‘महिला किसान’ इस श्रृंखला के पहले लेख में सामाजिक चिंतक, लेखक और दयाल सिंह कॉलेज, करनाल के पूर्व प्राचार्य डॉ रामजीलाल ने विस्तृत तरीक़े से बताया कि कैसे महिलाएं भारतीय कृषि क्षेत्र के रीढ़ की हड्डी हैं. बावजूद इसके महिला किसान अपने हिस्से के सम्मान और पहचान से महरूम हैं. इस लेख में जानें, कैसे कृषि का नारीवादी सिद्धांत महिला किसानों के अच्छे दिन ला सकता है.
कृषि के नारीवादी सिद्धांत का अर्थ
कृषि के नारीवादी सिद्धांत से हमारा अभिप्राय है कृषि क्षेत्र से संबंधित किसान महिलाओं एवं कृषक श्रमिक महिलाओं के जीवन के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, राजनीतिक व कृषि संबंधित कार्यों-कृषि कार्यों, पशुपालन कार्यों व घरेलू कार्यों से संबंधित विषयों का व्यापक अध्ययन करना तथा सुझाव देना, ताकि वे एक सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकें. इसके अतिरिक्त उनको पुरुषों के समकक्ष समानता व स्वतंत्रता के अधिकार वास्तविक रूप में प्राप्त हों. महिलाओं को भूमि का अधिकार प्राप्त हों ताकि वह अदृश्य से दृश्य किसान बन सकें और गैर कृषक श्रमिक महिलाओं को समान काम के लिए, समान वेतन प्राप्त हो. यह सिद्धांत इस बात की वकालत भी करता है कि कृषि से जुड़ी महिलाओं को भूख, कुपोषण और बेरोज़गारी से मुक्ति प्राप्त हो तथा उनका किसी भी प्रकार का कोई शोषण न हो.
कृषि के नारीवादी सिद्धांत की मुख्य विशेषताएं
नारीवादी सिद्धांत की मुख्य विशेषताओं को उन बिंदुओं से समझते हैं, जिनपर यह आधारित है.
पहला: यह सिद्धांत कृषि क्षेत्र से संबंधित महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का अध्ययन करता है.
दूसरा: यह सिद्धांत महिला किसानों को अदृश्य किसानों से दृश्य किसानों में बदलने पर ज़ोर देता है.
तीसरा: यह ज़मीन समेत पैतृक संपत्ति और ससुराल में पति की संपत्ति में समान अधिकार की वक़ालत करता है.
चौथा: इस सिद्धांत के अनुसार समस्त भारत में उपलब्ध अतिरेक भूमि का वितरण करके कृषि श्रमिक महिलाओं को मालिकाना अधिकार दिया जाना चाहिए.
पांचवां: भारत में भौगोलिक और सामाजिक मापदंडों में काफ़ी भिन्नता है. इन अलग-अलग गांवों के कारण यहां की संस्कृति, रहन-सहन, पहनावा, खान-पान आदि के ख़र्च में अंतर पाया जाता है. परिणामस्वरूप इनकी आय में भी अंतर पाया जाता है. ऐसी स्थिति में सरकार को ग़रीबी की रेखाएं भी खींचनी होंगी, उदाहरण के लिए ग़रीबी की दृष्टि से सबसे ग़रीब, सर्वाधिक वंचित, कृषि श्रमिक महिलाओं में कुपोषित तथा विकास के आधार पर नारीवादी सिद्धांत की समग्र आवश्यकता पर बल दिया गया है.
छठां: इस सिद्धांत के अनुसार सर्वाधिक योजनाबद्ध तरीक़े से आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी पुरुषों और आदिवासी महिलाओं के अच्छे दिन लाने हेतु जल, जंगल, और ज़मीन पर आदिवासी अधिनियमों के अंतर्गत उनके अधिकारों को प्रदान किया जाए तथा उनके प्राकृतिक संसाधनों का विकास के नाम पर दोहन बंद करने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे उनके शोषण को बढ़ावा मिला है और हिंसात्मक घटनाओं में भी वृद्धि हुई है.
आदिवासी महिलाएं शोषित हो रही हैं. प्रथम आदिवासी कबीलों में पारस्परिक संघर्ष के कारण शोषण. द्वितीय, अपने ही के कबीलों के पुरुषों द्वारा शोषण. तृतीय, आतंकवादी एवं अतिवादी संगठनों के द्वारा शोषण. चतुर्थ, पुलिस और पैरामिलिट्री संगठनों द्वारा भी हिंसा के रोकने के नाम पर आदिवासी महिलाओं के शोषण के उदाहरण मिलते हैं. पंचम, इस सिद्धांत के अनुसार यह बंद होना चाहिए. स्थानीय स्तर पर स्थानीय लोगों के द्वारा, स्थानीय लोगों के लिए, नीतियों का निर्माण किया जाए और केंद्रीय तथा प्रांतीय सरकारों के द्वारा उनको वित्तीय सहायता प्रदान की जाए.
सातवां: ग्रामीण क्षेत्रों से युवाओं के पलायन को रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसरों को बढ़ाया जाए और सड़क, पानी, बिजली, सिंचाई ,स्वास्थ्य व शिक्षा जैसी सेवाओं को शहरी तर्ज के आधार पर गांव में उपलब्ध कराया जाए, ताकि युवा वर्ग अपने परिवार के साथ रहे. और साथ-साथ महिलाओं के लिए लघु उद्योग-धंधे पर भी बल दिया जाए ताकि उनकी आय में वृद्धि हो सके. जीडीपी का मूल्यांकन इस समय पाश्चात्य देशों के आधार पर किया जाता है. उसके स्थान पर नए आधार पर जीडीपी का मूल्यांकन किया जाए, ताकि उसमें महिलाओं के द्वारा किए गए अवैतनिक कार्यों का मूल्यांकन करके जोड़ा जाए़.
कृषि भारतीय आर्थिक व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है और किसान महिलाएं तथा कृषक श्रमिक महिलाएं कृषि की रीढ़ की हड्डी हैं. यदि महिलाएं संपन्न होगी तो भारतीय अर्थव्यवस्था का अद्वितीय एवं अभूतपूर्व विकास होगा. परिणाम स्वरूप भारत आर्थिक दृष्टि से एक संपन्न देश होगा.
संक्षेप में किसान महिलाओं और कृषि श्रमिक महिलाओं का विकास, उनके कल्याण व गरिमा का एक समग्र सिद्धांत है.