• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब क्लासिक कहानियां

द लास्ट लीफ़: कहानी विश्वास की (लेखक: ओ हेनरी)

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
November 2, 2021
in क्लासिक कहानियां, ज़रूर पढ़ें, बुक क्लब
A A
द लास्ट लीफ़: कहानी विश्वास की (लेखक: ओ हेनरी)
Share on FacebookShare on Twitter

ओ हेनरी की मशहूर शॉर्ट स्टोरी ‘द लास्ट लीफ़’ कहानी है जान्सी और सू नामक दो सहेलियों की. निमोनिया से जूझ रही जान्सी को यक़ीन हो चला था कि उनके घर की खिड़की से दिखनेवाली बेल की आख़िरी पत्ती गिरते ही वह भी दुनिया छोड़कर चली जाएगी. फिर कहानी में एंट्री होती है बूढ़े कलाकार बेहरमैन की. लगभग चार दशक से अपनी उत्कृष्ट कलाकृति बनाने की एकमात्र हसरत दिल में रखे बेहरमैन, कुछ ऐसा कर जाता है, जो उसे सचमुच महान कलाकारों की श्रेणी में पहुंचा देता है. क्या आख़िरी पत्ती गिरती है? और क्या उस पत्ती के साथ जान्सी की मौत हो जाती है? जानने के लिए पढ़ें द लास्ट लीफ़ का हिंदी अनुवाद आख़री पत्ती’.

