हम में से अधिकतर लोग यह बात जानते हैं कि कई हिंदू मंदिरों में कामुक मूर्तियों के ज़रिए प्रेमकाव्य दर्शाया गया है, लेकिन हम में से ज़्यादातर लोग यह बात नहीं जानते हैं कि एक समय था, जब गिरिजाघरों (चर्च) में भी इस तरह का प्रेमकाव्य उकेरा गया था. संगीत सेबैस्टिन हमें इसी के बारे में बता रहे हैं.
इस बात के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं कि बहुत समय पहले कई प्राचीन हिंदू मंदिरों की तरह ही गिरिजाघरों में प्रेमकाव्य रचती हुई मूर्तियां मौजूद थीं. लेकिन जब से आदम और हव्वा को इडन के बगीचे निकाल दिया गया, कामुकता यानी सेक्शुऐलिटी ईसाई धर्म में बदनाम हो गई.
इस सब के लिए जो एक व्यक्ति पूरी तरह ज़िम्मेदार था, वो था ऑगस्टाइन, जो चौथी शताब्दी का बिशप था और जिसे कैथलिक और प्रोटेस्टैन्ट्स दोनों ही बहुत सम्मान देते थे. ऑगस्टाइन के सेक्स-फ़ोबिक और स्त्री-द्वेषी होने ने ही पश्चिमी ईसाइयों का सेक्स के प्रति दृष्टिकोण को पोषित और परिभाषित किया.
ऑगस्टाइन के समय तक किसी को भी आदम और हव्वा की कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं थी, यहां तक कि ईसाइयों को भी नहीं. ऑगस्टाइन ने इस कहानी को एक तरह की ‘अस्पष्टता’ से बाहर निकला और असली या ‘मूल पाप’ का सिद्धांत खोज निकाला. उनके सिद्धांत के अनुसार मूल पाप के साथ, नारी वासना का ‘‘भ्रष्टाचारी प्रभाव’’ भी दुनिया में आ गया था- और फिर बाक़ी की बातें तो हम सभी जानते हैं.
पर इतिहास की एक आदत है, वो भावी पीढ़ियों के लिए कई ऐसे पुरातत्विक साक्ष्य छोड़ जाता, जो असुविधाजनक तो होते हैं, पर सच्चाई बयां कर जाते हैं. इस बात के पुख़्ता सुबूत हैं कि ईसाइयत से पहले यह दुनिया काफ़ी सेक्स-पॉज़िटिव थी.
आश्चर्यजनक रूप से पूरे यूरोप में मध्ययुगीन चर्च की इमारतों पर कामुक नक्काशी बहुतायत में मौजूद है और आम है. उनमें से कई एक नग्न महिलाओं की आलंकारिक मूर्तियां हैं, जो एक बड़े आकार के योनी को प्रदर्शित करती हैं. इन मूर्तियों को स्थानीय तौर पर ‘शीला ना गिग्स’ के रूप में जाना जाता है. इस तरह की मूर्तियां बड़ी संख्या में आयरलैंड में मौजूद हैं, जो रोमन कैथलिक देश है और सभी यूरोपीय देशों में सबसे धार्मिक देशों में से एक है.
विक्टोरियन युग के दौरान शीला ना गिग्स को इतना अप्रिय या घृणास्पद माना जाता था कि उनमें से कई को विकृत कर दिया गया और जनता की नज़र से दूर राष्ट्रीय संग्रहालय के अंदर रखा दिया गया था.
इस बारे में कोई भी सही तरह से नहीं जानता कि आख़िर इसका इतना अजीबोग़रीब नाम कैसे पड़ा? कुछ लोगों का मानना है कि ‘शीला’ उस समय का लोकप्रिय या प्रचलित नाम था. वहीं उत्तरी अंग्रेज़ी में ‘गिग’ स्त्रियों के जननांगों के लिए इस्तेमाल किया जानेवाला एक कठबोली (गंवारू या अशिष्ट) संबोधन है.
हालांकि अब भी विद्वान लोग इसकी उत्पत्ति, महत्व और प्रासंगिकता का लेकर कई मतों में बटे हुए हैं. एक लोकप्रिय परिकल्पना ये भी है कि शीला ना गिग्स मूर्तिपूजकों की देवी का प्रतिनिधित्व करती है. यदि यह सच है तो बहुत संभव है कि ईसाइयों ने यह तय किया होगा कि मूर्तिपूजकों के मंदिर के इस हिस्से को जैसा का तैसा रखते हुए ही इसपर चर्च बना दिया जाए.
एक इससे ज़्यादा भरोसेमंद सिद्धांत यह है कि ये मूर्तियां ईसाइयत की महिलाओं की वासना की प्रतीकात्मकता के साथ भी फ़िट होती हैं, जिसके बारे में ऑगस्टाइन ने बात की थी और जिसे ‘घृणित’ और ‘भ्रष्टाचारी प्रभाव’ ठहरा दिया था.
इन मूर्तियों को अपनी असंगत-सी विशेषताओं की तरह भी देखा जा सकता है. प्राचीन हिंदू मंदिरों में जहां प्रेमकाव्यात्मक मूर्तियों के ज़रिए सेक्स की दिव्यता को बयान किया गया है, वहीं दूसरी विरोधाभासी विचारधारा भी इसे परिभाषित करती है: पहली परिभाषा जहां सेक्स को पवित्रतम ऊंचाई देती है, वहीं दूसरी परिभाषा इसे बदनाम करती है.
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