कमोडोर सी उदय भास्कर के 70वें जन्मदिवस पर उनकी बेटी, अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने उन्हें एक भावनाओं से भीगा पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कामना की है कि हर बेटी को उनके पिता जैसे पिता मिलें, क्योंकि हर लड़की को उड़ान भरने के लिए ऐसे ही पिता की दरकार है.
स्वरा ने अपने पत्र की शुरुआत करते हुए लिखा है कि चूंकि वे जानती हैं कि उनके पिता को जन्मदिन पर दिए जाने वाले तोहफ़े पसंद नहीं है, जबकि उन्हें तोहफ़े देना पसंद है इसलिए उन्होंने संतुलन साधने की कोशिश की है और वे अपने पिता को बतौर गिफ़्ट यह बताना चाहती हैं कि अपनी बेटी के नज़रिए से वे कैसे पिता हैं.
उन्होंने आगे लिखा है कि आप हमेशा से ही बहुत असाधारण व्यक्ति रहे हैं और निश्चित रूप से असाधारण पिता भी. इसकी वजह यह है कि आपने हमेशा बनी बनाई परिपाटियों का विरोध किया है. आज तक आप, जो एक तेलगु बोलने वाले इंसान हैं; स्नान के तुरंत बाद पंजाबी में कहते हैं, ‘मेनू ते माफ़ कर दे रब्बा!’ या फिर कहते हैं,‘‘हे अल्लाह, मेरे मालिक रहम करो!’ यह सब आपकी रोज़ाना की हिंदू पूजा के बीच ही होता है. मैं और भाई बचपन से असमंजस में थे और लंबे समय तक हमें यह तथ्य पता ही नहीं था कि रब्बा, अल्लाह और वेंकटेश्वर तीन अलग-अलग धर्मों में होते हैं.
उन्होंने आगे लिखा है, आप एक भारतीय लड़की के लिए तो असाधारण पिता ही हैं. मुझे समय समय पर आपकी दी गई सलाहें याद हैं. जब मैं छोटी थी और सांगली अपार्टमेंट्स में बड़े बच्चे मुझे चिढ़ाते थे तो आपने मुझसे कहा था,‘‘यदि कोई तुम्हें चिढ़ता है तो उसकी जमकर धुनाई कर दो.’’ इन शब्दों ने उन दिनों मुझमें ग़ज़ब का आत्मविश्वास जगाया था. आपने मुझे और भाई को हमेशा कहा,‘‘ज़िंदगी में कोई ऐसी चीज़ कभी मत करना, जो तुम नहीं करना चाहते हो.’’ आपने मुझे हमेशा उन जालों से बचने की सलाह दी, जिनमें मैं यह सोच कर फंस सकती थी कि ‘लेकिन मुझे यह तो करना ही चाहिए,’ केवल इसलिए कि लोग ऐसा चाहते हैं कि मै ऐसा करूं. बल्कि आपने मुझे सिखाया कि मुझे ख़ुद तय करना चाहिए कि मैं क्या चाहती हूं. हमें बड़ा करते समय आपने अपनी बातों से हमें सशक्त बनाया और वयस्क होने पर मैं इस बात को महसूस कर सकी कि किसी लड़की और लड़के को पारंपरिक तरीके़ से पालने के दौरान लोग उन्हें कितनी अलग-अलग वैल्यूज़ सिखाते हैं. पारंपरिक तौर पर हम लड़कियों को बात मानना (दूसरों की), फ़र्ज़ निभाना (दूसरों के लिए), ज़िम्मेदारी उठाना (दूसरों की), सेवा करना और ध्यान रखना (दूसरों का), नि:स्वार्थता (बिल्कुल) और ग्लानि (हम जो भी इच्छा रखते हों, उसके लिए) जैसी वैल्यूज़ देते हैं. और फिर मुझे महसूस होता है कि 90’ के दशक में भी आप कितने प्रगतिशील पिता थे, जिन्होंने मुझे मेरी ‘चाहत’ पर ध्यान देना सिखाया.
अपने इस पत्र के समापन में स्वरा ने अपने पिता को जन्मदिन की मुबारकबाद देते हुए लिखा है कि आपकी बेटी होना मेरे लिए सबसे अच्छा तोहफ़ा है और मुझे लगता है कि हर लड़की को आपके जैसा पिता और आपके व मां के जैसे माता-पिता मिलें, क्योंकि किसी भी लड़की को उड़ान भरने के लिए ऐसे ही अभिभावकों की दरकार होती है.