वॉशिंगटन चौक के पश्चिम की ओर एक छोटा-सा मुहल्ला है जिसमें टेढ़ी-मेढ़ी गलियों के जाल में कई बस्तियां बसी हुई हैं. ये बस्तियां बिना किसी तरतीब के बिखरी हुई है. कहीं-कहीं सड़क अपना ही रस्ता दो-तीन बार काट जाती है. इस सड़क के सम्बन्ध में एक कलाकार के मन में अमूल्य सम्भावना पैदा हुई कि कागज, रंग और कैनवास का कोई व्यापारी यदि तकादा करने यहां आए तो रास्ते में उसकी अपने आपसे मुठभेड़ हो ही जाएगी और उसे एक पैसा भी वसूल किए बिना वापिस लौटना पड़ेगा.
इस टूटे-फ़ूटे और विचित्र,’ग्रीनविच ग्राम’ नामक मुहल्ले में दुनियाभर के कलाकार आकर एकत्रित होने लगे. वे सब के सब उत्तर दिशा में खिड़कियां, अठारहवीं सदी के महराबें, छत के कमरे और सस्ते किरायों की तलाश में थे. बस छठी सड़क से कुछ कांसे के लोटे और टिन की तश्तरियां ख़रीद लाए और ग्रहस्थी बसा ली.
एक नीचे से मकान के तीसरी मंज़िल पर, सू जौर जान्सी का स्टूडियो था. जान्सी, जोना का अपभ्रंश था. एक ‘मेईन’ से आई थी और दूसरी ‘कैलाफ़ोर्निया’ से. दोनों की मुलाक़ात, आठवीं सड़क के एक अत्यन्त सस्ते होटल में हुई थी. दोनों की कलारुचि और खाने-पीने की पसन्द में इतनी समानता थी कि दोनों के मिले-जुले स्टूडियो का जन्म हो गया.
यह बात मई के महीने की थी. नवम्बर की सर्दियों में एक अज्ञात अजनबी ने, जिसे डॉक्टर लोग ‘निमोनिया’ कहते हैं. मुहल्ले में डेरा डाल कर, अपनी बर्फ़ीली उंगलियों से लोगों को छेड़ना शुरू किया. पूर्वी इलाक़े में तो इस सत्यनाशी ने बीसियों लोगों की बलि लेकर तहलका मचा दिया था, परन्तु पश्चिम की तंग गलियों वाले जाल में उसकी चाल कुछ धीमी पड़ गई.
मिस्टर ‘निमोनिया’ स्त्रियों के साथ भी कोई रिआयत नहीं करते थे. कैलीफ़ोर्निया की आंधियों से जिसका खून फ़ीका पड़ गया हो, ऐसे किसी दुबली-पतली लड़की का इस भीमकाय फ़ुंकारते दैत्य से कोई मुकाबला तो नही था, फ़िर भी उसने जान्सी पर हमला बोल दिया. वह बेचारी चुपचाप अपनी लोहे की खाट पर पड़ी रहती और शीशे की खिड़की में से सामने के ईंटों के मकान की कोरी दीवार को देखा करती.
एक दिन उसका इलाज करने वाले बूढ़े डॉक्टर ने, थर्मामीटर झटकते हुए, सू को बाहर के बरामदे में बुलाकर कहा,‘उसके जीने की संभावना रूपए में दो आना है और, वह भी तब, यदि उसकी इच्छा-शक्ति बनी रहे. जब लोगों के मन में जीने की इच्छा ही नहीं रहती और वे मौत का स्वागत करने को तैयार हो जाते हैं तो उनका इलाज धन्वंतरि भी नहीं कर सकते. इस लड़की के दिमाग़ पर भूत सवार हो गया है कि वह अब अच्छी नहीं होगी. क्या उसके मन पर कोई बोझ है?’
सू बोली,‘और तो कुछ नहीं, पर किसी रोज नेपल्स की खाड़ी का चित्र बनाने की उसकी प्रबल आकांक्षा है.’
‘चित्र? हूं! मैं पूछ रहा था, कि उसके जीवन में कोई ऐसा आकर्षण भी है कि जिससे जीने की इच्छा तीव्र हो? जैसे कोई नौजवान!’
बिच्छू के डंक की-सी चुभती आवाज़ में सू बोली,‘नौजवान? पुरुष और प्रेम-छोड़ो भी-नहीं डॉक्टर साहब, ऐसी कोई बात नहीं है.’
डॉक्टर बोला,‘सारी बुराई की जड़ यही है. डॉक्टरी विद्या के अनुसार जो कुछ मुझसे मुमक़िन है, उसे किए बिना नहीं छोडूंगा. पर जब कोई मरीज़ अपनी अर्थी के साथ चलने वालों की संख्या गिनने लगा जाता है तब दवाइयों की शाक्ति आधी रह जाती है. अगर तुम उसके जीवन में कोई आकर्षण पैदा कर सको, जिससे वह अगली सर्दियों में प्रचलित होने वाले कपड़ों के फ़ैशन के बारे में चर्चा करने लगे, तो उसके जीने की संभावना कम से कम दूनी हो जाएगी.’
डॉक्टर के जाने के बाद सू अपने कमरे में गई और उसने रो-रो कर कई रूमाल निचोड़ने काबिल कर दिए. कुछ देर बाद, चित्रकारी का सामान लेकर, वह सीटी बजाती हुई जान्सी के कमरे में पहुंची. जान्सी, चद्दर ओढ़े, चुपचाप, बिना हिले-डुले, खिड़की की ओर देखती पड़ी थी. उसे सोई हुई जान कर उसने सीटी बजाना बन्द कर दिया.
