जेएनयू परिसर के मशहूर कवि रहे रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ की लंबी कविता कथा देश की में हमें भारत के साथ-साथ संक्षेप में दुनिया के इतिहास-भूगोल की झलकी मिलती है. साथ ही राजनीति की भी.
ढंगों और दंगों के इस महादेश में
ढंग के नाम पर दंगे ही रह गए हैं
और दंगों के नाम पर लाल ख़ून,
जो जमने पर काला पड़ जाता है
यह हादसा है,
यहां से वहां तक दंगे,
जातीय दंगे,
सांप्रदायिक दंगे,
क्षेत्रीय दंगे,
भाषाई दंगे,
यहां तक कि क़बीलाई दंगे,
आदिवासियों और वनवासियों के बीच दंगे
यहां राजधानी दिल्ली तक होते हैं
और जो दंगों के व्यापारी हैं,
वे भी नहीं सोचते कि इस तरह तो
यह जो जंबूद्वीप है,
शाल्मल द्वीप में बदल जाएगा,
और यह जो भरत खंड है, अखंड नहीं रहेगा,
खंड-खंड हो जाएगा
उत्तराखंड हो जाएगा, झारखंड बन जाएगा,
छत्तीस नहीं, बहत्तर खंड हो जाएगा
बल्कि कहना तो यह चाहिए कि
नौ का पहाड़ा ही पलट जाएगा
न नौ खंड, न छत्तीस, न बहत्तर,
हज़ार खंड हो जाएगा,
लाख खंड हो जाएगा
अतल वितल तलातल के दलदल
में धंस जाएगा,
लेकिन कोई बात नहीं!
धंसने दो इस अभागे देश को यहां-वहां,
जहां-जहां यह धंस सकता है,
दंगे के व्यापारियों की बला से
जब यह देश नहीं रहेगा,
कितनी ख़राब लगेगी दुनिया जब
उसमें भारत खंड नहीं रहेगा,
जंबूद्वीप नहीं रहेगा,
हे भगवान!
जे.एन.यू. में जामुन बहुत होते हैं
और हम लोग तो बिना जामुन के
न जे.एन.यू. में रह सकते हैं
और न दुनिया में ही रहना पसंद करेंगे
लेकिन दंगों के व्यापारी
जंबूद्वीप नहीं रहेगा तो
करील कुंज में डेरा डाल लेंगे,
देश नहीं रहा तो क्या हुआ,
विदेश चले जाएंगे।
कुछ लोग अपने घाट जाएंगे,
कुछ लोग मर जाएंगे,
लेकिन हम कहां जाएंगे?
हम जो न मर रहे हैं और न जी रहे हैं,
सिर्फ़ कविता कर रहे हैं
यह कविता करने का वक़्त नहीं है दोस्तो!
मार करने का वक़्त है
ये बदमाश लोग कुछ मान ही नहीं रहे हैं
न सामाजिक न्याय मान रहे हैं,
न सामाजिक जनवाद की बात मान रहे हैं,
एक मध्ययुगीन सांस्कृतिक तनाव के
चलते
तनाव पैदा कर रहे हैं,
टेंशन पैदा कर रहे हैं,
जो अमरीकी संस्कृति की विरासत है
ऐसा हमने पढ़ा है,
ये सब बातें मैंने मनगढ़ंत नहीं गढ़ी हैं
पढ़ा है,
और अब लिख रहा हूं
कि दंगों के व्यापारी,
मुल्ला के अधिकार की बात उठा रहे हैं,
साहुकारों, सेठों, रजवाड़ों के अधिकार की बात
उठा रहे हैं
इतिहास को उलट देने का अधिकार
चाहते हैं दंगों के व्यापारी
लेकिन आज के ज़माने में
इतिहास को उलटना संभव नहीं है,
इतिहास भूगोल में समष्टि पा गया है
लड़ाइयां बहुत हैं
जातीय, क्षेत्रीय, धार्मिक इत्यादि
लेकिन जो साम्राज्यवाद विरोधी लड़ाई
दुनिया भर में चल रही है,
उसका खगोलीकरण हो चुका है
वह उसके अपने घर में चल रही है,
अमरीका में चल रही है,
क्योंकि अमरीका अब
फ़ादर अब्राहिम लिंकन की लोकतंत्र
की परिभाषा से बहुत दूर चला
गया है
और इधर साधुर बनिया का जहाज़
लतापत्र हो चुका है,
कन्या कलावती हठधर्मिता कर रही है,
सत्यनारायण व्रत कथा ज़ारी है
कन्या कलावती आंख मूंद कर पारायण कर रही है
यह हठधर्मिता है लोगों!
