जगत मिथ्या और ब्रह्म सत्य है या ब्रह्म मिथ्या और जगत सत्य. ये विवाद सदैव से चलता आया है और चलता रहेगा. किंतु इसका उत्तर जानने के लिए अगर हम पुराणो की ओर जाएं और उनका सिर्फ़ पठन ही नहीं मनन भी करें तो पाएंगे कि हमारे व्रत, उपवासों में कोई तो वैज्ञानिक आधार छिपा है, जिन्हें यदि हम समझ लें तो इन्हें बनाने के उद्देश्य से परिचित हो सकेंगे. हो सकता है हमारे द्वंद्वग्रस्त मन को पूजा की सही विधि भी मिल जाए और अपने स्तर पर कुछ सार्थक करने का संतोष भी. यहां नवरात्र के पांचवें दिन की आराध्य देवी स्कंदमाता की पूजा की प्रासंगिकता पर चर्चा कर रही हैं भावना प्रकाश.
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं की प्रार्थना पर तारकासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए अपने किशोर पुत्र कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने को देवी पार्वती ने जो रूप धारण किया या अवतार लिया, उसे स्कंदमता कहते हैं.
अब आते हैं इनकी पूजा के अर्थ और प्रासंगिकता की ओर.
आज के जीवन में अभिभावकों का सर्वप्रचलित वाक्य है- “पेरेंटिंग इस द टफ़ेस्ट जॉब”. आज के जीवन में बच्चों और उनसे भी ज़्यादा किशोरों के जीवन में भीतरी बाहरी राक्षसों के प्रकोप सीमातीत रूप से बढ़ गए हैं. मनोवैज्ञानिकों के लेखों के सारांश पर ध्यान दें तो पाएंगे कि किशोरों को ‘क्वालिटी टाइम’ देना तथा जो उनसे चाहते हैं, वो स्वयं करके दिखाते रहने का आदर्श रखना उनको जीवन संघर्ष में मज़बूत बनाए रखने के लिए अत्यावश्यक हैं. इसके अलावा दैनंदिन के टकराव में सख़्ती और प्यार का संतुलन बिठाना भी किसी मोर्चे पर डटने से कम नहीं. कितनी आज़ादी दें कि बच्चा कुंठित न हो. उसके व्यक्तित्व का विकास न रुक जाए. और कहां पर और उससे बढ़कर ये कि कैसे रोक लगाएं कि वो किसी अवांछित मुसीबत में न पड़ जाए. सामाजिक मर्यादा या नैतिकता के प्रतिकूल आचरण न करने लगे. ऐसी सीमा-रेखाएं खींचते रहने के लिए और हर बात पर लड़ने को उद्यत आक्रोशी किशोरों को साधने के लिए, अपनी बात मनवाने के लिए मांओं को सच में एक नया अवतार ही ग्रहण करना पड़ता है!
अगर हम चूक गए तो ‘इंटरनेट’ के राक्षस को उन्हें बरबाद करते पल नहीं लगेगा. और अगर इसे एक अस्त्र के रूप में प्रयोग करने का ‘प्रशिक्षण’ दे ले गए तो यही उन्हें अपनी पहचान दिलाने तथा स्वावलंबन का ‘युद्ध’ जीतने के लिए ब्रह्मास्त्र प्रमाणित हो सकता है.
आज के युग में किशोंरों के लिए स्पर्धा जितनी विकट होती जा रही है, चुनौतियां जितनी बढ़ती जा रही हैं, अभिभावकों के दायित्व तथा चिंताओं में भी उतनी ही तेज़ी से वृद्धि हो रही है. उनके मन को समझना, उनके मन को कुंठित या निराश होने से बचाना, उनकी रुचि और क्षमता का पता लगाना और उसी के अनुसार स्वावलंबन ढूंढ़ने की जद्दोजहद जीवन की सबसे कठिन चुनौती है; ये तो हम सभी मानते होंगे.
अब आते हैं स्कंदमाता की पूजा के तरीक़े और उनकी प्रासंगिकता पर. ये हर साधारण परिवार की कहानी है कि अभिभावकों को किशोर जीवन के ख़तरे के बारे में तब पता चलता है, जब उसके जीवन में ‘राक्षसों’ का प्रकोप बढ़ जाता है. ‘नेट’ लत में परिवर्तित हो जाता है, अंकों में गिरावट आने लगती है, विपरीत लिंगीय आकर्षण, क्रोध या ईर्ष्या जैसे स्वाभाविक भाव किन्हीं सामाजिक विसंगतियों के सम्पर्क में आकर किसी ख़तरनाक मोड़ पर खड़े दिखाई देते हैं. ऐसे में क्या साधारण रोकटोक, समझाने या डांटने से काम चलता है? काउंसलर्स की माने तो बच्चों को इन भीतरी बाहरी ‘राक्षसों’ से युद्ध करके उन्हें हराने के लिए जिस प्रतिभा की आवश्यकता होती है, वो प्रतिभा उनमें विकसित करने के लिए मां को उनसे पहले बड़ा होना होगा. मतलब परिस्थिति आने से पहले उसकी गंभीरता को समझ, अपने व्यक्तित्व को एक ‘प्रशिक्षक’ के सांचे में ढाल लेना होगा. ध्यान रखना होगा कि प्रतिक्रिया तात्कालिक होती है और प्रत्युत्तर नियोजित. हमें उनके किसी बात पर भड़कने पर डांटने या ख़ुद भड़क जाने की प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि कभी हंसाकर कभी समय देखकर समझाकर कभी अकाट्य तर्क उनके सामने रखकर प्रत्युत्तर देना होगा. मतलब वो वय या हालात आने से पहले ही, जबकि वो हमें सुनना बंद कर दें, ख़ुद को प्रशिक्षक की भूमिका में ढाल लेना और समय रहते उनका ‘प्रशिक्षण’ आरंभ करना होगा.
जीवन अपनी अबाध गति से चलता रहता है. उपरोक्त बातें हर शिक्षित अभिभावक अक्सर लेखों में पढ़ते रहते हैं. बच्चों को सम्हालने के लिए आपस में बात करके ‘स्ट्रैटजी’ बानाने की या बच्चों को बिठाकर बात करने की ज़रूरत महसूस करते रहते हैं. लेकिन रोज़ की आपाधापी में अक्सर सबसे ज़रूरी बातें ही टलती रहती हैं. समयाभाव से ग्रस्त आज के जीवन में सबसे बड़ी चुनौती है आपसी बातचीत के लिए समय निकालना और अगर देवी स्कंदमाता की आराधना के दिन हम ये काम कर ले जाते हैं. उस अनवरत प्रयास की शुरुआत भी कर ले जाते हैं, जो हमारी संतति के राक्षसों पर विजय का कारण बनने के लिए आवश्यक है तो समझ लीजिए कि यही है स्कंदमाता की सच्ची पूजा.
फ़ोटो: गूगल