तख्ते पर कागज लगाकर वह किसी पत्रिका की कहानी के लिए, कलम स्याही से एक तस्वीर बनाने बैठी. नवोदित कलाकारों को ‘कला’ की मंज़िल तक पहुंचने केलिए, पत्रिकाओं के लिए तस्वीरें बनानी ही पड़ती है. जैसे साहित्य की मंज़िल तक पहुंचने के लिए, नवोदित लेखकों को पत्रिकाओं की कहानियां लिखनी पड़ती है.
ज्यों ही सू, एक घुड़सवार जैसा ब्रीजस पहने, एक आंख का चश्मा लगाये, किसी इडाहो के गड़रिये के चित्र की रेखाएं बनाने लगी कि उसे एक धीमी आवाज़ अनेक बार दुहराती-सी सुनाई दी. वह शीघ्र ही बीमार के बिस्तरे के पास गई.
जान्सी की आंखें खुली थीं. वह खिड़की से बाहर देख रही थी और कुछ गिनती बोल रही थी. लेकिन वह उल्टा जप कर रही थी. वह बोली,‘बारह’ फ़िर कुछ देर बाद ‘ग्यारह’ फ़िर ‘दस’ और ‘नौ’ और तब एक साथ ‘आठ’ और ‘सात’.
सू ने उत्कण्ठा से, खिड़की के बाहर नज़र डाली. वहां गिनने लायक क्या था. एक खुला, बंजर चौक या बीस फ़ीट दूर ईंटों के मकान की कोरी दीवार!
एक पुरानी, ऐंठी हुई, जड़े निकली हुए सदाबहार की बेल दीवार की आधी ऊंचाई तक चढ़ी हुई थी. शिशिर की ठंडी सांसों ने उसके शरीर की पत्तियां तोड़ ली थीं और उसकी कंकाल शाखाएं, एकदम उघाड़ी, उन टूटी-फ़ूटी ईटों से लटक रही थीं.
सू ने पूछा,‘क्या है जानी?’
अत्यन्त धीमे स्वरों में जान्सी बोली,‘छ:! अब वे जल्दी-जल्दी गिर रही हैं. तीन दिन पहले वहां क़रीब एक सौ था. उन्हें गिनते-गिनते सिर दुखने लगाता था. वह, एक और गिरी. अब बची सिर्फ़ पांच.’
‘पांच क्या? जानी, पांच क्या? अपनी सू को तो बता!’
‘पत्तियां. उस बेल की पत्तियां. जिस वक्त आख़िरी पत्ती गिरेगी, मैं भी चली जाऊंगी. मुझे तीन दिन से इसका पता है. क्या डॉक्टर ने तुम्हें नहीं बताया?’
अत्यन्त तिरस्कार के साथ सू ने शिकायत की,‘ओह! इतनी बेवकूफ़ तो कहीं नही देखी. तेरे ठीक होने का इन पत्तियों से क्या सम्बन्ध है? तू उस बैल से प्यार किया करती थी-क्यों इसलिए? बदमाश! अपनी बेवकूफ़ी बन्द कर! अभी सुबह ही तो डॉक्टर ने बताया था कि तेरे जल्दी से ठीक होने की संभावना-ठीक किन शब्दो में कहां था-हां, कहा था, संभावना रुपए में चौदह आना है और न्यूयॉर्क में, जब हम किसी टैक्सी में बैठते हैं या किसी नयी इमारत के पास से गुज़रते हैं, तब भी जीने की संभावना इससे आधिक नहीं रहती. अब थोड़ा शोरबा पीने की कोशिश कर और अपनी सू को तस्वीर बनाने दे, ताकि उसे सम्पादक महोदय के हाथों बेच कर वह अपने बीमार बच्ची के लिए थोड़ी दवा-दारू और अपने ख़ुद के पेट के लिए कुछ रोटी-पानी ला सके.’
अपनी आंखों को खिड़की के बाहर टिकाये जान्सी बोली,‘तुम्हें अब मेरे लिए शराब लाने की ज़रूरत नहीं. वह, एक और गिरी. नहीं मुझे शोरबे की भी ज़रूरत नहीं. अब सिर्फ़ चार रह गईं. अन्धेरा होने से पहिले उस आख़िरी पत्ती को गिरते हुए देख लूं-बस. फ़िर मैं भी चली जाऊंगी.’
सू उस पर झुकती हुई बोली,’प्यारी जान्सी! तुझे वादा करना होगा कि तू आंखें बन्द रखेगी और जब तक मैं काम करती हूं, खिड़की से बाहर नहीं देखेगी. कल तक ये तस्वीर पहुंचा देनी है. मुझे रौशनी की ज़रूरत है, वर्ना अभी खिड़की बन्द कर देती.’
जान्सी ने रूखाई से पूछा,‘क्या तुम दूसरे कमरे में बैठकर तस्वीरें नहीं बन सकती?’
सू ने कहा,‘मुझे तेरे पास ही रहना चाहिए. इसके अलावा, मैं तुझे उस बेल की तरफ़ देखने देना नहीं चाहती.’
किसी गिरी हुई मूर्ति की तरह निश्चल और सफ़ेद, अपनी आंखें बन्द करती हुई, जान्सी बोली,‘काम ख़त्म होते ही मुझे बोल देना, क्योंकि मैं उस आख़िरी पत्ती को गिरते हुए देखना चाहती हूं. अब अपनी हर पकड़ को ढीला छोड़ना चाहती हूं और उन बिचारी थकी हुई पत्तियों की तरह तैरती हुई नीचे-नीचे-नीचे चली जाना चाहती हूं.’