मुझे डर है कि
जामाता सहित साधुर बनिया
जलमग्न हो सकते हैं,
तब विलपती कन्या कलावती के उठने का
कोई संदर्भ नहीं रह जाएगा,
न ही इंडिया कोलंबिया हो पाएगा
सपना चकनाचूर हो जाएगा
स्वप्न वासवदत्ता का!
कभी अमेरीका में नॉवेल पायनियर हेमिंग्वे
ने आत्महत्या की थी,
क्योंकि थी हेमिंग्वे ने आत्महत्या?
कुछ पता नहीं चला
अमरीका में सिर्फ़ बाहरी बातों का ही पता चलता है
अंदर तो स्कूलों में बच्चे मार दिए जाते हैं,
पता नहीं चलता
हां, इतना पता है
कि हेमिंग्वे बीस वर्ष तक
फिदेल कास्त्रो के प्रशंसक बने रहे
अब ऐसा आदमी अमरीका में तनावमुक्त नहीं रह सकता
और टेंशन तो टेंशन,
ऊपर से अमरीका टेंशन!
तो क्या हेमिंग्वे व्हाइट हाउस का बुर्ज गिरा देते?
हेमिंग्वे ने इंडिसन कैंप नामक गल्प लिखा
मैं अर्जुन कैंप का वासी हूं,
अर्जुन का एक नाम भारत है,
और भारत का एक नाम है इंडिया
अर्जुन कैंप से इंडियन कैंप तक,
इंडिया से कोलंबिया तक,
वही आत्महत्या की संस्कृति।
मेरा तो जाना हुआ है दोस्तों,
गोरख पांडेय से हेमिंग्वे तक
सब के पीछे वही आतंक राज,
सब के पीछे वही राजकीय आतंक
दंगों के व्यापारी
न कोई ईसा मसीह मानते हैं,
और न कोर्ट अबू बेन अधम
उनके लिए जैसे चिली, वैसे वेनेजुएला,
जैसे अलेंदे, वैसे ह्यूगो शावेज,
वे मुशर्रफ़ और मनमोहन की बातचीत भी करवा सकते हैं,
और होती बात को बीच से दो-फाड़ भी कर सकते हैं
दंगों के व्यापारी कोई फ़ादर-वादर नहीं मानते,
कोई बापू-साधु नहीं मानते,
इन्हीं लोगों ने अब्राहम लिंकन को भी मारा,
और इन्हीं लोगों ने महात्मा गांधी को भी
और सद्दाम हुसैन को किसने मारा?
हमारे देश के लंपट राजनीतिक
जनता को झांसा दे रहे हैं कि बग़ावत मत करो!
हिंदुस्तान सुरक्षा परिषद् का सदस्य बनने वाला है
जनता कहती है
भाड़ में जाए सुरक्षा परिषद!
हम अपनी सुरक्षा ख़ुद कर लेंगे
दंगों के व्यापारी कह रहे हैं,
हम परिषद से सेना बुलाकर तुम्हें कुचल देंगे
जैसे हमारी सेनाएं नेपाल रौंद रही हैं,
वैसे उनकी सेनाएं तुम्हें कुचल देंगी
नहीं तो हमें सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने दो और चुप रहो
यही एक बात की ग़नीमत है
कि हिंदुस्तान चुप नहीं रह सकता,
कोई न कोई बोल देता है,
मैं तो कहता हूं कि हिंदुस्तान वसंत का दूत बन कर बोलेगा,
बम की भाषा बोलेगा हिंदुस्तान!
अभी मार्क्सवाद ज़िंदा है,
अभी बम का दर्शन ज़िंदा है,
अभी भगत सिंह ज़िंदा है
मरने का चे ग्वेरा भी मर गए,
और चंद्रशेखर भी,
लेकिन वास्तव में कोई नहीं मरा है
सब ज़िंदा हैं,
जब मैं ज़िंदा हूं,
इस अकाल में
मुझे क्या कम मारा गया है
इस कलिकाल में
अनेकों बार मुझे मारा गया है
इस कलिकाल में
अनेकों बार घोषित किया गया है,
राष्ट्रीय अख़बारों में, पत्रिकाओं में,
कथाओं में, कहानियों में
कि विद्रोही मर गया
तो क्या सचमुच मर गया!
