ऐ सबा लौट के किस शहर से तू आती है?: कैफ़ी आज़मी की कविता
बदली हुई हवा से कुछ असहज कर देनेवाले सवाल पूछती है कैफ़ी आज़मी की कविता ‘ऐ सबा लौट के किस ...
बदली हुई हवा से कुछ असहज कर देनेवाले सवाल पूछती है कैफ़ी आज़मी की कविता ‘ऐ सबा लौट के किस ...
क़ैसर-उल ज़ाफ़री की यह शायरी प्रतीकों और विरोधाभासों के साथ ख़ूबसूरती से खेलते हुए सीधे दिल में उतर जाती है. ...
देश के मेहनतकश वर्ग और गांधी का नाम लेकर नेतागिरी करनेवालों की ज़िंदगी में कितना फ़र्क़ है, अदम गोंडवी यह ...
वर्ष 1964 में आई फ़िल्म हक़ीक़त का यह देशभक्ति गीत कैफ़ी आज़मी द्वारा लिखा गया था. देश के लिए मर ...
बच्चे के लिए मां का कोई एक रूप नहीं होता. वह मां को हर रूप में देख सकता है. जैसे ...
उर्दू शायरी प्रेम की विसंगतियों को एक कसक के साथ जताने के लिए जाती है. इसी परंपरा का पालन कर ...
पाकिस्तानी शायर तहज़ीब हाफ़ी की ग़ज़ल ‘पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊंगा’ ख़ुद से किए जानेवाले वादों की फ़ेहरिस्त है. ...
पत्रकार-लेखक-कवि कैलाश सेंगर उम्दा ग़ज़लकार थे. उनकी ग़ज़लों के शेर आम आदमी के दर्द को बयां करते हैं. उनका लेखन ...
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां लिखनेवाले अल्लामा इक़बाल की शायरी में गहरे विचार, उपमाओं और रूपकों की कमी नहीं होती ...
‘जब उस की तस्वीर बनाया करता था’ पाकिस्तान के मशहूर शायर तहज़ीब हाफ़ी की ग़ज़ल है. तहज़ीब अपनी प्रेम शायरियों ...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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