सू ने कहा,‘तू सोने की कोशिश कर. मैं ख़ान में मज़दूर का मॉडल बनने के लिए उस बेहरमैन को बुला लाती हूं. अभी, एक मिनट में आई. जब तक मैं नहीं लौटूं, तू हिलना मत!’
बूढ़ा बेहरमैन उनके नीचे ही एक कमरे में रहता था. वह भी चित्रकार था. उसकी उम्र साठ साल से भी अधिक थी. उसकी दाढ़ी, मायकल एंजेलो की तस्वीर के मोजेस की दाढ़ी की तरह, किसी बदशक्ल बंदर के सिर से किसी भूत के शरीर तक लहराती मालूम पड़ती थी. बेरहमैम एक असफल कलाकार था. चालीस वर्षो से वह साधना कर रहा था, लेकिन अभी तक अपनी कला के चरण भी नहीं छू सका था. वह हर तस्वीर को बनाते समय यही सोचता कि यह उसकी उत्कृष्ट कृति होगी, पर कभी भी वैसी बना नहीं पाता. इधर कई वर्षों से उसने व्यावसायिक या विज्ञापन-चित्र बनाने के सिवाय, यह धन्धा ही छोड़ दिया था. उन नवयुवक कलाकारों के लिए मॉडल बनकर, जो किसी पेशेवर मॉडल की फ़ीस नहीं चुका सकते थे, वह आजकल अपना पेट भरता था. वह ज़रूरत से ज़्यादा शराब पी लेता और अपनी उस उत्कृष्ट कृति के विषय में बकवास करता जिसके सपने वह संजोता था. वैसे वह बड़ा खूंखार बूढ़ा था, जो नम्र आदमियों की ज़ोरदार मज़ाक उड़ाता और अपने को इन दोनों जवान कलाकारों का पहरेदार कुत्ता समझा करता.
सू ने बेहरमैन को अपने अंधेरे अड्डे में पड़ा पाया. उसमें से बेर की गुठलियों-सी गन्ध आ रही थी. एक कोने में वह कोरा कनवास खड़ा था, जो उसकी उत्कृष्ट कलाकृति की पहिली रेखा का अंकन पाने की, पच्चीस वर्षो से बाट जोह रहा था. उसने बूढ़े को बताया कि कैसे जान्सी उन पत्तों के साथ अपने पत्ते जैसे कोमल शरीर का सम्बन्ध जोड़ कर, उनके समान बह जाने की भयभीत कल्पना करती है और सोचती है कि उसकी पकड़ संसार पर ढीली हो जाएगी.
बूढ़े बेहरमैन ने इन मूर्ख कल्पनाओं पर ग़ुस्से से आंखें निकाल कर अपना तिरस्कार व्यक्त किया.
वह बोला,‘क्या कहा? क्या अभी तक दुनिया में ऐसे मूर्ख भी हैं, जो सिर्फ़ इसलिए कि एक उखड़ी हुई बेल से पत्ते झड़ रहे हैं, अपने मरने की कल्पना कर लेते है? मैंने तो ऐसा कहीं नहीं सुना! मैं तुम्हारे जैसे बेवकूफ़ पागलों के लिए कभी मॉडल नहीं बन सकता. तुमने उसके दिमाग़ में इस बात को घुसने ही कैसे दिया? अरे, बिचारी जान्सी!’
सू ने कहा,‘वह बीमारी से बहुत कमज़ोर हो गई है और बुख़ार के कारण ही उसके दिमाग़ में ऐसी अजीब-अजीब कलुषित कल्पनाएं जाग उठी हैं. अच्छा; बूढ़े बेहरमैन, तुम अगर मेरे लिए मॉडल नहीं बनना चाहते तो मत बनो. हो तो आख़िर उल्लू के पट्ठे ही!’
बेरहमैन चिल्लाया,‘तू तो लड़की की लड़की ही रही! किसने कहा कि मैं मॉडल नहीं बनूंगा? चल, मैं तेरे साथ चलता हूं. आधे घण्टे से यही तो झींक रहा हूं कि भई चलता हूं-चलता हूं! लेकिन एक बात कहूं- यह जगह जान्सी जैसी अच्छी लड़की के मरने लायक नहीं है. किसी दिन जब मै अपनी उत्कृष्ट कलाकृति बना लूंगा तब हम सब यहां से चल चलेंगे. समझी? हां!’
जब वे लोग ऊपर पहुंचे तो जान्सी सो रही थी. सू ने खिड़कियों के पर्दे गिरा दिए और बेहरमैन को दूसरे कमरे में ले गई. वहां से उन्होंने भयभीत द्रष्टि से खिड़की के बाहर उस बेल की ओर देखा. फ़िर उन्होंने, बिना एक भी शब्द बोले, एक-दूसरे की ओर देखा. अपने साथ बर्फ़ लिए हुए ठंडी बरसात लगातार गिर रही थी. एक केटली को उल्टा करके उस पर नीली कमीज में बेहरमैन को बिठाया गया जिससे चट्टान पर बैठे हुए, किसी खान के मज़दूर का मॉडल बन जाए.
एक घण्टे की नींद के बाद जब दूसरे दिन सुबह, सू की आंख खुली तो उसने देखा कि जान्सी जड़ होकर, खिड़की के हरे पर्दे की ओर आंखें फाड़ कर देख रही है. सुरसुराहट के स्वर में उसने आदेश दिया,‘पर्दे उठा दे, मैं देखना चाहती हूं.’
विवश होकर सू को आज्ञा माननी पड़ी.
