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Home ज़रूर पढ़ें

बैकबोन होने का असल मतलब सिखाते हैं रोनाल्डो और पी गोपीचंद जैसे खिलाड़ी

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
June 18, 2021
in ज़रूर पढ़ें, नज़रिया, सुर्ख़ियों में
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बैकबोन होने का असल मतलब सिखाते हैं रोनाल्डो और पी गोपीचंद जैसे खिलाड़ी
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हाल ही में फ़ुटबॉल सुपरस्टार क्रिस्टियानो रोनाल्डो के अपने सामने रखी कोका कोला की बोतल हटाने की घटना विश्व में सभी की नज़रों में आई. इससे कोका कोला कंपनी को ख़ासा नुक़सान भी हुआ. हमारे देश में बैडमिंटन खिलाड़ी पी गोपीचंद ने भी, जब वे अपने करिअर के शिखर पर थे, सॉफ़्ट ड्रिंक्स, सिगरेट और शराब के विज्ञापन करने से साफ़ इनकार कर दिया था. खिलाड़ियों में रीढ़ की हड्डी हो तो क्या कुछ नहीं हो सकता? इस बात को रेखांकित करता है लेखक, कवि, चित्रकार और अनुवादक अशोक पांडे का यह आलेख.

 

बीते सोमवार को एक ज़बरदस्त घटना घटी. फ़ुटबॉल के सुपरस्टार क्रिस्टियानो रोनाल्डो ने यूरो चैम्पियनशिप के एक मैच के बाद हुई प्रेस कॉन्फ़रेंस में अपने सामने रखीं कोका कोला की दोनों बोतलें एक तरफ़ हटा दीं. उसके बाद उन्होंने वहीं रखी पानी की बोतल को उठाकर पत्रकारों को दिखाते हुए कहा,“आगुवा!” यानी पानी! दस सेकेंडों में उन्होंने जता दिया कि सॉफ़्ट ड्रिंक्स को लेकर उनका क्या नज़रिया है.
रोनाल्डो की इस एक भंगिमा ने यह किया कि कोका कोला के शेयर गिरना शुरू हो गए. इस घटना का ऐसा ज़बरदस्त प्रभाव पड़ा कि कुछ ही घंटों के भीतर कम्पनी को चार बिलियन डॉलर यानी क़रीब 300 अरब रुपयों का नुक़सान हो गया. यह गिरावट अब भी जारी है. खिलाड़ी में रीढ़ की हड्डी साबुत बची हो तो वह अकेला भी दुनिया के सबसे मजबूत दुर्गों में सेंध लगा सकता है.

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मुझे उम्मीद है लोग अभी पुलेला गोपीचंद को नहीं भूले होंगे.
सत्तर और अस्सी के दशकों में विश्व के नम्बर एक खिलाड़ी बन गए प्रकाश पादुकोन के रिटायर होने के बाद देश को सैयद मोदी से बहुत उम्मीदें थीं, पर वर्ष 1988 में लखनऊ में उनकी हत्या हो गई. इस त्रासद घटना के कोई दस सालों तक भारतीय बैडमिंटन के दिन कोई विशेष उल्लेखनीय नहीं रहे. फिर आन्ध्र प्रदेश के नलगोंडा में जन्मा एक बेहद प्रतिभाशाली खिलाड़ी इस ख़ालीपन में किसी सनसनी की तरह उभर रहा था. पुलेला गोपीचंद नाम के इस खिलाड़ी की शैली में कई विशेषज्ञों को प्रकाश पादुकोन की झलक दिखाई देती थी. लेकिन वर्ष 1995 में पुणे में चल रही एक प्रतियोगिता में डबल्स के एक मैच के दौरान गोपीचन्द के घुटने में घातक चोट लगी और उनका करिअर क़रीब-क़रीब समाप्त हो गया.
एक सामान्य खिलाड़ी और एक बडे़ खिलाड़ी में क्या फ़र्क़ होता है, यह अगले एक साल में गोपीचंद ने सबको दिखा दया. चोट से उबरकर उन्होंने न केवल विश्व बैडमिंटन में अपनी रैंकिंग में उल्लेखनीय सुधार किया, बल्कि वर्ष 2001 में चीन के चेन हांग को हराकर ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप जीत ली. इसके कुछ माह पहले वे वर्ल्ड नंबर वन को परास्त कर चुके थे.

जैसा कि बाज़ार के इस युग में होना था, तमाम मल्टीनैशनल कंपनियों ने ऑल इंग्लैंड चैम्पियनशिप जीतने के बाद गोपीचंद को नोटिस किया. कोका कोला ने विज्ञापन के लिए उनसे संपर्क किया और बहुत बड़ी रकम देने का प्रस्ताव किया. लेकिन उस समय तक अपने माता-पिता के साथ किराए के घर में रह रहे पुलेला गोपीचंद ने साफ़-साफ़ मना कर दिया. आमतौर पर बहुत शांत रहने वाले इस खिलाड़ी ने इस बात को कोई तूल नहीं दी, न ही किसी तरह की पब्लिसिटी की. मीडिया तक को इस बात का पता दूसरे स्त्रोतों से लगा.
एक इंटरव्यू में जब उनसे इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने कहा,“चूंकि मैं ख़ुद सॉफ़्ट ड्रिंक नहीं पीता, मैं नहीं चाहूंगा कि कोई दूसरा बच्चा मेरी वजह से ऐसा करे. मैं कोई चिकित्सक नहीं हूं, लेकिन मुझे पता है कि सॉफ़्ट ड्रिंक्स स्वास्थ्य को नुक़सान पहुंचाते हैं और मैंने अपने मैनेजर को इस बारे में साफ़-साफ़ कह रखा है कि मैं किसी भी ऐसे प्रोडक्ट के साथ नहीं जुड़ूंगा, चाहे वह साफ़्ट ड्रिंक हो या सिगरेट या शराब.” पैसे को लेकर भी उनका दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट था,”मेरे लिए ज़्यादा महत्व उसूलों का है और मैं किसी भी क़ीमत पर अपने उसूलों को पैसे के तराज़ू पर नहीं तोल सकता.”

क्रिस्टियानो रोनाल्डो के कारनामे ने मुझे न केवल पुलेला गोपीचंद की, बल्कि पी टी उषा पर लिखी वीरेन डंगवाल की कविता की भी याद दिलाई. ये सारे नाम आनेवाले वक़्त में ज़रूरी रौशनी का काम करेंगे. इन सब को सलाम कीजिए…

काली तरुण हिरनी
अपनी लम्बी चपल टांगों पर
उड़ती है मेरे ग़रीब देश की बेटी
आंखों की चमक में जीवित है अभी
भूख को पहचानने वाली
विनम्रता
इसीलिए चेहरे पर नहीं है
सुनील गावस्कर की-सी छटा
मत बैठना पी टी ऊषा
इनाम में मिली उस मारुति कार पर
मन में भी इतराते हुए
बल्कि हवाई जहाज में जाओ
तो पैर भी रख लेना गद्दी पर
खाते हुए मुंह से चपचप की आवाज़ होती है?
कोई ग़म नहीं
वे जो मानते हैं बेआवाज़ जबड़े को सभ्यता
दुनिया के सबसे खतरनाक खाऊ लोग हैं.

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

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ओए अफ़लातून

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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