जाने-माने आयुर्वेदिक चिकित्सक और लेखक डॉ अबरार मुल्तानी द्वारा देश के आयुष मंत्री श्रीपद नायक जी को लिखा गया यह खुला ख़त आज फ़ेसबुक पर चर्चा का केंद्र रहा. इसमें उन्होंने आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी जैसे चिकित्सा की पैथियों के आधुनिकीकरण ख़ासकर इंजीनियरिंग के इस्तेमाल की मांग की, ताकि भविष्य में कोरोना जैसी महामारी को हराने और लोगों की जान बचाने में चिकित्सा की इन पद्धियों का भी ज़रूरी योगदान मिल सके.
माननीय श्री श्रीपद नायक जी
केंद्रीय आयुष मंत्री, भारत सरकार
आदरणीय मंत्री महोदय, मेरी पहुंच आप तक नहीं है और ना मेरे पास आपका या आपके पीए का मोबाइल नंबर है. इसलिए मुझे फ़ेसबुक के माध्यम से आपको एक खुला पत्र लिखना पड़ रहा है.
महोदय, जैसा कि सर्वविदित है कि हमारा देश एक भीषण महामारी से लड़ रहा है और इस समय कोरोना का एक घातक वेरिएंट हमारे देश के लोगों का अनमोल जीवन लाखों की तादाद में निगल रहा है. आप नि:संदेह इस महामारी में दिन-रात जुटे होंगे लोगों की जान बचाने में. आप कई सारे नवाचार करना चाह रहे होंगे. मैं आपका ध्यान इस ओर ले जाना चाहता हूं कि, यह समय आयुष चिकित्सा के लिए एक टर्निंग पॉइंट है. जैसा कि हम जानते हैं कि आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी को इंजीनियरिंग का साथ नहीं मिला है या यह भी कह सकते हैं कि उन्होंने इसका साथ पाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. आयुष चिकित्सकों को इंजीनियरिंग के उपकरणों का इस्तेमाल करना नहीं सिखाया गया है. आधुनिक चिकित्सकों के पास जो सबसे प्रमुख हथियार है बीमारियों से लड़ने का वह है उनकी रोगी की मॉनिटरिंग की बेहतरीन क्षमता और दवाई को देने के विभिन्न रूट. वे यह सब इंजीनियरिंग की मदद से करते हैं. हम जानते हैं कि इंजीनियरिंग का उपयोग कोई भी चिकित्सा पद्धति का विशेषज्ञ मानव जीवन को बचाने के लिए कर सकता है.
अभी यदि देश के समस्त आयुर्वेद चिकित्सालयों और मेडिकल कॉलेज में केवल ऑक्सीजन बेड ही उपलब्ध करवा दिए जाएं और रोगियों को उनमें भर्ती किया जाए तथा उन्हें विभिन्न अच्छे स्टैंडर्ड की कंपनियों से निर्मित आयुर्वेदिक दवाएं दी जाएं तो परिणाम बहुत बेहतर हो सकते हैं. निःसंदेह आधुनिक चिकित्सक भी बहुत अच्छी सेवा कर रहे हैं लेकिन दुर्भाग्य से उनके पास भी इस वायरस की कोई दवाई अभी तक नहीं है. वे केवल जीवन रक्षक दवाएं दे रहे हैं जिसमें स्टेरॉइड्स आदि हैं, वहां उन्हें ऑक्सीजन उपलब्ध होती है और साथ में मॉनिटरिंग. यदि आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी (आयुष) दवाओं के साथ ऑक्सीजन और मॉनिटरिंग रोगी को उपलब्ध हो जाए तो उनके ठीक होने के अवसर काफ़ी ज़्यादा होंगे. क्योंकि आयुर्वेद बहुत ही सीधे और सरल सिद्धान्तों से चिकित्सा करता है-ऋतु, क्षेत्र (रोगी का शरीर), अम्बु और बीज (रोगाणु). इसमें हम यदि रोगी के क्षेत्र (शरीर) को शक्तिशाली बना दें तो उसपर कोई बीज यानी रोगाणु वृद्धि नहीं कर सकता. माना कि रोगाणु नया है लेकिन शरीर तो वही है. हम शरीर को शक्तिशाली बनाना सदियों से जानते ही हैं.
महोदय, आप इस आपदा में कुछ विशेष अधिकारों का प्रयोग करके उन आयुर्वेदिक इंजेक्शन को फिर से मानवता को बचाने के लिए शुरू कीजिए जिन्हें एलोपैथी लॉबी ने बंद करवा दिया था. वह इंजेक्शन बहुत ही शानदार परिणाम देते थे. मैंने अपनी प्रैक्टिस के शुरुआती दिनों में प्रतिष्ठित जे ऐंड जे डिशेन कम्पनी के कुछ इंजेक्शन अपने रोगियों को दिए थे और उनसे मुझे अद्भुत परिणाम मिले थे. लेकिन दुर्भाग्य से एक साल की प्रैक्टिस के बाद ही उन पर प्रतिबंध लगा दिया गया. महोदय यह समय किसी को लाभ देने का नहीं है. यह समय तो मानवता को बचाने का है.
महोदय, स्थितियों को देखते हुए आप आयुष पाठ्यक्रमों में आयुष विद्यार्थियों को टेक्नोलॉजी से ज़रूर रूबरू करवाएं. उन्हें रेडियोलॉजी के सभी टेस्ट लिखना और समझना सिखाएं, उन्हें विभिन्न मशीनों को चलाना सिखाएं, उन्हें अस्पताल प्रबंधन करना सिखाएं. आयुर्वेद दवाओं को विभिन्न रूट (आईवी, आईएम, पररेक्टल, नेज़ल, सबलिंगुआल आदि) से देने पर विस्तृत शोध हों. उनके भरोसेमंद क्लीनिकल डाटा कलेक्ट हों और उन्हें विभिन्न जनरल्स में प्रकाशित किया जाए.
महोदय, समय परिवर्तन का है, समय सेवा करने का है, समय मानवता को बचाने का है इसलिए जो भी सम्भव हो वह हमें उसके लिए करना चाहिए. हमारे पास अमृततुल्य अनगिनत औषधियां हैं, बस ज़रूरत है तो दुनिया को थोड़ा समझाने और भरोसा दिलाने की और फिर दुनिया हमें मानवता को बचाने वाले चिकित्सक मानने लगेगी.
धन्यवाद.
भवदीय
डॉ अबरार मुल्तानी
आयुर्वेद चिकित्सक, लेखक और भूतपूर्व आयुष चिकित्सा अधिकारी