नहीं, मैं ज़िंदा हूं,
और गा रहा हूं,
कि
कहां चला गा उ सादुर च बनिया,
कहां चली गई कन्या कलावती,
संपूर्ण भारत भा लता-पात्रम्।
पर वाह रे अटल चाचा! वाह रे सोनिया चाची!!
शब्द बिखर रहे हैं,
कविताएं बिखर रही हैं,
क्योंकि विचार बिफर रहे हैं
हां, यह विचारों का बिफरना ही तो है,
कि जब मैं अपनी प्रकृति की बात सोचता हूं
तो मेरे सामने मेरा इतिहास घूमने लगता है
मैं फंटास्टिक होने लगता हूं
और सारा भूगोल,
उस भूगोल का
ग्लोब, मेरी हथेलियों पर
नाचने लगता है
और मैं महसूसने लगता हूं
कि मैं ख़ुद में एक प्रोफ़ाउंड
उत्तर आधुनिक पुरुष पुरातन हूं
मैं कृष्ण भगवान हूं
अंतर सिर्फ़ यह है कि
मेरे हाथों में चक्र की जगह
भूगोल है, उसका ग्लोब है
मेरे विचार सचमुच में उत्तर आधुनिक हैं
मैं सोचता हूं कि इतिहास को
भूगोल के माध्यम से एक क़दम आगे
ले जाऊं
कि भूगोल की जगह
खगोल लिख दूं
लेकिन मेरी दिक़्क़त है कि
जैसे भूगोल को खगोल में बदला जा सकता है,
वैसे ही इंडिया को कोलंबिया
नहीं शिफ़्ट किया जा सकता
कोलंबिया-जो खगोल की धुरी है
और सारा भूगोल उसकी परिधि है
जिसमें हमारा महान देश भी आता है
महान इसलिए कह रहा हूं
क्योंकि महान में महानता है
जैसे खगोल की धुरी कोलंबिया है,
वैसे इस देश के महान विद्वान लोग
महानता की धुरी इंडिया को मानते हैं
अब यह विचार मेरे मन-मयूर को
चक्रवात की तरह चला रहा है कि
भगवान, देवताओं!
इंडिया को कोलंबिया शिफ़्ट करना ठीक रहेगा,
कि स्वयमेव कोलंबिया को ही
इंडिया में उतार दिया जाए
यह विचार है
जो बिफर रहा है
इसमें इतिहास भी है,
और दर्शन भी,
कि आप जब हमारे देश आएंगे
तो हम क्या देंगे,
क्योंकि हमारे पास बिछाने के लिए बोरियां भी नहीं हैं
मेरे महबूब अमरीका!
और जब हम आपके यहां आएंगे,
तो क्या लेकर आएंगे,
क्योंकि मुझ सुदामा के पास
तंडुल रत्न भी नहीं है कॉमरेड कृष्ण!
इसलिए विचार बिफर रहे हैं
कि जब हमारा महान देश
सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य
बनेगा, जब उसे वीटो पॉवर
मिलेगी,
तब तक पिट चुका होगा,
लुट चुका होगा,
बिक चुका होगा
जयचंद और मीर जाफ़र
जब इतिहास नहीं
वर्तमान के ख़तरे बन चुके हैं
इससे भविष्य अंधकारमय दिखाई पड़ रहा है
कालांतर में इस देश को
ख़रीद सकता है अमरीका,
नहीं, इटली का एक लंगड़ा व्यापारी
त्रिपोली
तोपों के दलाल
साम्राज्यवाद के भी दलाल हैं
वे काल हैं और कुंडली मारकर
शेषनाग की तरह संसद को
अपने फन के साए में लिए बैठे हैं
मुझे यह अभागा देश
कालिंदी की तरह लगता है
और ये सरकारें,
कालिया नाग की तरह
विचार बिफर रहे हैं कि
हे फंटास्टिक कृष्ण!
भगवान विद्रोही!
तुम विद्रोही हो,
कोई नहीं तो तुम क्यों नहीं
कूद सकते आंख मूंद कर
कालिया नाग के मुंह में
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