दुनिया पितृसत्तात्मक है, तो ज़ाहिर है कि दुनिया की तमाम इमारतों और संरचनाओं की वास्तुकला में इसकी छाप दिखाई देगी ही, लेकिन क्या आपने कभी धार्मिक स्थलों को ग़ौर से देखा है? धार्मिक वास्तुकला की बात करें तो अधिकांश पूजा स्थल महिलाओं की शारीरिक संरचना की नक़ल पर बने हैं. लेकिन क्यों? यहां हमने इस बात को जानने की कोशिश की है
जहां चर्च के नेताओं को सेक्स-फ़ोबिक और महिला-द्वेषी के रूप में जाना जाता है, वहीं चर्च की वास्तुकला की बात करें तो यह निश्चिच रूप से ऐसी नहीं है.
अगली बार, जब कभी आप चर्च जाएं (ख़ासतौर पर कैथेड्रल) अपने आसपास ग़ौर से देखें और आप पाएंगे कि इसके इंटीरियर और महिलाओं की शारीरिक संरचना में काफ़ी समानता है.
जिन लोगों ने स्कूल में महिला प्रजनन प्रणाली की क्लास में अच्छी तरह से ध्यान दिया होगा उनके मन में गाय के सिर जैसी दिखने वाली वह छवि निश्चित रूप से अंकित होगी, ठीक उसी तरह हम यहां देखेंगे कि एक बाहरी और एक आंतरिक प्रवेश द्वार है, लेबिया मेजोरा और लेबिया माइनोरा; वेदी की ओर जाने वाला एक केंद्रीय वजाइनल गलियारा; गर्भ या वेदी के दोनों ओर दो घुमावदार ओवरी जैसी संरचनाएं.
महिलाओं के जननांगों के आकार की वास्तुकला का निर्माण, पुरुष के जननांगों जैसी संरचना वाले वास्तुकला निर्माण से कहीं ज़्यादा मुश्क़िल है. यही वजह है कि ज़्यादातर इमारतें फ़ैलिक (पीनिस या शिश्न) आकार की बनाई जाती हैं, जिनमें फ़्लोर के ऊपर कॉलम के ऊपर फ़्लोर होते हैं.
तो क्या महिलाओं की शारीरिक संरचना को चर्च के डिज़ाइन में यह श्रद्धांजली जानते-बूझते दी गई है?
इस सवाल के जवाब को ढूंढ़ने पर पाया गया कि केवल चर्च ही नहीं, बल्कि धार्मिक वास्तुकला की बात करें तो अधिकांश पूजा स्थल महिलाओं की शारीरिक संरचना की नक़ल पर बने हैं. लेकिन क्यों? इसका मूल क्या है, इस बारे में कई लोगों को मालूम नहीं है और जिन्हें मालूम है, वो इसे कम करके आंकते हैं. इसकी बुनियाद प्राचीन हिंदू धार्मिक परंपराओं में है, जो हज़ारों वर्ष पहले से चली आ रही है.
हममें से कई लोग यह बात जानते हैं कि हिंदू मंदिरों में पवित्र लिंगम् और योनि का प्रतीक होता है. जहां लिंगम भगवान शिव का प्रतीक है, वहीं योनि, जिसका अर्थ गर्भ या महिला प्रजननांग से है, जो हिंदू देवी शक्ति का प्रतीक है. कई हिंदू मंदिरों में लिंगम को योनि के साथ ही दिखाया जाता है. जबकि हज़ारों वर्ष पूर्व योनि की पूजा उसे लिंगम से कहीं ज़्यादा शक्तिमान प्रतीक मानते हुए की जाती थी.
अंग्रेज़ी भाषा में ‘कंट’ (योनि) शब्द को आजकल आपत्तिजनक और अभिशाप सा माना जाता है. पश्चिमी देशों में तो इस शब्द के अवमूल्यन को लेकर एक महिला आंदोलन भी चला था, जिसमें बटन और टी-शर्ट्स पर ‘‘कंट पावर‘‘ का इस्तेमाल किया गया था. विडंबना यह है कि ‘‘कंट’’ शब्द का मूल ही नारीवादी है. इस शब्द को हिंदू देवी काली के ‘‘कुंड’’ या ‘‘कंटी’’ शीर्षक से लिया गया है, जिन्हें नारी शक्ति और यौनिकता का अवतार माना जाता है.
नारी की यौन और आध्यात्मिक श्रेष्ठता तंत्रवाद में देखी जा सकती है, जो एक धार्मिक व आध्यात्मिक आंदोलन है, जिसका उदय भारत में पांचवी शताब्दी में के अंत में हुआ था. तंत्र के केंद्रीय सिद्धांतों में एक सिद्धांत ऐसा है, जिसमें आध्यत्मिक पूर्णता किसी महिला की श्रेष्ठ यौनिक और भावनात्मक ऊर्जा के मिलन द्वारा पाई जाती है. इस बात पर इतना गहन भरोसा किया जाता था कि अब्राहमी धर्मों की महिलाओं को छोड़कर कई महिलाओं ने भी इसे अपनाया.
नोस्टिक परंपरा, जिसकी अब चर्च धर्म विरोधी कह कर निंदा करते हैं, के अनुसार, मैरी मैग्डैलेन, जिन्होंने पुनरुत्थान के बाद ईसा मसीह को सबसे पहले देखा था, वे उनके शिष्यों में ‘‘सबसे बुद्धिमान’’ थीं.
इस्मलाम में सूफ़ी परंपरा में माना जाता है कि फ़ना या फिर ईश्वर के साथ आध्यात्मकि मिलन केवल फ्रावाशी के द्वारा ही संभव है, जो एक महिला आत्मा है. यहूदी रहस्यवाद में शकीना, शक्ति के जैसी ही देवी हैं.
हालांकि इस बात की पूरी संभावना है कि इनमें से कोई भी सांस्कृतिक बात, पादरी, पुजारी या मौलवियों को पसंद न आए, लेकिन हो सकता है कि यह जानने के बाद कम से कम महिलाओं को अब अपने धार्मिक पूजा स्थलों में जाते समय पितृसत्तात्मकता के बीच भी धार्मिक संरचनाओं के भीतर कम विचलन महसूस हो.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट
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