हमें मालूम है आपको लगेगा कि ये हमने क्या कह दिया? कहीं सेक्शुअल संबंध बनाए बिना भला ऑर्गैज़्म आ सकता है? पर हमारा यक़ीन मानिए कि यह सच है, ऐसे कई लोग (पुरुष व महिलाएं दोनों ही) हैं, जिन्हें एक्सरसाइज़ के दौरान ऑर्गैज़्म का अनुभव हुआ है. और साथ ही कुछ एक्सरसाइज़ ऐसी भी हैं, जो ऑर्गैज़्म को प्रेरित कर सकती हैं. इस बारे में हमें और जानकारी दे रहे हैं वीवॉक्स के संस्थापक संगीत सेबैस्टियन.
सचमुच! मैं बातें नहीं बना रहा हूं. कुछ लोगों को एक्सरसाइज़ के दौरान ऑर्गैज़्म का अनुभव होता है और यह सच मेडिकल दस्तावेज़ों में दर्ज है. आपको यह बात थोड़ी अजीब इसलिए लग रही होगी कि हम सब के दिमाग़ इस बात के लिए प्रोग्राम्ड हैं कि ऑर्गैज़्म का ज़िक्र केवल सेक्शुअल संबंधों के दौरान आता है.
लेकिन सच्चाई यह है कि ऑर्गैज़्म इससे अलग स्वतंत्र रूप से भी महसूस हो सकता है-महिलाओं और पुरुषों दोनों को ही. कई लोगों ने सेक्शुअल रिश्तों से परे अलग-अलग समय पर ऑर्गैज़्म का अनुभव किया है: सोते समय से लेकर बच्चे के पैदा होते समय तक. हालांकि यह बताना मुश्क़िल है कि कितने लोगों को ऐसा अनुभव हुआ है, लेकिन यह सच्चाई जानना कि लोगों के साथ ऐसा होता है, कई लोगों के लिए राहत पाने जैसा होगा, क्योंकि अब तक वे यही समझ रहे होंगे कि उनके साथ कुछ असामान्य हो रहा है.
इस पर कुछ शोध भी हुए हैं!
बिना सेक्शुअल गतिविधि के आनेवाला ऑर्गैज़्म दशकों तक रिसर्चर्स और फ़िटनेस के प्रति सजग लोगों की नज़रों में भी रहस्य ही रहा. तो जिन लोगों को इसका अनुभव हुआ उन्होंने यही सोचा होगा कि वे ज़रूर अनोखे-से हैं.
सेक्स से जुड़ी हर बात की ही तरह इस पर बात तब हुई जब प्रभावशाली अमेरिकी सेक्स रिसर्चर अल्फ्रेड किन्सी ने 50’ के दशक में ह्यूमन सेक्शुऐलिटी से जुड़े अपने एक अध्ययन में बग़ैर सेक्शुअल गतिविधि के महसूस होनेवाले ऑर्गैज़्म के बरे में बात की. उनकी थ्योरी के अनुसार लगभग 5% लोगों को व्यायाम से प्रेरित यानी एक्सरसाइज़-इन्ड्यूज़्ड ऑर्गैज़्म आता है.
स्तनधारी मानव धरती के चाहे किसी भी हिस्से में हो, उसकी जैविक और शारीरिक बनावट तो एक जैसी ही है तो इस बात का कोई कारण ही नहीं बनता कि भारत में जिम जानेवाले एक्सरसाइज़ प्रेमियों को इस तरह के अनुभव ना होते हों.
कौन-से ऐसे वर्कआउट्स हैं, जो ऑर्गैज़्म को प्रेरित कर सकते हैं?
वर्ष 2012 में जरनल ऑफ़ सेक्शुअल ऐंड रिलेशनशिप थेरैपी में महिलाओं में एक्सरसाइज़ से प्रेरित ऑर्गैज़्म के बारे में छपे एक आधिकारिक अध्ययन के मुताबिक, पेट की एक्सरसाइज़, स्क्वैट्स, वेट लिफ़्टिंग, बाइकिंग और क्लाइम्बिंग वगैरह कुछ ऐसी एक्सरसाइज़ हैं, जिन्हें करने पर कुछ लोगों को ऑर्गैज़्म का अनुभव हो सकता है.
अब सवाल ये है कि आख़िर ऐसा होता क्यों है? भारतीय फ़िटनेस उत्साहियों के साथ ऐसा होना क्या आम बात है? क्या यह कोई ऐसी बात है, जिसके लिए चिंता की जानी चाहिए? यही वे सवाल थे, जो मैंने डॉक्टर डी नारायण रेड्डी से पूछे, जो जानेमाने सेक्सोलॉजिस्ट हैं, वीवॉक्स के विशेषज्ञ हैं और अपोलो हॉस्पिटल, चेन्नई में सीनियर कन्सल्टेंट हैं.
यहां पढ़िए एक्स्पर्ट की राय
डॉक्टर डी नारायण कहते हैं,‘‘जिम वर्कआउट्स के दौरान आपकी कोर मसल्स की कसरत होती है-पेट, पेल्विक फ़्लोर, जांघें- ये वही हिस्से हैं, जो सेक्शुअल इंटरकोर्स के दौरान भी इस्तेमाल होते हैं. यही वजह है कि कुछ लोगों को वर्कआउट के दौरान भी ऑर्गैज़्म का होना बिल्कुल संभव है.
‘‘यह उस चीज़ के समान है, जिसे हम फ़ैंटम ऑर्गैज़्म कहते हैं, जहां लोगों को हल्की-सी उत्तेजना से या फिर केवल कल्पनाशीलता से भी ऑर्गैज़्म महसूस होता है. हमारे दिमाग़ में हमारे शरीर के हर हिस्से का प्रतिनिधित्व होता है तो ऐसे में जब आपके सोचने के चलते दिमाग़ में मौजूद सेक्स वाला केंद्र सक्रिय हो जाता है तो फ़ैंटम ऑर्गैज़्म बिल्कुल आ सकता है.
‘‘ऑर्गैज़्म एक ख़ुशी देनेवाली अनुभूति है, जिसे पाने लिए आपको इरेक्शन या इजैकुलेशन की ज़रूरत नहीं होती. और यह बात महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए ही सही है. बात चिकित्सकीय अनुभव की करूं तो अब तक मेरे सामने एक भी ऐसा प्रकरण नहीं आया है. इस तरह की घटना का दस्तावेज़ीकरण इसलिए भी नहीं हुआ कि ऐसा महसूस करनेवाले लोग डॉक्टरों से अपना यह अनुभव साझा करने के इच्छुक नहीं होते. लेकिन आपको बता दूं कि जब तक कि आप सेहतमंद महसूस करें, ग़ैर सेक्शुअल या फ़ैंटम ऑर्गैज़्म आने/महसूस करने में चिंता की कोई बात नहीं है.‘‘
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