लेकिन यह क्या! रात भर वर्षा, आंधी तूफ़ान और बर्फ़ गिरने पर भी ईंटों की दीवार से लगी हुई, उस बेल में एक पत्ती थी. अपने डंठल के पास कुछ गहरी हरी, लेकिन अपने किनारों के आसपास थकावट और और झड़ने की आशंका लिए पीली-पीली, वह पत्ती ज़मीन से कोई बीस फ़ुट ऊंची अभी तक अपनी डाली से लटक रही थी.
जान्सी ने कहा,‘यही आख़िरी है. मैंने सोचा था कि यह रात में ज़रूर ही गिर जाएगी. मैंने तूफ़ान की आवाज़ भी सुनी. खैर, कोई बात नहीं यह आज गिर जाएगी और उसी समय मैं भी मर जाऊंगी.’
तकिए पर अपना थका हुआ चेहरा झुका कर सू बोली,‘क्या कहती है पागल! अपना नहीं तो कम से कम मेरा ख़्याल कर! मैं क्या करूंगी?’
पर जान्सी ने कोई जवाब नहीं दिया. इस दुनिया की सबसे अकेली वस्तु यह ‘आत्मा’ है, जब वह अपनी रहस्यमयी लम्बी यात्रा पर जाने की तैयारी में होती है. ज्यों-त्यों संसार और मित्रता से बांधने वाले उसके बन्धन ढ़ीले पड़ते गये त्यों-त्यों उसकी कल्पना ने उसे अधिक ज़ोर से जकड़ना शुरू कर दिया.
दिन बीत गया और संध्या के क्षीण प्रकाश में भी, दीवार से लगी हुई बेल से लटका हुआ वह पत्ता, उन्हें दिखाई देता रहा. पर तभी रात पड़ने के साथ-साथ, उत्तरी हवाएं फ़िर चलने लगीं और वर्षा की झड़ियां खिड़की से टकरा कर छज्जे पर बह आईं.
रोशनी होते ही निर्दयी जान्सी ने आदेश दिया कि पर्दे उठा दिए जाएं.
बेल में पत्ती अब तक मौजूद थी.
जान्सी बहुत देर तक उसी को एकटक देखती रही. उसने सू को पुकारा, जो चौके में स्टोव पर मुर्गी का शोरबा बना रही थी. जान्सी बोली,‘सूडी, मैं बहुत ही ख़राब लड़की हूं. क़ुदरत की किसी शक्ति ने, उस अन्तिम पत्ती को वहीं रोक कर, मुझे यह बता दिया कि मैं कितनी दुष्ट हूं. इस तरह मरना तो पाप है. ला, मुझे थोड़ा-सा शोरबा दे और कुछ दूध में ज़हर मिलाकर ला दे. पर नहीं, उससे पहले मुझे ज़रा शीशा दे और मेरे सिरहाने कुछ तकिए लगा, ताकि मैं बैठे-बैठे तुझे खाना बनाते हुए देख सकूं.’
कोई एक घंण्टे बाद वह बोली,‘सूडी, मुझे लगता है कि मैं कभी न कभी नेपल्स की खाड़ी का चित्र ज़रूर बनाऊंगी.’
शाम को डॉक्टर साहब फ़िर आए सू, कुछ बहाना बनाकर, उनसे बाहर जाकर मिली. सू दे दुर्बल कांपते हाथ को अपने हाथों में लेकर डॉक्टर साहब बोले,‘अब संभावना आठ आना मानी जा सकती है. अगर परिचर्या अच्छी हुई तो तुम जीत जाओगी और अब मैं, नीचे की मंज़िल पर, एक-दूसरे मरीज़ को देखने जा रहा हूं. क्या नाम है उसका-बेहरमैन! शायद कोई कलाकार है-निमोनिया हो गया है. अत्यन्त दुर्बल और बुरा आदमी है और झपट ज़ोर की लगी है. बचने की कोई संभावना नहीं. आज उसे अस्पताल भिजवां दूंगा. वहां आराम ज़्यादा मिलेगा.’
दूसरे दिन डॉक्टर ने सू से कहा,‘जान्सी, अब ख़तरे से बाहर है. तुम्हारी जीत हुई. अब तो सिर्फ़ पथ्य और देखभाल की ज़रूरत है.’
उस दिन शाम को सू, जान्सी के पलंग के पास आकर बैठ गई. वह नीली ऊन का एक बेकार-सा गुलबन्द, निश्चिन्त होकर बुन रही थी. उसने तकिए के उस ओर से, अपनी बांह, सू के गले में डाल दी.
सू बोली,‘मेरी भोली बिल्ली, तुझसे एक बात कहनी है. आज सुबह अस्पताल में, मिस्टर बेहरमैन की निमोनिया से मृत्यु हो गई. वह सिर्फ़ दो रोज़ बीमार रहा. परसों सुबह ही चौकीदार ने उसे अपने कमरे में दर्द से तड़पता पाया था. उसके कपड़े-यहां तक कि जूते भी पूरी तरह से भीगे हुए और बर्फ़ के समान ठंडे हो रहे थे. कोई नहीं जानता कि ऐसी भयानक रात में वह कहां गया था. लेकिन उसके कमरे से एक जलती हुई लालटेन, एक नसैनी, दो-चार ब्रश और फ़लक पर कुछ हरा और पीला रंग मिलाया हुआ मिला. ज़रा खिड़की से बाहर तो देख-दीवार के पास की उस अन्तिम पत्ती को. क्या तुझे कभी आश्चर्य नहीं हुआ कि इतनी आंधी और तूफ़ान में भी वह पत्ती हिलती क्यों नहीं? प्यारी सखी, यही बेहरमैन की उत्कृष्ट कलाकृति थी जिस रात को अन्तिम पत्ती गिरी उसी रात उसने उसका निर्माण किया था.’

