पर जाती है तो वहां कुछ नहीं मिलता. जिस भी पुलिस स्टेशन से संबंधित लाश होती है, उसके अधकारी या अस्पताल के लोग मुझे फ़ोन करते हैं और मैं अपनी गाड़ी लेकर वहां चला जाता हूं. लाशों के साथ दिए गए दस्वतावेज़ों में उनकी मौत का कारण लिखा रहता है. मेरी सेवा के इन 20 वर्षों के दौरान मैंने हज़ारों लाशों की अंतिम क्रिया को अंजाम दिया है. और वो भी मरने वाले के धर्म का ध्यान रखते हुए.

क्या कोरोना काल में कोरोना पीड़ितों का भी अंतिम संस्कार किया है आपने?
पिछले सालभर में ही मैंने 700 लोगों का अंतिम संस्कार किया है. इसमें 50 से अधिक लोग कोरोना पॉज़िटिव भी थे. होता यूं है कि कोई लावारिस लाश मिली, हमें सूचना दी गई तो हम उसे उठाने पहुंच जाते हैं. किस वजह से उसकी मृत्यु हुई ये तो हमें उस लाश के पोस्टमार्टम के बाद ही पता चलता है. ऐसे कई लोग थे जिनकी लाश अस्पताल में पहुंचाने के बाद हमें पता चला कि वे कोरोना पॉज़िटिव थे. ऐसे में हमारे लिए भी ख़तरा बढ़ जाता है, पर ये हमारा काम है तो हमें करना ही है. इसी तरह अस्पताल में जिन लोगों की कोरोना से मृत्यु हुई, लेकिन उनके रिश्तेदार उनका शव लेने ही नहीं आए तो हमने उनका भी अंतिम संस्कार किया. शुरुआत में तो हमारे पास पीपीई किट भी नहीं था, हम केवल मास्क लगाकर ही काम कर रहे थे, लेकिन पिछले एक महीने से अब हमें पीपीई किट मुहैय्या कराया जा रहा है, हमारे विभाग की ओर से भी और अस्पतालों की तरफ़ से भी.
हाल ही में मुझे अपने काम के प्रति लगनशील होने और समाज के प्रति सेवाभाव रखने के लिए पुलिस के जॉइंट कमिश्नर विश्वास नांगरे पाटिल की ओर से प्रशस्ति-पत्र मिला है. इस बात से मेरा मनोबल ऊंचा हुआ है.

आपके घर के लोगों की क्या प्रतिक्रिया है आपके इस काम पर?
मेरी बेटी, बेटा और पत्नी मेरे इस काम को करने पर हमेशा से गौरवान्वित रहते हैं, लेकिन अब जब से कोरोना आया है, वे बहुत डरते हैं, मेरी चिंता करते हैं. जब तक मैं घर नहीं पहुंच जाता वे सहमे हुए रहते हैं. वे कहते हैं कि आप इतने साल से ये काम करते थे तब बिल्कुल डर नहीं लगा, लेकिन अब लगता है. यदि आपको कुछ हो गया तो हम लोग क्या करेंगे? लेकिन अपना काम तो मुझे करना ही है. हां, मैं घर जाने पर सबसे पहले तो बाहर ही ख़ुद को सैनिटाइज़ करता हूं. तुरंत कपड़े धोता हूं, स्नान करता हूं, क्योंकि मुझे भी अपने घर के सदस्यों के स्वास्थ्य की चिंता रहती है.

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शिल्पा शर्मा

शिल्पा शर्मा

पत्रकारिता का लंबा, सघन अनुभव, जिसमें से अधिकांशत: महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कामकाज. उनके खाते में कविताओं से जुड़े पुरस्कार और कहानियों से जुड़ी पहचान भी शामिल है. ओए अफ़लातून की नींव का रखा जाना उनके विज्ञान में पोस्ट ग्रैजुएशन, पत्रकारिता के अनुभव, दोस्तों के साथ और संवेदनशील मन का अमैल्गमेशन है.

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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