Illustration: Pinterest

इन्हें भीपढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#15 पहला सावन (लेखक: पुष्पेन्द्र कुमार पटेल)

फ़िक्शन अफ़लातून#15 पहला सावन (लेखक: पुष्पेन्द्र कुमार पटेल)

March 27, 2023
Naresh-Chandrakar_Poem

नए बन रहे तानाशाह: नरेश चन्द्रकर की कविता

March 27, 2023
मिलिए इक कर्मठ चौकीदार से

मिलिए इक कर्मठ चौकीदार से

March 26, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#14 मैं हार गई (लेखिका: मीता जोशी)

फ़िक्शन अफ़लातून#14 मैं हार गई (लेखिका: मीता जोशी)

March 22, 2023
Tags: Famous Indian WriterFamous writers storyHindi KahaniHindi StoryHindi writersIndian WritersKahaniO HenryO Henry ki kahaniO Henry ki kahani The Last LeafO Henry storiesShort Story The Last leafThe Last LeafThe Last leaf by O Henry in HindiThe Last Leaf Summaryओ हेनरीओ हेनरी की कहानियांओ हेनरी की कहानीओ हेनरी की कहानी द लास्ट लीफ़कहानीद लास्ट लीफ़मशहूर लेखकों की कहानीहिंदी कहानीहिंदी के लेखकहिंदी स्टोरी
टीम अफ़लातून

टीम अफ़लातून

हिंदी में स्तरीय और सामयिक आलेखों को हम आपके लिए संजो रहे हैं, ताकि आप अपनी भाषा में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी नई बातों को नए नज़रिए से जान और समझ सकें. इस काम में हमें सहयोग करने के लिए डोनेट करें.

Related Posts

Fiction-Aflatoon
ख़बरें

फ़िक्शन अफ़लातून प्रतियोगिता: कहानी भेजने की तारीख़ में बदलाव नोट करें

March 21, 2023
सशक्तिकरण के लिए महिलाओं और उनके पक्षधरों को अपने संघर्ष ध्यान से चुनने होंगे
ज़रूर पढ़ें

सशक्तिकरण के लिए महिलाओं और उनके पक्षधरों को अपने संघर्ष ध्यान से चुनने होंगे

March 21, 2023
फ़िक्शन अफ़लातून#13 लेकिन कैसे कह दूं इंतज़ार नहीं… (लेखिका: पद्मा अग्रवाल)
ज़रूर पढ़ें

फ़िक्शन अफ़लातून#13 लेकिन कैसे कह दूं इंतज़ार नहीं… (लेखिका: पद्मा अग्रवाल)

March 20, 2023
Facebook Twitter Instagram Youtube
ओए अफ़लातून

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • टीम अफ़लातून

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist